ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

मंगलवार, 31 अगस्त 2021

विदा दोस्त...!






आज मैंने पीछे दरवाजे के पास लॉन में

त्रिभंग मुद्रा में खड़े प्यारे दोस्त आम के पेड़ से

लता की तरह लिपट कर विदा ली 


उसके गिर्द अपनी बाहें लपेट कर 

कान में फुसफुसा कर कहा

अब तो जाना ही होगा

विदा दोस्त...!


तुम सदा शामिल रहे 

मेरी जगमगाती दीवाली में

होली  की रंगबिरंगी फुहारों में

मेरे हर पर्व और त्योहारों में  


और साक्षी रहे 

उन अंधेरी अवसाद में डूबी रातों के भी

डूबते दिल को सहेजती 

जब रो पड़ती तुमसे लिपट कर

तुम अपने सब्ज हाथों से सिर सहला देते


पापा की कमजोर कलाई और

डूबती साँसों को टटोलती हताशा से जब 

डबडबाई आँखों से बाहर खड़े तुमको देखती

तो हमेशा सिर हिला कर आश्वस्त करते 

तुम साक्षी रहे बरसों आँखों से बरसती बारिशों के 

तो मन की उमंगों के भी


तुम कितना झूम कर मुस्कुरा रहे थे जब

मेरे आँगन शहनाई की धुन लहरा रही थी

ढोलक की थापों पर तुम भी

बाहर से ही झाँक कर ताली बजा रहे थे

कोयल के स्वर में कूक कर मंगल गा रहे थे


पापा के जाने के बाद तुम थे न 

पीली-पीली दुआओं सी बौरों से 

आँगन भर देते और

अपने मीठे फलों से झोली भर असीसते थे…!


मैं जरूर आऊँगी कभी-कभी मिलने तुमसे

एक पेड़ मात्र तो  नहीं हो तुम मेरे लिए

कोई  जाने न जाने पर तुम तो जानते हो न 

कि क्या हो तुम मेरे लिए…!


अपनी दुआओं में याद रखना मुझे

आज विदा लेती हूँ दोस्त

फ़िलहाल…अलविदा...!!!

                     — उषा किरण 


रविवार, 22 अगस्त 2021

अपनी- अपनी लड़ाई

 





दो बच्चे मेरे और दोनों जैसे उत्तरी घ्रुव और दक्षिणी ध्रुव।


बेटी नर्सरी में थी तो प्राय: आनन्दिता की सताई हुई बिसूरती हुई घर आती।

-आज आनन्दिता ने थप्पड़ मारा।

-आज  आनन्दिता ने नोचा।

-आज  आनन्दिता ने पेंसिल छीन ली।

-आज  आनन्दिता ने टिफिन खा लिया ।


मेरा दिल डूब-डूब जाता अपनी मासूम राजकुमारी के आँसुओं में। मैं कहती कि उसकी शिकायत मैम से कर दिया करो। पर वो कहती कि-

-मम्मी उसे कोई कुछ नहीं कह सकता मैम भी नहीं, क्योंकि उसकी दादी का ही तो स्कूल है और दादी ही तो प्रिंसिपल हैं। वो सभी बच्चों को मारती है।


वो बेहद मासूमियत से हाथ नचा कर कहती।

मुझे बहुत ही गुस्सा आता कि ये क्या बात है ? बच्ची की शिक्षा की शुरुआत ही एक गलत व्यवस्था और अन्याय सहने से हो रही है।


मैं बेहद टेंशन में आ गई। कई बार स्कूल में जाकर टीचर को शिकायत भी की, परन्तु वो आँखें फैला बेचारगी से एक ही बात दोहरातीं कि,

-क्या करें वो तो प्रिंसिपल की पोती है…!


खैर फिर नर्सरी के बाद एल के जी में दोनों का दूसरे  स्कूल में एडमिशन हुआ।दोनों एक ही रिक्शे से जाती थीं।परन्तु उसकी हाथ चलाने की इतनी आदत थी कि वो रिक्शे में भी दादागिरी करती। सब बच्चों को चाँटे मारती रहती थी। 


एक दिन फिर  बेटी रोते हुए घर आई, क्योंकि गेम्स पीरियड के बाद उसका नया ब्लेजर छीन कर आनन्दिता ने अपना पुराना ब्लेजर उसे दे दिया था। उसने काफी कहा पर वो कहती रही ये ही मेरा है।


यूँ तो मैं रोज रात को सोने से पहले उसे कहानियों में लपेट कर दया, अहिंसा,करुणा, क्षमा, सहनशीलता, देशभक्ति, भगवान पर आस्था, जैसे मानवीय मूल्यों की घुट्टी पिलाती थी, लेकिन मैंने उस दिन उसको बैठा कर वो समझाया जो मैं बिल्कुल नहीं चाहती थी।मैंने सख्ती से कहा -

-तुम पिटती क्यों रहती हो, तुम्हारे हाथ नहीं हैं क्या? तुम भी मारो उसको पलट कर। और एक हाथ पकड़ कर दूसरे गाल पर लगाना थप्पड़ जोर से। यदि कोई कुछ कहे तो कह देना ये रोज मारती है इसीलिए मारा।डरना मत कोई कुछ कहेगा तो मैं देख लूँगी।


खूब सिखा- पढ़ा कर भेजा। चाह तो यही रही थी कि मैं ही जाकर मसला निबटाऊँ, लेकिन मुझे खुद अपनी जॉब पर जाना होता था। फिर लगा कि मैं कहाँ तक इसको सपोर्ट करूँगी, कब तक दुनिया से बचाऊँगी आखिर में तो इसे अपनी लड़ाई अपने शस्त्रों से खुद ही लड़नी होगी।


दूसरे दिन वो बहुत खुश कूदती- फाँदती आई,

-मम्मा ले आई अपना कोट।पता है आज जब उसने मारा तो मैंने उसका हाथ पकड़ कर जोर से चाँटा मारा और कहा मेरे हाथ नहीं हैं क्या ? तुम मारोगी तो मैं भी मारूँगी।मम्मी वो एकदम से डर गई। फिर मैंने उसके पापा से भी कहा कि अंकल ये मुझे रोज मारती है और मेरा कोट नहीं दे रही जबकि अन्दर मेरा नाम लिखा है आप देख लीजिए। पता है मम्मी फिर उसके पापा ने उसको डाँटा और एक चाँटा भी मारा और कहा सॉरी बोलो उसे और कोट वापिस करो ...मम्मी बड़ा मजा आया आज!”


