ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

रविवार, 25 दिसंबर 2022

कुछ इस तरह


 जिन संबंधों को हम भावनाओं के रेशमी तन्तुओं से बुनते हैं, प्यार की सुगन्ध डालते हैं, दिल के क़रीब रखते हैं, वे ही संबंध कभी-कभी जरा सी ठेस से बिखर कैसे जाते हैं? जरा किसी ने कुछ कह दिया या आपकी किसी भावना का सम्मान नहीं किया या भावना को ठेस पहुँचा दी, किसी और से भी नज़दीकियाँ कर लीं या किसी ने लगाई - बुझाई कर दी या हमें इम्पॉर्टेंस देनी कम कर दी और हम भड़क जाते हैं…जरा सी देर में हमारा अहम् चोटिल होकर नाग सा फुँफकारने लगता है, अपमानित और ठगे हुए से खुद को महसूस करके हम प्रत्युत्तर में गालियों व आरोपों  के पत्थर मारने लग पड़ते हैं, चुगली  शुरु कर देते हैं। जो जरा शराफत और बुद्धिजीवी कहलाने का नशा रखते हैं वे साहित्य की ओट में बड़े- बड़े शब्दों का चयन कर लाँछन लगाने व घात लगाने से नहीं चूकते। वे आपके चरित्र का भी हनन चुटकियों में वाक्-चातुर्य से करते नजर आते हैं। कल तक जो प्रिय थे,  वे अचानक अब से आपके दुश्मनों की कतार में हाथ में पत्थर लिए खड़े नजर आएंगे। 

मतलब साफ है कि वो रिश्ता सिर्फ़ उनके अहंकार को पुष्ट करने का मात्र जरिया भर था बाकी अन्दर भूसा ही भरा था। सारे कोमल  रेशमी धागे बुरी तरह उलझ जाते हैं ।वे जरा नहीं सोचते कि अपने पुराने संबंधों की कुछ तो मर्यादा रखें। मैं- मैं का गान खुद करेंगे औरों से भी करवाएंगे। ये नहीं कि दूसरों की नजर में आपके लिए जो उच्च भाव व आदर था कभी, उसकी ही लाज रख लेते …जरा सा दिमाग व अहम् को परे कर दिल से काम ले लेते…पर नहीं आप तो आप हैं ऐसे कैसे छोड़ेंगे ? फौरन से उन रेशमी अहसासों के पेड़ की जड़ में जो कभी बहुत जतन से रोपा व पोसा था अहंकार , ईर्ष्या व द्वेष का तेज़ाब उड़ेल देंगे…भाव- मन्दिर में खड़े होकर  बदहजमी की डकारें मारने लगेंगे। 

मुझे याद है एक बार हमने अपने घर एक सीनियर प्रोफ़ेसर को विद फैमिली डिनर पर आमन्त्रित किया था। तभी अचानक एक और प्रोफ़ेसर साहब आफत के मारे अचानक आ धमके। तब मोबाइल तो होते नहीं थे कि कॉल करके आते। उन दोनों में कभी रही गहरी दोस्ती अब कट्टर दुश्मनी में तब्दील हो चुकी थी। तो उनके आते ही सीनियर प्रोफेसर साहब झपट पड़े । हमारे घर को अखाड़ा बना दिया। जरा लिहाज़ नहीं किया कि आप किसी दूसरे के घर पर अतिथि की हैसियत से पधारे हैं और दूसरे प्रोफ़ेसर भी हमारे अतिथि ही हैं और लगे दबादब लड़ने । कहनी- अनकहनी सब कह डालीं । गाली- गलौज से भी गुरेज़ नहीं किया। हम सन्न थे । काफ़ी कोशिश की उनको रोकने की पर वो कहाँ रुकने वाले थे। वे अब स्वर्ग सिधार चुके हैं परन्तु आजतक भी वो घटना याद आती है तो मन क्षोभ से भर जाता है। 

तो जब भी लगे कि अब ये नौबत आने वाली है तो थम कर जरा सोचें, गुत्थियों को सुलझाने की कोशिश करें और यदि नामुमकिन लगे तो शान्ति से उस उलझी रेशमी गुच्छियों को वहीं उलझा छोड़कर रास्ता बदल लें लेकिन खूबसूरती से। इस तरह कम से कम कुछ सुनहरी स्मृतियाँ तो आपकी मुट्ठी में होंगी…आपकी और दूसरे की भी गरिमा बनी रहेगी और कुछ तो आँखों की शर्म बाकी रह जाएगी जिससे कभी भूले- भटके सामना हो भी जाए तो आँखें न चुराते फिरें-

"दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे

जब कभी हम दोस्त हो जाएँ तो शर्मिंदा न हों”

आप खूबसूरती से भी इस पीड़ा को बाय कह सकते हैं ।राहें बदलें …पटाक्षेप करें परन्तु कुछ इस तरह- 

" वो अफसाना जिसे अन्जाम तक लाना न हो मुमकिन, उसे इक ख़ूबसूरत मोड़ देकर  छोड़ना अच्छा…!”

