एकदम साफ- सुथरा अनुशासित शहर। न सड़कों पर कूड़ा न सड़कों पर चीख- पुकार मचाते लोग।कई अन्य देशों की यात्राओं में देखा लोग यहाँ तक कि बच्चे भी फल के छिलके या ख़ाली रैपर हाथ में पकड़कर रखते हैं और हर दो कदम पर लगे डस्टबिन में ही कूड़ा डालते हैं । लेकिन यहाँ तो सड़कों पर कहीं दूर- दूर तक डस्टबिन नजर ही नहीं आता तब भी सड़कें एकदम साफ- सुथरी नजर आती हैं, ये तो वाकई कमाल है, पता चलता है लोग कितने अनुशासित हैं, अपने शहर को प्यार करते हैं तो अपनी ज़िम्मेदारी भी समझते हैं उसके प्रति।हम दो शहरों क्योटो और टोक्यो में रहे।
जापान को "सूर्योदय का देश" कहा जाता है क्योंकि यह पूर्वी एशिया में स्थित है और पृथ्वी के चारों ओर घूमते समय सूर्य की पहली किरणें जापान में ही पड़ती हैं. इसे "निप्पॉन" (या निहोन) भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है "सूर्य की उत्पत्ति". जापान चार बड़े और अनेक छोटे द्वीपों का एक समूह है।ये द्वीप एशिया के पूर्वी समुद्रतट, यानी उत्तर पश्चिम प्रशांत महासागर में स्थित हैं।
क्योतो जापान के यमाशिरों प्रांत में स्थित नगर है।क्वामू शासन काल में इसे 'हे यान जो' अर्थात् 'शांति का नगर' की संज्ञा दी गई थी। ११वीं शताब्दी तक क्योतो जापान की राजधानी था और आज भी पश्चिमी प्रदेश की राजधानी है। क्योटो छोटा धार्मिक शहर है जबकि टोक्यो पूरी सजधज सहित महानगर। दोनों शहरों की संस्कृति में साफ़ फर्क नजर आया।वैसा ही जैसे हमारी मुम्बई और मथुरा में नजर आता है। क्योटो में ज्यादातर टैक्सी ड्राइवर काफी बुजुर्ग मिले लेकिन टोक्यो में बनिस्बत यंग। लड़की हमें कहीं भी टैक्सी ड्राइवर नहीं मिलीं जैसी कि सिंगापुर, लंदन या यू एस में आम है। यहाँ पर बुजुर्ग काफी उम्र तक काम करते हैं और प्राय: अकेले ही शॉपिंग करते व घूमते मिल जाएंगे।
जो प्योर वेजीटेरियन हैं उनको अपने साथ कुछ व्यवस्था करके ही जाना चाहिए । जगह- जगह आपको छोटे- बड़े रेस्टोरेंट खूब मिलेंगे लेकिन हर जगह चिकिन, मटन, बीफ़, फिश, प्रॉन, पोर्क के बेक होने की चिरांध हवा में तैरती मिलेगी।जापान में एक चीज़ का बहुत क्रेज दिखा वह है हरे रंग का माचा। माचा आइसक्रीम, माचा ड्रिंक, माचा चाय, माचा कैंडी क्या नहीं मिलेगा जबकि उसका टेस्ट कुछ कड़वा कसैला सा होता है परन्तु एंटीऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर होने के कारण बहुत लोकप्रिय है। वैसे तो वीगन फूड के नाम पर आपको राइस विद वेज करी , वेज सुशी, जापानी काँजी, पास्ता, नूडल्स व पित्जा वगैरह मिल ही जाएगा। भूखे तो नहीं ही रहेंगे। मैकडोनल भी सभी जगह हैं पर फ्रैंच फ्रायज के अलावा तो क्या ही मिलेगा। कुछ इंडियन रेस्टोरेंट भी हैं जहाँ बहुत टेस्टी खाना मिला। बेकरी आइटम्स की बहुत वैरायटी होती है और बहुत टेस्टी भी। वैसे भी हम इंडियन विदेशों में थेपले तो ले ही जाते हैं अपने साथ😊
