ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

यूँ ही लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
यूँ ही लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

बुधवार, 14 मई 2025

 


आप घर का कोना- कोना सँवारते हैं 

रोज झाड़- पोंछ करते हैं 

कपड़े-गहने सहेजते हैं 

कार- स्कूटर की हवा चैक करते हैं ….

लेकिन क्या पारिवारिक संबंधों, पड़ोसी और दोस्ती के रिश्तों को भी…सहेजते हैं, संभालते हैं , चिंतन करते हैं, उनमें ऑक्सीजन भरते हैं …नहीं या हाँ ???🤔


कुछ इस तरह

 जिन संबंधों को हम भावनाओं के रेशमी तन्तुओं से बुनते हैं, प्यार की सुगन्ध डालते हैं, दिल के क़रीब रखते हैं, वे ही संबंध कभी-कभी जरा सी ठेस स...