ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

गुरुवार, 5 अगस्त 2021

रहमतें



हफ्ते भर पहले आँखों की कैटरेक्ट की लेजर-सर्जरी करवाई। कुल पन्द्रह मिनिट में हो गई। न कट, न इंजेक्शन , न दर्द, न हरी पट्टी, न काला चश्मा । बस आधा घन्टा बैठा कर चैक किया और जाओ घर…भई वाह ! दुनिया कुछ और  ज़्यादा रंगीन व रौशन सी नजर आई।अपनी ही बनाई पेन्टिंग के रंग कितने खुशनुमा लगे।

कई तरह की दवाइयाँ डालने को दीं और कुछ एहतियात रखने को कहा जिसमें डॉक्टर ने ये भी कहा कि पानी से आँखों को बचाने के लिए अभी सिर मत धोना।

आठ नौ दिन हो गए तो बहुत बेचैनी थी। सोचा पार्लर पर जाकर आँख को कवर कर धुलवा ही लेते हैं।खैर खूब सावधानी से तैयारी की - पार्लर का एपॉइंटमेंट, साफ फेस टॉवल, सेनेटाइजर, डबल मास्क से लैस होकर  पहुँचे और जायजा लिया …साफ- सुथराई से सन्तुष्ट होकर हमने आरिफ को समझाया

-देखो भाई हमारी आँख की सर्जरी हुई है, तो पानी न जाए…।खूब- खूब हिदायत देकर सीट पर जम गए। 

आरिफ़ ने कहा मैम बेफिक्र रहें। हम हो गए बेफिक्र और बाईं आँख को फेस टॉवल से कवर करके बैठ गए।आरिफ ने सिर पीछे करके टॉवल लगाया,

अचानक आरिफ़ ने कहा -मैम आपकी लैफ्ट आँख की सर्जरी हुई है न? 

- नहीं राइट की और कहते ही झटका लगा, अरे मगर हम तो लैफ्ट को ढाँप कर बैठे हैं। हमने आरिफ़ को घूर कर देखा झट लैफ्ट को मुक्त किया और राइट को कवर किया और पूछा।

- अरे आरिफ़ तुमने ये क्यों पूछा अचानक ? तुमको कैसे पता चला कि…तो वो हंसने लगा बोला -पता नहीं मैम, बस ऐसे ही पूछ लिया ! 

हमने शीशे में देखा तो आँख को देख कर कुछ भी नहीं लग रहा था कि सर्जरी हुई है।लेकिन हमें आरिफ़ की शक्ल में `उसका’ नूर नजर आया।

खैर, हम हैड वॉश करवा कर आ गए सुरक्षित वापिस। बात छोटी सी है परन्तु ये बात निकल नहीं रही दिल-दिमाग से। आरिफ़ को कैसे इन्ट्यूशन हुआ ? 

ये उसकी छोटी-बड़ी रहमतें ही तो हैं जो हमारे  साथ चलती हैं भेष बदल- बदल कर …गौर करो तो साफ़ दिखाई देती हैं, वर्ना हमारी औकात  बूँद बराबर भी नहीं…फिर मेरे दिल से वही आवाज आती है-


" मैं जिसका जिक्र करती हूँ

   वो मेरी फिक्र करता है …!!🙏🙏

25 टिप्‍पणियां:

  1. बचने वाले की रहमतें साथ चलती है !! सच कहा !!

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  2. बहुत बढिया संस्मरण उषा जी | निश्चित रूप से कई लोगों के पास रूहानी ताकत होती है | आरिफ भी उनमें से एक है | ईश्वर का हाथ जिसके सर हो उसेका कोई कुछ नहीं कर सकता |सच में --
    मैं जिसका जिक्र करती हूँ
    वो मेरी फिक्र करता है /////
    आत्मीयता भरे इस प्रसंग के लिए आभार और बधाई |

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  3. कहते हैं पाँच इन्द्रियों से परे एक छठी इन्द्रिय होती है जो ऐसे संकेत देती है ।
    चलिए जो भी हुआ बहुत अच्छे के लिए ही हुआ।

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    1. जी बिलकुल…ऐसी वारदातें ईश्वर के और क़रीब ला जेती हैं

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  4. " मैं जिसका जिक्र करती हूँ

    वो मेरी फिक्र करता है …!!
    बहुत बढ़िया संस्मरण आदरणीय , बहुत बधाइयाँ ।

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  5. मेरी रचना का चयन करने के लिए बहुत शुक्रिया 🙏

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  6. "ये उसकी छोटी-बड़ी रहमतें ही तो हैं जो हमारे साथ चलती हैं भेष बदल- बदल कर …गौर करो तो साफ़ दिखाई देती हैं, वर्ना हमारी औकात बूँद बराबर भी नहीं…फिर मेरे दिल से वही आवाज आती है-"" मैं जिसका जिक्र करती हूँ
    वो मेरी फिक्र करता है …
    ये देखने और समझने का नजरिया सबके पास नहीं होता उषा जी,यहां तो शिकायतों का पुलिंदा लिए बैठे है लोग जैसे ऊपर बैठा वो सिर्फ और सिर्फ उन्हें दुःख देने के लिए बैठा है। अगर खुद की नजर साफ होती तो देख लेते वो तो "आरिफ" के रूप में भी हमारी फ़िक्र करता है।
    सुंदर संस्मरण ,सादर नमन आपको

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    1. उसकी रहमतों का अन्त नहीं कामिनी जी। कई बार घोर दर्द व कष्ट में लड़ी भी हूँ लेकिन सब पर से गुजर कर जब पलट कर देखा तो हैरानी हुई कि मैं कैसे ये दरिया पार कर सकी ? मैंने` उसे’ हमेशा साथ महसूस किया है…बहुत आभार कि आपने समझा🙏

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  7. ये सच है कई बार हम इत्तेफाक कह देते हैं इसे पर सच कहूँ तो ये रहमत ही होती है ... कब कैसे आती है बताती नहीं ... अच्छी पोस्ट ...

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  8. जी…बस महसूस करने की बात है …धन्यवाद 😊

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  9. बढ़िया प्रसंग साझा किया है आपने! शुभकामनायें।


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  10. ये उसकी छोटी-बड़ी रहमतें ही तो हैं जो हमारे साथ चलती हैं भेष बदल- बदल कर …गौर करो तो साफ़ दिखाई देती हैं। सही कहा आपने...बहुत सुन्दर और मन में असीम शक्ति पर विश्वास जगाता प्रसंग ।

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  11. बहुत सुन्दर संस्मरण , जिंदगी में कई बार बहुत से ऐसे संकेत मिलते हैं जिन पर गौर करना चाहिए , अंधेरे के बाद उषा की किरण ...

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