- उषा किरण 

रविवार, 25 सितंबर 2022

शर्मसार

 


"आपका खून लगने से ये नया चाकू एकदमी खुट्टल हो गया!” सब्जी काटते-काटते गीता ने मुझसे कहा।

"क्या मतलब?”मैंने उत्सुकता से पूछा !

"हमारे पहाड़ में कहते हैं कि नई दराँती या चाकू से यदि किसी का हाथ कट जाए तो उसकी धार खत्म हो जाती है !” मैं अविश्वास से हंस पड़ी।

"अरे ऐसा भी होता है कहीं?”

मैंने समझाया उसे पर वो उल्टा मुझे समझाती रही कि "नईं ये बात एकदम सच है।”

शाम को  जब मैं उसी चाकू से प्याज काट रही थी तो हैरान रह गई वाकई उसकी धार भोथरी हो गई थी । सालों पुराने चाकू उससे तेज थे और उसके साथ आया दूसरा चाकू भी बेहद खतरनाक था लेकिन इस वाले से  तो फल भी नहीं काटे जा पा रहे थे।

मुझे बड़ी हैरानी हुई कि जो नया चाकू हफ्ते भर पहले ही इतना तेज था कि उससे मेरी उंगली बहुत गहरी कट गई थी, खून रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था, सारे उपाय करने पर भी बहुत देर बाद बन्द हुआ और बहुत खून बह गया था। आज उसकी धार एकदम ही खत्म हो गई थी।

मैंने हैरानी से गीता से पूछा "अरे ये क्या चक्कर है ? क्या कहते हैं तुम्हारे पहाड़ में, ऐसा क्यों होता है ?”

"हम कहते वो शर्मिंदा हो गया!” 

वो हँस कर बोली ! तब से मैं ने उसका नाम ही शर्मिंदा चाकू रख दिया है।

अक्सर सोचती हूँ  इंसान अपने कर्मों और  बातों से जाने किस- किस को, कब- कब यूँ ही आराम से आहत करता है। इँसान अपने फायदे या गुस्से की खातिर दूसरे का गला काट देता है., अपने कर्मों और जहरीली  बातों से किसी का भी दिल तोड़ते जरा नहीं सोचता। हम शारीरिक, भावनात्मक हर तरह की हिंसा करते हैं, पर जरा शर्मिंदा नहीं होते। किसी की बनी- बनाई साफ- सुथरी इमेज पर डाह, क्रोध व ईर्ष्या की छुरी चला कर उसकी आजन्म सहेजी मर्यादा, गरिमा व सम्मान का पल भर में कत्ल करते जरा नहीं सोचते और ये चाकू जिसका धर्म ही है काटना वो अपनी वजह से किसी का खून बहते देख कितना शर्मिंदा हुआ पड़ा है ...कमाल है ! 

सच मुझे बहुत हैरानी है, अपने उस चाकू की शर्मिंदगी पर ...प्यार आता है उसकी कोमल सम्वेदना पर ।मैं बुदबुदा कर कहती हूँ कि "मैंने माफ किया तुझे, अरे, गल्ती तो मेरी ही थी, हर समय जल्दी रहती है तो लापरवाही से कट गयी उँगली, तुम्हारी क्या गलती है इसमें ?” लेकिन कोई फ़ायदा नहीं होता उसकी शर्मिंदगी नहीं जाती ...धार वापिस नहीं आती। हम इंसानों से तो ये चाकू ही कितना भला और गैरतमन्द है ...नहीं?

—————————————

  —उषा किरण

रविवार, 11 सितंबर 2022

मायका

 



मायके जाने का  प्रोग्राम बनते ही उन दिनों

बेचैनी से कलैंडर पर दिन गिनते

बदल जाती थी चाल- ढाल

चमकती आँखों में पसर जाता सुकून,मन में ठंडक…!


