ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

बुधवार, 18 अक्तूबर 2023

यूँ ही

 


ताताजी कैप्सटन की तम्बाकू और कागज पार्सल से मंगवाते थे और बहुत सलीके से अपनी गोरी सुघड़ उंगलियों से बनाकर सिगरेट केस में जमा कर सहेज लेते थे और सारे दिन बीच- बीच में बहुत सुकून से कश लगाते रहते थे. 


हमें सिगरेट की खुशबू बचपन से ही बहुत पसन्द थी. शायद उस खुशबू के साथ उनका अहसास लिपटा रहता था इसीलिए, इसीलिए शायद आज भी हमें वो खुशबू प्रिय है.कई बार जब वो टॉयलेट में या बगीचे में होते तो हम और भैया चुपके से एक निकाल लेते और छिप  कर सुट्टे लगाते.हमें लगता था कि उनको  पता नहीं चलता होगा. 


शादी होने के कई साल बाद हम सब बैठे गप्पें  मार रहे थे तो पति ने ताताजी को बताया कि " एक बार उषा हमसे कह रही थीं कि आप सिगरेट पिया करो!” सुनकर वो हँस पड़े और हम झेंप गए.  हमने कहा कि हमें सिगरेट की खुशबू बहुत अच्छी लगती है तो ताताजी बोले " हाँ  तभी बचपन में हमारे सिगरेट केस से निकाल कर तुम और डब्बू पी लेते थे कभी-कभी!” हम और भैया हैरान हो गए कि उनको पता था पर कभी भी टोका नहीं । हमने पूछा "आपको कैसे पता चलता था?”  तो हंसकर बोले "मैं गिन कर रखता था।” आज भी सोचती हूँ कि कुछ कहा क्यों नहीं? मेरे बच्चे ऐसा करते तो डाँट तो जरूर ही खाते.


अम्माँ कहती थीं कि बचपन में हम बहुत जिद्दी थे और शाम होते ही जाने कौन सा, किस जन्म का दु:ख याद आ जाता था कि रोज रोने लगते और किसी तरह नहीं चुपते थे. आज भी शाम होने पर कभी-कभी वो अंदर छिपी बच्ची उदास हो जाती है बेवजह. अम्माँ नौकर को कहतीं " जा मुल्लू इन्हें साहब के पास क्लब लेकर जा!” एक दो घन्टे बाद ताताजी के कान्धे पर बैठे हम खूब हंसते- खिलखिलाते लौटते. 


ताताजी, आपके कान्धे पर बैठकर हमें जरूर लगता होगा जैसे हम दुनियाँ में सबसे ऊँचे हो गए, हाथ बढ़ा कर चाँद छू सकते हैं . ताताजी आप क्यूँ अचानक याद आ रहे हैं आज इतना. आज तो फादर्स डे भी नहीं…आपकी बर्थडे भी नहीं. लेकिन याद आने की कोई वजह हो ये जरूरी तो नहीं…पर कई यादें उदास कर जाती हैं ….बस यूँ ही….😔

-उषा किरण 

फोटो: गूगल से साभार 

(अन्तर्राष्ट्रीय बालिका दिवस पर मेरी लघुकथा आज 11 अक्टूबर को  भास्कर के परिशिष्ट मधुरिमा में प्रकाशित हुई है।)

बुधवार, 11 अक्तूबर 2023

छोटी देवी


 अन्तर्राष्ट्रीय बालिका दिवस पर मेरी लघुकथा आज दैनिक भास्कर के परिशिष्ट मधुरिमा में प्रकाशित हुई है। आप भी पढ़ेंगे तो मुझे खुशी होगी 😊_________________


छोटी  देवी 

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सुबह से घर में चहल- पहल है । आज अम्माँ जी के एकादशी का उद्यापन है । पंडित जी आँगन में पूजा की तैयारियों में व्यस्त हैं ।अम्माँ जी भी पास कुर्सी पर बैठी निगरानी कर रही हैं ।

अम्माँ जी ने ठाकुर जी की सेवा ले रखी है। वे ठाकुर जी की दिन- रात सेवा में लगी बुरी तरह थक जाती हैं पर उनका श्रंगार, भोजन, स्नान इत्यादि सब अपने ही हाथ से करती हैं । सारे दिन उनका हाथ में माला पर जाप चलता ही रहता है। 

एक दिन चित्रांगदा से बोलीं- “बहू सोच रही हूँ एकादशी का उद्यापन कर ही  दूँ, न जाने कब गोपाल जी अपने पास बुला लें ।” 

आज उसी अनुष्ठान की तैयारी चल रही है।

" अरी बहू गंगाजल नहीं है, जरा पूजा से उठा लाइयो !” गंगाजल लाने गई चित्रांगदा ने पूजा के कमरे से ही शोर सा सुना। अम्माँ जी गुस्से से चिल्ला रही थीं और पंडित जी का भी ऊँचा स्वर सुनाई दे रहा था।

" हे राम इतनी सी देर में क्या गड़बड़ हो गई…” बड़बड़ाती - हड़बड़ाती हुई चित्रांगदा नीचे भागी। 

जाकर क्या देखती है कि रीना किचिन में खाना बनाने  में व्यस्त थी, इसी बीच न जाने कब  किचिन से निकल कर घुटने चलती हुई उसकी साल भर की बेटी भोग वाले डिब्बे से लड्डू निकाल कर, सारे उपद्रव से बेख़बर गाल भर- भर कर खूब मजे से, हिल- हिल कर लड्डू खाती हुई किलक रही है और अम्माँ जी का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच चुका है । 

पंडित जी भी भ्रष्ट- भ्रष्ट कह कर आग में घी डालने का काम कर रहे हैं।रीना रसोई से भाग कर आई और आटा लगे हाथों से  शर्मिंदा सी नतशिर खड़ी हो गई।अम्माँ जी उसे बुरी तरह से डाँटने लगीं।

चित्रांगदा ने लपक कर बच्ची को गोद में उठा लिया और हंस कर बोली " अरे पंडित जी देखिए तो  ये वही साक्षात देवी मैया तो  हैं, जिनके आप कंजकों में पाँव पूजते हैं। ठाकुर जी से पहले भोली मैया ने भोग लगा लिया तो  क्या हो गया! कुछ नहीं होता, बच्चा है !”

" शैतान कहीं की” बच्चे के गाल पर हंसते हुए एक हल्की सी चपत लगा कर , खिसियाई, नत- शिर खड़ी रीना का  हाथ पकड़कर चित्रांगदा वहाँ से ले गई।

                                  —उषा किरण 

अन्तर्राष्ट्रीय बालिका दिवस पर मेरी यह लघुकथा दैनिक भास्कर के परिशिष्ट मधुरिमा में प्रकाशित हुई है।

सोमवार, 9 अक्तूबर 2023

तीन तेरह



तीन मेरे तेरे तेरह

तीन तेरह

तीन तेरह

तीन तेरह

तेरा तेरा

तेरा तेरा 

तेरा तेरा

तेरा

तेरा

तेरा 

तेरा 

तेरा

तेरा

तेरा

तेरा

तेरा….🌸🌼

                    —उषा किरण

मुँहबोले रिश्ते

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