शुभदा की जॉब लगते ही घर में हंगामा हो गया। जिठानियों के ताने शुरु हो गए-" नौकरी करने वाली औरतों के घर बर्बाद हो जाते हैं, बच्चे आवारा हो जाते हैं, पति हाथ से निकल जाते हैं ….!”
शुभदा सब सुनती और मुस्कुरा कर टाल जाती
बाबूजी के सामने पेशी हुई- " अरे बहू , हमारी सात पुश्तों में किसी बहू ने नौकरी नहीं की,क्या कहेंगे सब कि बहू की कमाई खा रहे हैं, नाक कट जाएगी !” शुभदा ने किसी तरह उनको समझाया कि नहीं कटेगी नाक।
पाँच साल के लम्बे संघर्ष व कड़ी मेहनत के बाद आखिर वो आज यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर के पद परआसीन थी।
यूनिवर्सिटी लिए तैयार होकर ऊपर से सीढ़ियाँ उतरते अपना नाम सुन कर ठिठक गई।बड़ी जिठानी अपनी बेटी को स्कूल के लिए तैयार करते हुए समझा रही थीं- "अरी पढ़ने में मन लगाया कर …चाची की तरह काबिल बन कर नौकरी करना…वर्ना हमारी तरह मूढ़ बन कर सारी ज़िंदगी चूल्हा ही फूँकेगी !”
शुभदा के होठों पर एक सुकून भरी मुस्कान आ गई ।
—उषा किरण
फोटो: गूगल से साभार
वक़्त के साथ सोच भी बदलती है । प्रेरक लघुकथा ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार संगीता जी !
हटाएंआपकी लिखी रचना 30 मई 2022 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
हार्दिक आभार संगीता जी !
हटाएंNamaskaar mam
जवाब देंहटाएंI m chhaya Tyagi.If I m not wrong .you were professor in Ginni Devi Modi girls before 30 years I was student of that college. I read your poetry and stories.
Now I want to your interview on sahitya - Prabodhini chennel.in program sahituik safarnama.
https://youtu.be/6K8cDMD4aNM
https://youtu.be/GgN4wq5f2N8
Please reply
chhayatyagi211@gmail.com
आपको मेल भेजी है छाया, चैक कर लें प्लीज
हटाएंव्वाहहहहह..
जवाब देंहटाएंशानदार..
सादर..
स्त्रियों की आर्थिक निर्भरता पर और उनके कैसी भी नौकरी करने पर सवाल उठाने वाले मूर्खों की नितांत उपेक्षा की जानी चाहिए.
जवाब देंहटाएंबिलकुल की जानी चाहिए 😊
हटाएंदेर सबेर समझ ही जाते हैं सब..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर एवं प्रेरक लघुकथा।
गेर से ही सही समझ जाएं यही बहुत है😊
हटाएंसुधा जी, देर से ही सही समझ जाएं यही बहुत है😊
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (31-5-22) को हे सर्वस्व सुखद वर दाता(चर्चा अंक 4447) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
कामिनी जी मेरी रचना का चयन करने के लिए हृदय से आभार 🙏
हटाएंरूढ़िवादी मानसिकता और परंपराओं से संघर्ष कर सफलता प्राप्त करने वाले सभी के लिए प्रेरक व्यक्तित्व बन जाते हैं।
जवाब देंहटाएंसकारात्मक संदेश युक्त लघुकथा।
श्वेता जी हृदय से आभार 🙏😊
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंआलोक जी हृदय से आभार 🙏
हटाएंआलोचना करने वाले भी सराहनीय को सराहनीय मानते हैं यह कभी न कभी झलक ही जाता है। सुन्दर लघुकथा।
जवाब देंहटाएंवक्त सही जवाब दे देता है😊…शुक्रिया
हटाएंबदलती मानसिकता की सुन्दर लघुकथा।
जवाब देंहटाएंसोच बदलेगी तो जीवन का स्तर भी बदलेगा ही
जवाब देंहटाएंजी बिलकुल…हृदय से धन्यवाद
हटाएंसुंदर लघुकथा।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया बहुत
हटाएंबहुत सुंदर लघुकथा।
जवाब देंहटाएंआपका हृदय से आभार
हटाएंवक्त के साथ बहुत कुछ बदल गया है
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ बदला है और बहुत कुछ नहीं भी…!! शुक्रिया
हटाएंबहुत सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति प्रिय उषा जी।समय के साथ जीवन के रंग बदलते देर नहीं लगती।बस खुद को साबित करने का ज़ज़्बा चाहिये।
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