मायके की देहरी पर गाड़ी रुकते ही पैर कब रुकते

गेट पर लटकती छोटी बहन, भाई को देख 

दौड़ पड़ती…भींच लेती छाती में जोर से

होंठ हँसते बेशक पर आँखें बरसतीं 

धूप और बारिशें एक साथ सजतीं…!


अम्माँ का नेह धीरे से आँखों से छलकता 

तो ताता का दुलार मुखर हो उठता

आ गई….आ गई बेटी…कह लाड़ भरा हाथ

सिर पर रख हँस पड़ते उछाह से

भूल जाते उम्र के दर्दों और थकान को…!


भैया साथ लग जाता तो छुटकी तुरन्त

पर्स की तलाशी में लग जाने क्या राज ढूँढती

उस दिन डॉक्टर का पर्चा पढ़ 

खुशी से उछलती- कूदती भागी थी

मैं पकड़ती तब तक तो वो शोर मचा चुकी थी…

अम्माँ ने बहुत ममता से मुस्कुरा कर 

धीरे से आँचल से आँखें पोंछीं 

उस बार विदा में अम्माँ ने खूब अचार, और नसीहतें 

साथ बाँधीं थीं…!!


जाने क्या था अम्माँ के आँचल और 

उस आँगन की हवा में 

साँसें जैसे खुल कर पूरी छाती में भर जाती थीं 

चौगुनी भूख सीधे चौके में खींच ले जाती

क्या पकाया,क्या बनाया कह बेसब्री से कढ़ाई से सीधे 

चम्मच भर खाते, आँखें बंद कर चटखारा लेते  

आत्मा तृप्त-मगन हो जाती…!


फिर चकरघिन्नी सी घूमती हर कमरे की

हर अलमारी को खोल उसकी खुशबू साँसों में उतारती 

अपनी संगिनी किताबों, डायरियों को 

छाती से लगा चूम लेती

नए लिए कपों, सामानों पर बहुत ममता से हाथ फेरती 

अरे वाह, ये कब लिया…कितना सुन्दर है

देखना, ये साड़ी अबके मैं ले जाऊँगी…!

अम्माँ कहतीं हाँ- हाँ और अबके अपना तानपूरा और बाकी सब भी साथ ले जाना…!


फिर मुड़ जाती अपने प्यारे से बगीचे में 

तितली सी थिरकती…चिड़िया सी चहकती

हर फूल, हर पत्ती पर हाथ फेर दुलारती

करौंदे, नीबू, जामुन, अमरूद जो मिलता 

गप से मुँह में डाल तृप्ति से मुस्काती…!


नहा- धोकर आँगन की सुनहरी धूप में 

कोई किताब ले गीले बाल फैला चारपाई पर 

इत्मिनान  से पसर कर भर आँख आसमान देखती

रात को तारों की झिलमिल में खोकर सोचती

अरे, तारे तो शायद वहाँ भी झिलमिलाते होंगे,कभी गौर नहीं किया

लम्बी साँसें भरती सोचती

यहाँ धूप कितनी सुनहरी है और हवा कितनी हल्की …!


यूँ तो काल के अंधेरे गर्भ में समय के साथ 

बिला चुका है वो सब कुछ 

लेकिन जब भी मेरी  बेटी अपने मायके आती है

मायके की धूप-हवा को तरसती मेरी रूह 

उसके उछाह और सुकून में समा कर 

गहरी- लम्बी साँसें चुपचाप भरती है…!!

—————————

—उषा किरण

शुक्रवार, 2 सितंबर 2022

अफसोस


 

जाकर मिल भी लो दिल के करीब हैं जो

आजकलपरसों पर टालते ही मत रहो

निकालो कुछ वक्तहाथों में हाथ थाम 

प्यार की फुहारों में भीग  लो कुछ वक्त


क्या पता कल फिर वक्त मिले  मिले

हो सकता है किसी को तुम्हारा इंतजार हो

हो सकता है तुमको किसी का इंतज़ार है

पर वक्त तो तुम्हारा इंतजार नहीं करता


उसका तो फंदा अपने वक्त पर तैयार है

तुम टाल सकते हो,वक्त कभी नहीं टलता 

और तुम दिल में टीस दबाए हाथ मलते

एक दिन शामिल होगे उसकी शोक सभा में 

और बुदबुदाओगे भारी मन और भरे गले से 


माफ करना दोस्त  नहीं सका बस

अफसोस से भरे बेचैनी में तड़पते हुए 

इसके सिवा और क्या बचेगा कहने को-

ॐशान्तिॐशान्तिॐशान्ति 🙏💐

—————————————-

-उषा किरण 

सोमवार, 29 अगस्त 2022

वटवृ़क्ष

                   

                          


                      कैसे थक कर हार जाऊँ

                           उम्मीदों से बँधा

                     मन्नतों के धागों से लिपटा

                             वटवृक्ष हूँ मैं…!!


