ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

गुरुवार, 7 अगस्त 2025

फाँस


अनुभा बाहर से लगातार साइकिल की घंटी बजा रही थी`अरे थम जरा, आ रही हूँ !’
'रूक, ये दही खाकर जा…प्रवेश पत्र ले लिया न ?’
`हाँ माँ ले लिया, बाय’ लपड़- झपड़ भागती शैलजा ने जल्दी से साइकिल निकाली और दोनों ने सरपट दौड़ाई। रास्ते में शायद कोई एक्सीडेंट होने की वजह से रोड ब्लॉक कर दी गई थी, अत: लम्बे रूट से जाने के कारण दोनों जब तक कॉलेज पहुँचीं तब तक सात बज कर पाँच मिनिट हो चुके थे। सब बच्चों को पेपर मिल चुके थे और तन्मय होकर लिखने में लगे थे । अनुभा ने कॉपी की एन्ट्री भरनी शुरु की ही  थी कि टीचर ने कहा -
"भई मैंने सात  बजने में पाँच मिनिट पर पेपर दिया है आपको, तो दस बजने में पाँच मिनिट पर कॉपी ले ली जाएगी, सब घड़ी मिला लें!’
धड़कते दिल से शैलजा ने लिखने की स्पीड बढ़ाई`ओह दस मिनिट तो बिना बात कम हो गए।’
दस बजने पर पाँच मिनिट पर कॉपी छीन ली गई। शैलजा को रोना आने लगा उसका एक क्वेश्चन रह गया था, जबकि उसे सब आता था लेकिन बाकी लोगों से उसे दस मिनिट कम मिले थे। बुझे मन से बाहर आई तो अनुभा भी रुआँसी खड़ी मिली। 
`कैसा हुआ पेपर ?’
`ज्यादा अच्छा नहीं !’ उसका चेहरा भी उतरा हुआ था। दोनों शैलजा के घर पहुँचीं तो शैलजा उसे खींच कर जबर्दस्ती घर ले गई-'चाय पीकर जाना !’
तभी शैलजा के पापा भी ड्यूटी से आ गए।वे भी उसी कॉलेज में इंगलिश के प्रॉफेसर थे।'बेटा कैसा हुआ पेपर?’
'पापा एक क्वेश्चन छूट गया’ उसने सारी बात बताई।
'किसकी ड्यूटी थी ?’
'हिस्ट्री वाले सरस सर और हिन्दी वाली अनुपमा मैम की!’
शैलजा के पापा तेज गुस्से में दोनों टीचर्स को गाली बकने लगे`बताओ सालों को  पाँच मिनिट पहले पेपर बाँटने की क्या तुक थी ? इसकी शिकायत की जाएगी प्रिंसिपल से, बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ है ये तो सरासर…!’ 
बहुत देर तक वे बड़बड़ाते रहे।
अनुभा सिर झुका कर चुपचाप चाय के सिप लेती रही। आज उसके कमरे में अनुभा के पापा की  ही ड्यूटी थी जो पूरे तीन घन्टे लगातार जोर-जोर से दूसरे टीचर के साथ राजनीतिक बहस कर रहे थे, बच्चों पर चीख रहे थे-
'ए लड़के सामने देख’
`अबे दो झापड़ दूँगा अभी’
`ए मोटू, कॉपी छीन लूँ तेरी’
`ए लड़की सीधी बैठ’
`अबे राजेश दो कप चाय बिस्कुट ला दे जरा!’
`नो चीटिंग…..’
उनके मचाए शोर व पूरे समय हा-हा, ही- ही करने के कारण वो लिखने पर जरा भी ध्यान केन्द्रित नहीं कर सकी थी, परिणामतः सब कुछ आने पर भी वो आज पेपर ठीक से नहीं लिख सकी।
अनुभा मन ही मन  सोच रही थी, और इनकी शिकायत कौन, किससे करेगा ?
      — उषा किरण
फोटो: गूगल से साभार 

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