ऐ दोस्त
अबके जब आना न
तो ले आना हाथों में
थोड़ा सा बचपन
घर के पीछे बग़ीचे में खोद के
बो देंगे मिल कर
फिर निकल पड़ेंगे हम
हाथों में हाथ लिए
खट्टे मीठे गोले की
चुस्की की चुस्की लेते
करते बारिशों में छपाछप
मैं भाग कर ले आउंगी
समोसे गर्म और कुछ कुल्हड़
तुम बना लेना चाय तब तक
अदरक इलायची वाली
अपनी फीकी पर मेरी
थोड़ी ज़्यादा मीठी
और तीखी सी चटनी
कच्ची आमी की
फिर तुम इन्द्रधनुष थोड़ा
सीधा कर देना और
रस्सी डाल उस पर मैं
बना दूंगी मस्त झूला
बढ़ाएँगे ऊँची पींगें
छू लेंगे भीगे आकाश को
साबुन के बुलबुले बनाएँ
तितली के पीछे भागें
जंगलों में फिर से भटक जाएँ
नदियों में नहाएँ
चलो न ऐ दोस्त
हम फिर से बच्चे बन जाएँ ...!!
— उषा किरण
चित्र ; Pinterest से साभार
मेरी कविता का चयन करने के लिए बहुत शुक्रिया अनीता जी 😊
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना प्रिय ऊषा जी।
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कितना कुछ तो है
पिछली गलियों में सहेजा हुआ
बचपन की पगडंडियों की
कच्ची धूप
रेत के घरौंदे में सजे
रंग-बिरंगे काँच और पन्नियाँ
और एक अधूरी तस्वीर
जिसके रंग समय के साथ
गहराते रहे
दिन,महीने,साल में बदलते
चंद पल
ठहरे है उसी मोड़ पर
हथेलियों से छूटकर गिरी
जिस राह पर,
रात लम्हों को
चुनते बीत जाती है।
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सस्नेह
आह श्वेता जी ! कभी-कभी हमारी रचनाएं हमें कितना करीब ला देती हैं। हम वो पढ़ लेते हैं कई बार जो अनकहा रह जाता है…निस्संदेह बहुत गहरी दृष्टि व अनुभूति है आपकी…आपकी लिखी कविता को कई बार पढ़ गई…बहुत सुन्दर लिखी है …बहुत प्यार और शुक्रिया मेरी रचनाओं को इतने मन से पढ़ कर प्यार देने के लिए 😍🥰
जवाब देंहटाएंबचपन की याद की बात हो और मन तितली की तरह न उड़े कैसे हो सकता है, कच्ची अमिया न खाए, झूला न झूले,बुलबुले न उड़ाए, ये सारी स्मृतियां ही तो जीवन को तरोताजा रखती हैं,बहुत सुंदर कविता। शुभकामनाएं एवम बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार जिज्ञासा जी कविता को प्यार से पढ़ने के लिए😊
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद आलोक जी😊
हटाएंअहा!! बहुत सुंदर मोह ग्रे वो लम्हे जो हर एक की हिस्सेदारी में हैं बस कौन कितना महसूस करता है और सहेजता है ।
जवाब देंहटाएंकच्ची उम्र के पक्के सपने।
वाह!
बहुत आभार 😊
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