—————————

-उषा किरण

शनिवार, 27 अगस्त 2022

सीजोफ्रेनिया

 



जब मैं बी  में पढ़ रही थी तब मेरी फ्रैंड की एक रिश्तेदार जिनसे मेरी प्रायमुलाक़ात होती रहती थी। जो पढ़ाई में बहुत होशियार थीं और गाना बहुत अच्छा गाती थीं। उनकीशादी और दो बेटियों के होने के बाद खबर सुनी कि उन पर कोई ऊपरी साया है अतउनको मायके भेज दिया गया। ससुराल में भी झाड़फूँक करवाई गईमायके में भी।लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। एक दिन वो मेरे घर आईं दोनों बच्चों  मेरी फ्रैंड केसाथ तो हाल-बेहाल थीं   तो  वो खुद को संभाल पा रही थीं और  ही दोनों छोटी बच्चियों  को। बहुत बेचैन देख कर जब मैंने उनसे बात की तो बोलीं कोई गन्दीगन्दी गालियाँ मेरे बदन पर लिख देता है और दीवार को घूर कर देख कर बोलीं कि देखो वहाँ लिखी है अभी। उनके पति डॉक्टर थे तो फिर बोलीं मेरे पति का नर्स के साथ अफेयर चल रहा है। मैं बी  में थी और मनोविज्ञान विषय भी लिया था तो मुझे समझ में  रहा था कि वो मानसिक रोग से ग्रस्त हैं ।मैंने जितनी उम्र  समझदारी थी उनके पेरेन्ट्स से बात की कि उनका इलाज करवाएं। खैर कुछ सालों बाद पता चला कि उनकी डैथ हो गई।एक और किन्ही परिचित का भी सुना था कि अचानक काफी उम्र में उनको कुछ-कुछ दिखाई  सुनाई देता था …अन्त उनका भी  सुखद नहीं था।


एक परिचित का बेटा यू एस में अच्छाभला जॉब करता है लेकिन इंडिया आकर मातापिता के पास आते ही उसका व्यवहार एब्नार्मल हो जाता हैमारपीट तक करने लगताहै।यहाँ तक कि एडमिट तक करवाना पड़ता है और वही एक बात कि कुछ दिखाई-सुनाई पड़ता है। इलाज के बाद कुछ संभल कर यू एस जाते ही फिर नॉर्मल हो जाता  है।


ऐसी और भी बहुत सी कहानियाँ अपने इर्द-गिर्द प्रायदेखी हैंजहाँ बेवक़ूफ़ी में झाड़-फूँक का सहारा लेकर दिनों-दिन हालत बिगड़ती गई और एक दिन….! हमारे यहाँ वैसेभी अनपढ़ और प्रायपढ़े-लिखे लोग भी ऐसे केस में प्रायभूतप्रेत की व्याधा मान कर झाड़-फूँक तो करवाते हैं पर मनोचिकित्सक को पागल का डॉक्टर मान कर उसके पासनहीं जातेइलाज नहीं करवाते हैं। कई लोगों को मैं जानती हूँ जिन्होंने समय रहते इलाज करवाया और स्थिति को कन्ट्रोल में कर लिया। 

आज फिर किसी अपने के बच्चे में धीरे-धीरे सीजोफ्रेनिया के लक्षण पनपते जान कर गूगल पर अध्ययन किया तो बहुत सारी जानकारी मिलीं जिसमें से कुछ शेयर कर रहीहूँ-