वहाँ के लोगों में एक मासूमियत दिखाई देती है। लोगों का व्यवहार बहुत ही सहयोगात्मक दिखा। किसी से कोई शॉप या रास्ता पूछो तो वह अपने हाथ का काम छोड़कर आपके साथ दूर तक साथ चल देगा।कमर से झुक कर इतनी बार अभिवादन करेंगे कि लगता है इनकी कमर दुख जाती होगी।होटल व रेस्टोरेंट में सभी का व्यवहार बहुत विनम्र व सहयोगी रहा। लेकिन अनुशासन व नियमों के मामले में कुछ ज्यादा ही कड़क ।बस वहाँ ज़्यादातर वोग जापानी लैंग्वेज में ही बात करते हैं , इंग्लिश कम ही लोग जानते हैं ।हमें कई जगह एप का सहारा लेना पड़ा ।प्राय: हर होटल में हरेक के लिए नाइट सूट या कीमोनो रूम में होता था।हमने ठाठ से नाइट गाउन की जगह कीमोनो पहनकर अपना ये शौक पूरा किया।
वे नियम कायदों को बहुत सख्ती से फॉलो करते हैं, शायद इसी कारण वहां पर क्राइम बहुत कम है। म्यूजियम व आर्ट गैलरी में आप अपने बैग से निकालकर भी पानी नहीं पी सकते, आप रूम से बाहर जाकर ही पी सकते हैं । वर्ना मुस्तैद खड़ा स्टाफ आकर आपको कान में धीरे से मना कर देगा। मार्केट में आप शॉप पर ही आइसक्रीम खाइए चलते- चलते रास्ते में नहीं खा सकते। सड़क पर चलते समय जोर से कोई नहीं बोलता। कोई भी गाड़ी का हॉर्न नहीं बजाता। वे शहर में गाड़ी बहुत इत्मिनान से चलाते हैं , पैदल क्रॉस करने वालों के लिए इंतजार करेंगे, ओवरटेक भी नहीं करते। एक बार हमारे टैक्सी ड्राइवर ने हल्का सा ही हॉर्न बजा दिया तो सब उसको ऐसे घूरकर देखने लगे जैसे जघन्य अपराध कर दिया हो।
जापान की समृद्धि के पीछे जापानियों की अथक मेहनत साफ झलकती है। सुना है कि वहां के युवा अब शादी के बंधन से कतराने लगे हैं। काम व प्रमोशन की होड़ में कौन झंझट में फंसे ? ये भी सुना कि लोग घरों में चूहे पालते हैं और उनको बच्चों की तरह पालते हैं। कई लड़कियों को बेबी कैरियर में खूबसूरत छोटे-छोटे डॉग्स को सीने से लगाकर दुलारते देखा।क्योटो मे स्टिक लगे फ्रोजन खीरे भी खूब बिकते दिखे।
यह जानकर बेहद दुख हुआ कि जापान में सबसे ज्यादा लोग आत्महत्या करते हैं, निश्चित ही उनमें युवाओं की संख्या अधिक होगी। क्योटो पर तो धर्म का प्रभाव बहुत अधिक है…तब भी ? वह धर्म कैसा जो साहस , आशा व शक्ति का संचार न करे। वह समृद्धि किस काम की जिससे लोग तनाव, अकेलापन व असुरक्षित महसूस करें ? जीवन में बैलेंस होना बहुत जरूरी है आप सिर्फ भौतिकवादी होकर कैसे सुखी रह सकते हैं । इतना प्यारा देश, इतने प्यारे लोग…दुआ है काश इस काली छाया से बाहर निकल सकें…आमीन!!!
किसी देश की नब्ज पर हाथ रखना है तो इतिहास से ज्यादा जरूरी है वहाँ का साहित्य पढ़ा जाए। मन हुआ कुछ जापानी कविता पढ़ने का तो गूगल बाबा ने बताया 'Matsuo Basho’की लबसे प्रसिद्ध हाइकु है-'द ओल्ड पॉन्ड’-
Furuike ya
kawazu tobikomu
mizu no oto
The old pond-
a frog jumps in,
sound of water.
(पुराना तालाब...
पानी की आवाज़ में
एक मेंढक कूदता है।)
क्या सिर्फ इतना भर अर्थ है इसका ?
या यह कि, पुरानी मान्यताओं के तालाब में कुछ नवीन खुशी की तलाश में भटके हुए लोग पुन: छलांग लगा रहे हैं, यही या कुछ और…कभी भी किसी कृति का एक अर्थ नहीं होता …सोच रही हूँ, खंगाल रही हूँ क्या कारण हो सकता है इस हाइकू को इतना पसंद किए जाने के पीछे…आप भी सोचिए हम भी सोचते हैं…अभी काफी कुछ बाकी है…फिलहाल सायोनारा👋!!