ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

शुक्रवार, 29 सितंबर 2023

दौड़



सुनो,

तुम मुझसे जैसे चाहो वैसे 

जब चाहो तब और जहाँ चाहो वहाँ 

आगे जा सकते हो 

तुमको जरा भी ज़रूरत नहीं कि

तुम मुझे कोहनी से  पीछे धकेलो या कि

धक्का मार कर या टंगड़ी अड़ा कर 

गिराओ या ताबड़तोड़ आगे भागो 

या अपने नुकीले नाखूनों से

मेरा मुँह नोचने की कोशिश करो या 

जहरीले पंजों से मेरी परछाइयों की ही

जड़ों को खोदने की कोशिश करो


तुमको ये सब करने की 

बिल्कुल ज़रूरत ही नहीं 

क्योंकि मैं तुमको बता दूँ कि 

मैं तो तुम्हारी अंधी दौड़ में 

कभी शामिल थी ही नहीं 

मैं हूँ ही नहीं तुममें से कोई एक नम्बर 

मुझे चाहिए नहीं तुम्हारा वो

चमकीला सतरंगी निस्सीम वितान

तुम्हारी जयकारों से गूँजता जहान

वेगवती आँधियाँ, तूफानी आवेग

आँखों, मनों में दहकती द्रोह-ज्वालाएं,दंभ


तुम हटो यहाँ से , 

मुझे कोसने काटने में 

अपना वक्त बर्बाद न करो वर्ना देखो

वे जो पीछे हैं आज, कल आगे बढ़ जाएंगे

तुमसे भी बहुत और आगे

पैरों में तूफान और साँसों में आँधियाँ भरे

वे दौड़े आ  रहे हैं…तुम भी भागो…


सुनो, मुझसे तो तुम्हारी प्रतिस्पर्धा या 

विवाद होना ही नहीं चाहिए 

बिल्कुल भी नहीं 

मैं तो एक कोने में खड़ी हूँ कबसे

दौड़ने वाले बहुत आगे निकल गए 

दूर बुलंदी पर फहरा रही हैं पताकाएँ 

गा रही हैं उनका  यशगान ….जय हो 


मैं भी खुश हूँ बहुत सन्तुष्ट 

अपनी बनाई  इक छोटी सी धरती और 

छतरी भर आकाश से

साँसें चलने भर हवाएं और 

दो घूँट पानी  भी हैं पल्लू में 

आँखें बन्द कर सुन रही हूँ 

अपने अन्तर्मन में बजता सुकून भरा नाद

इससे ज्यादा सुन नहीं सकती

सह नहीं सकती वर्ना मेरे माथे की शिराओं में  

बहने लगता है लावा और

तलवों से निकलने लगती हैं ज्वालाएं


बहती नदी से एक दिन चुराया था जो

हथेलियों में थामा वो  फूल

कभी का मुरझा कर झर चुका…

बस चन्द बीज बाकी हैं 

देखूँ,रोप दूँ इनको भी  कहीं, 

किसी शीतल सी ठौर…

तो फिर चलूँ  मैं भी …!!

                               —उषा किरण🌼🍃

फोटो: गूगल से साभार 

शनिवार, 2 सितंबर 2023

लघुकथा

अहा ! ज़िंदगी, मासिक पत्रिका में सितम्बर, 23 अंक में मेरी लघुकथा `टेढ़ी उंगली’ प्रकाशित हुई है। अहा ! ज़िंदगी पत्रि​का दैनिक भास्कर ऐप और वेबसाइट पर ईपेपर के रूप में पढ़ी जा सकती है।आप भी पढ़िए-


                       ~  टेढ़ी उंगली ~

"बात सुनो,  किचिन में कूलर लगवा दो, बहुत गर्मी लगती है!” दूसरी मंजिल पर खुली छत पर बनी और तीन तरफ़ से खुली होने पर सीधी धूप आने के कारण मई- जून में भट्टी सी तपती थी रसोई।ऊपर से बच्चों के स्कूल की छुट्टियाँ चल रही हैं तो उनकी नित नई फरमाइश अलग से । आज ये बनाओ मम्मी , कल वो बनाओ। परेशान होकर शुभा ने आज फिर राघव से कहा।

"अरे कहीं देखा है किचिन में कूलर ? फिर कूलर की हवा गैस पर लगेगी कि नहीं?”राघव ने लापरवाही से कहा।

"हाँ देखा है , खूब देखा है, कूलर क्या ए. सी. भी देखा है। और खिड़की में थोड़ा सा तिरछा करके लगा देंगे…अरे वो सब मेरा सिरदर्द है, मैं मैनेज कर लूँगी न…तुम बस आज छोटा कूलर लेकर आओ। कबसे कह रही हूँ तुम सुनते क्यों नहीं हो ? तुमको खाना बनाना पड़े तो पता चले। बना- बनाया मिल जाता है, तो तुमको क्या पड़ी है….!” 

बहुत देर तक शुभा झुँझला कर छनछनाती रही लेकिन राघव न्यूज पेपर में सिर घुसाए तटस्थ भाव से अनसुना कर बैठे रहे। 

आज शुभा का गुस्सा चरम पर था। चेहरा गर्मी और क्रोध से लाल भभूका हो रहा था। ऐसे काम नहीं चलेगा कुछ करना पड़ेगा । मन ही मन कुछ सोच कर मुस्कुराई।

कुकर गैस पर चढ़ा कर राघव से बोली " देखो दो सीटी आ जाएं तो गैस बन्द कर देना मैं नहाने जा रही हूँ ।” बाथरूम में जाकर चुपचाप सीटी आने का इंतज़ार करने लगी। जैसे ही दो सीटी आईं राघव के रसोई में जाते ही दबे पाँव शुभा ने दौड़ कर रसोई का दरवाजा बन्द करके बाहर से कुँडी लगा दी।

"अरे रे…ये क्या कर रही हो ? खोलो दरवाजा”

" शर्मा जी जरा दस मिनिट तो देखो खड़े होकर, मैं नहा कर आती हूँ , तब तक कश्मीर के मजे लो ।” राघव का गर्मी के मारे बुरा हाल हो गया। बेतरह गर्मी से बेहाल होकर चीख- पुकार मचाने लगे। 

ऊपर के कमरे में पढ़ रही पूजा पापा की आवाज़ सुनकर दौड़ी आई और किचिन का दरवाजा खोला। बौखलाए से राघव बड़बड़ाते हुए कमरे में कूलर के सामने भागे। माँ की हरकत सुनकर हंस कर पूजा बोली "हा-हा …पापा बिना बात क्यों पंगा लेते हो मम्मी से, सीधी तरह से मान क्यों नहीं लेते उनकी बात !”

शाम को किचिन में गुनगुनाते हुए शुभा कूलर की ठंडी बयार में मुस्कुराते हुए बड़े मन से डोसा बना रही थी।

                                    — उषा किरण🌸🍃




मुँहबोले रिश्ते

            मुझे मुँहबोले रिश्तों से बहुत डर लगता है।  जब भी कोई मुझे बेटी या बहन बोलता है तो उस मुंहबोले भाई या माँ, पिता से कतरा कर पीछे स...