सीजोफ्रेनिया एक ऐसी बीमारी है जिसमें ये सारे लक्षण पेशेन्ट में मिलते हैं और जो मेरा अनुभव है ये किसी भी उम्र में हो सकती है परन्तु प्रायये बीमारी 16 से 30 साल की उम्र में होती है। पुरुषों को ये बीमारी महिलाओं से कम उम्र में हो सकती है। ज्यादातर मामलों में मरीज को इस बीमारी की चपेट में आने के बारे में पता ही नहीं चल पाता है।हालांकि कुछ मामलों में मरीज सिजोफ्रेनिया का शिकार होने के तुरंत बाद ही इसके दलदल में और गहरे धंसता चला जाता है। सिजोफ्रेनिया के मरीज को साए दिखने या फिर किसी के होने का आभास होने की समस्या प्रायहो सकती है।दोस्तों और परिवारसे खुद को अलग कर लेनादोस्त या सोशल ग्रुप बदलते रहनाकिसी चीज पर फोकस ना कर पानानींद की समस्याचिड़चिड़ापनपढ़ाई-लिखाई में समस्या होना इसके प्रमुख लक्षण हैं


सिजोफ्रेनिया के मरीजों को कई बार ऐसी चीजें दिखाई देतीं और महसूस होती हैं जो असल में होती ही नहीं हैं लेकिन उन्हें ये एकदम सच लगता है। कई मामलों में उन्हें चीजों का स्वाद और खुशबू महसूस होने की शिकायत होती है जो वहां होती ही नहीं हैंसिजोफ्रेनिया के मरीज को कई तरह के गलत यकीन भी होने लगते हैंजैसे खुद को सताए जाने का भ्रम या फिर अमीर या ताकतवर होने का भ्रम। मरीज को ये भी महसूसहो सकता है कि उनमें दैवीय शक्तियां हैं। हालांकिमनोचिकित्सकों के पास सिजोफ्रेनिया  के मरीजों को होने वाले विचित्र अनुभवों की लंबी लिस्ट होती है। सिजोफ्रेनिया के मरीजों को लगता है कि लोग उसे जबरदस्ती गलत ठहराने की कोशिश कर रहे हैं।


सिजोफ्रेनिया के लक्षणों की पहचान करना आमतौर पर मुश्किल हो जाता हैडॉक्टरों का कहना है कि सिजोफ्रेनिया कई वजहों से हो सकता है जैसे कि बायोलॉजिकलजेनेटिक या फिर सामाजिक स्थितिकुछ स्टडीज में सिजोफ्रेनिया के मरीजों के मस्तिष्क संरचनाओं में कई तरह की असामान्यताएं दिखने को मिली हैं।


सिजोफ्रेनिया के कुछ मरीज एक काल्पनिक दुनिया में रहते हैंवास्तविक दुनिया से दूर इनके अलग विचार होते हैंइसकी वजह से इनकी भावनाव्यवहार और क्षमता में बदलाव  जाते हैंये लोग अपने भावनाओं को सही तरीके से व्यक्त नहीं कर पाते हैं.जिंदगी से इनकी दिलचस्पी खत्म हो जाती है। किसी भी बात को लेकर ये बहुत ज्यादा भावुक हो जाते हैं। 


सिजोफ्रेनिया के मरीजों को आमतौर पर एंटीसाइकोटिक दवाएं दी जाती हैंकुछ मरीजों को खास थेरेपी की जाती है ताकि मरीज अपने तनाव से बाहर  सके। कुछलोगों को इससे बाहर लाने के लिए सोशल ट्रेनिंग दी जाती है।वहीं कुछ गंभीर मामलों में मरीज को अस्पताल में भर्ती करके इलाज करना पड़ता हैकुछ ख़ास लक्षण हैं-


  • रोगी अकेला रहने लगता है।
  • वह अपनी जिम्मेदारियों तथा जरूरतों का ध्यान नहीं रख पाता।
  • रोगी अक्सर खुद ही मुस्कुराता या बुदबुदाता दिखाई देता है।
  • रोगी को विभिन्न प्रकार के अनुभव हो सकते हैं जैसे कि कुछ ऐसी आवाजे सुनाई देना जो अन्य लोगों को  सुनाई देकुछ ऐसी वस्तुएँलोग या आकृतियाँ दिखाई देना जो औरों को  दिखाई देया शरीर पर कुछ  होते हुए भी सरसराहट या दबाव महसूस होनाआदि।
  • रोगी को ऐसा विश्वास होने लगता है कि लोग उसके बारे में बातें करते हैंउसके ख़िलाफ़ हो गए हैं या उसके खिलाफ कोई षड्यंत्र रच रहे हों।
  • लोग उसे नुकसान पहुँचाना चाहते हों या फिर उसका भगवान् से कोई सम्बन्ध होआदि।
  • रोगी को लग सकता है कि कोई बाहरी ताकत उसके विचारों को नियंत्रित कर रहीहै या उसके विचार उसके अपने नहीं हैं।
  • रोगी असामान्य रूप से अपने आप में हँसनेरोने या अप्रासंगिक बातें करने लगताहै।
  • रोगी अपनी देखभाल  जरूरतों को नहीं समझ पाता।
  • रोगी कभी-कभी बेवजह स्वयं या किसी और को चोट भी पहुँचा सकता है।
  • रोगी की नींद  अन्य शारीरिक जरूरतें भी बिगड़ सकती हैं।


