निकलूँ जब अन्तिम यात्रा पर
तब मेरे सिरहाने सहेज देना
कुछ रंग शोख तितली से और
कुछ बुझे-बुझे राख से
कुछ ब्रश, कुछ स्याही और
कुछ कलम भी
थोड़े से खाली पन्ने और
कुछ बर्फ से सफेद
कोरे कैनवास भी
और हाँ…कुछ सुर-ताल
और कुछ गीत भी
हो सकता है मन कभी
बहुत ज़्यादा सील जाए
तो रख देना साथ मुट्ठी भर धूप
और ताप से मन तप जाए कहीं तो
रख देना कुछ मलय समीर
और कुछ बारिशें भी…!
ताकि अनजान देश के
अनजान सफर में
उमड़ने लगें जब भावों के बादल
या फिर जब मन करना हो खाली
तब कूक सकूँ कोयल संग
ढल सकूँ कैनवास पर तब
सुन्दर- सुगन्धित फूल बन या
कोरे पन्नों में कविता बन कर…!
जैसे धरती पर बिछ जाते हैं
फूल हरसिंगार के
चमकते हैं जुगनू
झिलमिलाते हैं सितारे
मचलती हैं लहरें
मैं भी बिछ जाऊँगी तप्त धरती पर
एक दिन तब सतरंगी किरण या
शीतल ओस बनके…!!!
— उषा किरण
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 03 मई 2022 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
यशोदा जी बहुत धन्यवाद आपका🙏
हटाएंमैं वहाँ गई पर टिप्पणी नहीं हो पा रही है। मेरी रचना शामिल करने का बहुत शुक्रिया
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (3-5-22) को "हुई मन्नत सभी पूरी, ईद का चाँद आया है" (चर्चा अंक 4419) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
कामिनी जी बहुत आभार आपका🙏
हटाएंतब कूक सकूँ कोयल संग
जवाब देंहटाएंढल सकूँ कैनवास पर तब
सुन्दर- सुगन्धित फूल बन या
कोरे पन्नों में कविता बन कर…!
जैसे धरती पर बिछ जाते हैं
फूल हरसिंगार के
अति सुंदर,एक कलाकार के मन के भावों की अद्भुत अभिव्यक्ति,निशब्द हूँ
प्रशंसा के लिए शब्द ही नहीं है,बस नमन है आपकी लेखनी को,सादर
बहुत धन्यवाद आपका कामिनी जी😊
हटाएंसच मानवीय इच्छाएं कभी ख़त्म नहीं होती, ये हमारे साथ चले तो बात ही कुछ और है। बहुत अच्छी कामना व्यक्त की है कविता के माध्यम से आपने
जवाब देंहटाएंबहुत आभार कविता जी 😊
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंआभार आलोक जी !
हटाएंवाह! कितनी सुंदर वसीयत की है आपने, कुदरत के साथ जीने का यह अंदाज़ निराला है
जवाब देंहटाएंबहुत आभार अनीता जी !
हटाएंवाह!बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंबहुत धन्यवाद!
हटाएंलाजवाब रचना । अंतिम यात्रा के कितने पड़ाव लिख दिए । कभी कविता बनना है तो कभी कैनवास पर उतरना है , शोख रंगों में डूबना है तो कहीं हरसिंगार की तरह बिछ जाना है । बहुत खूब । 👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंसंगीता जी कविता पसन्द करने का बहुत शुक्रिया…यूँ ही हौसला बढ़ाती रहें 😊
हटाएंबहुत धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंलाज़बाब रचना
जवाब देंहटाएंउर्मिला जी बहुत धन्यवाद!
हटाएंबहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत आभार मनोज जी !
हटाएंअंतस को भिगोती सराहनीय रचना।
जवाब देंहटाएंसादर
धन्यवाद अनीता जी !
हटाएंखूबसूरत ख्वाहिश का खूबसूरत इज़हार ! मुट्ठी भर धूप ......
जवाब देंहटाएंबहुत आभार नूपुर जी !
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