यह आवश्यक नहीं कि हर रोगी में यह सभी लक्षण दिखाई पड़ेंइसलिए यदि किसी भी व्यक्ति में इनमे से कोई भी लक्षण नज़र आए तो उसे तुरंत मनोचिकित्सकीय सलाह लेनी चाहिए।अन्य बीमारियो की तरह ही यह बीमारी भी परिवार के करीबी सदस्यों में अनुवांशिक रूप से जा सकती है ।मस्तिष्क में रासायनिक बदलाव या कभी-कभी मस्तिष्क की कोई चोट भी इस बीमारी की वजह बन सकती है।


इस बीमारी से पीड़ित इंसान वास्तविक और काल्पनिक वस्तुओं को समझने की शक्ति खो बैठता है और उसकी प्रतिक्रिया परिस्थितियों के अनुसार नहीं होती है। दुनिया में सिजोफ्रेनिया  के रोगी लगभग एक फीसदी हैं। वहीं भारत में सिजोफ्रेनिया से जूझ रहे मरीज़ों  की संख्या लगभग 40 लाख है। इस बीमारी का इलाज नहीं करवाने वाले 90 फीसदी लोग भारत जैसे विकासशील देशों में देखे जा सकते हैं जिनमें गरीबी और जानकारी के अभाव में अस्पताल जाने से बचने की आदत रहती है


सिजोफ्रेनिया का मतलब ये बिल्कुल नहीं है कि आपकी स्प्लिट पर्सनैलिटी है या फिरआपको मल्टीपल पर्सनैलिटी डिसऑर्डर है। हालांकि कई बार ऐसे लोग सामाजिक मनोवृत्ति  का शिकार हो जाते हैं। सही उपचार या रोगी की देखभाल में कमी रोग कोबढ़ाने का काम करती है। सिजोफ्रेनिया एक गंभीर मानसिक बीमारी हैजिसमें व्यक्ति को निरंतर अंतराल पर दौरे पड़ते हैं। अच्छा समर्थनथेरेपी और उपचार से ऐसे लोगों के व्यवहार  में बहुत सुधार दिखाई दे सकता है और वे हेल्दी जीवन जी सकते हैं।कुछ मानसिक  बीमारियों के लक्षण मिलते-जुलते होते हैं तो कृपया एक के लक्षण के आधार पर स्वयम् बीमारी तय  करें किसी योग्य मनोचिकित्सक की परामर्श शीघ्र लें और उपचार  करवाएं।इस बीमारी के बारे में जागरूक रहने तथा दूसरों को जागरूक करना बहुत आवश्यक है।


यदि आपके आस-पास भी कोई ऐसा व्यक्ति हो तो कृपया उसके घर वालों को बताइए इस बीमारी के बारे में ताकि वे झाड़-फूँक  करवा कर सही इलाज जल्दी शुरू कर सकें।पेशेन्ट यदि मैच्योर है तो उसे डॉक्टर के पास ले जाना बहुत मुश्किल होता है तो ऐसे में कोई और पारिवारिक व्यक्ति हाल बता कर दवाइयाँ लाकर इलाज चालू कर सकता है,क्योंकि मेरी जानकारी जहाँ तक है कि कुछ लिक्विड दवाइयाँ होती हैं जो खाने -पीने में मिला कर दी जा सकती हैं लेकिन किसी योग्य मनोचिकित्सक की राय से ही  दें।


यदि आप मनोचिकित्सक हैं या और कुछ महत्वपूर्ण जानकारी रखते हैं इस बीमारी से संबंधित, तो कृपया जनहित में शेयर ज़रूर करेंधन्यवाद !!


(फोटो व जानकारी गूगल से साभार!)

मुँहबोले रिश्ते

            मुझे मुँहबोले रिश्तों से बहुत डर लगता है।  जब भी कोई मुझे बेटी या बहन बोलता है तो उस मुंहबोले भाई या माँ, पिता से कतरा कर पीछे स...