मन कुछ कुड़बुड़ाया -गलत शिक्षा नही दे रही हो तुम बच्ची को ? हिंसक होना सिखा रही हो ...तुमको तो ये कहना था न कि, कोई एक चाँटा मारे तो बेटा दूसरा गाल भी आगे कर दो। दुर् कह कर मैंने घुड़की दी और राहत की साँस ली।


वैसे बाद में वे दोनों बहुत अच्छी दोस्त बनीं, आज भी हैं।


उस दिन मेरी बेटी ने मुझसे बेदर्द , असभ्य , अधिकारों का हनन करने वाले समाज के बीच सर्वाइव करने का पहला पाठ पढ़ा। और जाना कि  आप कितनी भी मजबूत या कमजोर जमीन पर क्यों न  खड़े हों लेकिन अपनी लड़ाई आपको  अपने हौसलों से खुद तो लड़नी ही पड़ेगी। बिना लड़े जीत  कोई दूसरा आपको तश्तरी में रख कर भेंट नहीं कर सकता ।


फिर उसके बाद जिंदगी में वो कभी भी, किसी से भी नहीं पिटी।

                                                —उषा किरण 

गुरुवार, 5 अगस्त 2021

रहमतें



हफ्ते भर पहले आँखों की कैटरेक्ट की लेजर-सर्जरी करवाई। कुल पन्द्रह मिनिट में हो गई। न कट, न इंजेक्शन , न दर्द, न हरी पट्टी, न काला चश्मा । बस आधा घन्टा बैठा कर चैक किया और जाओ घर…भई वाह ! दुनिया कुछ और  ज़्यादा रंगीन व रौशन सी नजर आई।अपनी ही बनाई पेन्टिंग के रंग कितने खुशनुमा लगे।

कई तरह की दवाइयाँ डालने को दीं और कुछ एहतियात रखने को कहा जिसमें डॉक्टर ने ये भी कहा कि पानी से आँखों को बचाने के लिए अभी सिर मत धोना।

आठ नौ दिन हो गए तो बहुत बेचैनी थी। सोचा पार्लर पर जाकर आँख को कवर कर धुलवा ही लेते हैं।खैर खूब सावधानी से तैयारी की - पार्लर का एपॉइंटमेंट, साफ फेस टॉवल, सेनेटाइजर, डबल मास्क से लैस होकर  पहुँचे और जायजा लिया …साफ- सुथराई से सन्तुष्ट होकर हमने आरिफ को समझाया

-देखो भाई हमारी आँख की सर्जरी हुई है, तो पानी न जाए…।खूब- खूब हिदायत देकर सीट पर जम गए। 

आरिफ़ ने कहा मैम बेफिक्र रहें। हम हो गए बेफिक्र और बाईं आँख को फेस टॉवल से कवर करके बैठ गए।आरिफ ने सिर पीछे करके टॉवल लगाया,

अचानक आरिफ़ ने कहा -मैम आपकी लैफ्ट आँख की सर्जरी हुई है न? 

- नहीं राइट की और कहते ही झटका लगा, अरे मगर हम तो लैफ्ट को ढाँप कर बैठे हैं। हमने आरिफ़ को घूर कर देखा झट लैफ्ट को मुक्त किया और राइट को कवर किया और पूछा।

- अरे आरिफ़ तुमने ये क्यों पूछा अचानक ? तुमको कैसे पता चला कि…तो वो हंसने लगा बोला -पता नहीं मैम, बस ऐसे ही पूछ लिया ! 

हमने शीशे में देखा तो आँख को देख कर कुछ भी नहीं लग रहा था कि सर्जरी हुई है।लेकिन हमें आरिफ़ की शक्ल में `उसका’ नूर नजर आया।

खैर, हम हैड वॉश करवा कर आ गए सुरक्षित वापिस। बात छोटी सी है परन्तु ये बात निकल नहीं रही दिल-दिमाग से। आरिफ़ को कैसे इन्ट्यूशन हुआ ? 

ये उसकी छोटी-बड़ी रहमतें ही तो हैं जो हमारे  साथ चलती हैं भेष बदल- बदल कर …गौर करो तो साफ़ दिखाई देती हैं, वर्ना हमारी औकात  बूँद बराबर भी नहीं…फिर मेरे दिल से वही आवाज आती है-


" मैं जिसका जिक्र करती हूँ

   वो मेरी फिक्र करता है …!!🙏🙏

मंगलवार, 3 अगस्त 2021

दोस्त




ऐ दोस्त

अबके जब आना न

तो ले आना हाथों में

थोड़ा सा बचपन

घर के पीछे बग़ीचे में खोद के

बो देंगे मिल कर

फिर निकल पड़ेंगे हम

हाथों में हाथ लिए

खट्टे मीठे गोले की

चुस्की की चुस्की लेते

करते बारिशों में छपाछप

मैं भाग कर ले आउंगी

समोसे गर्म और कुछ कुल्हड़

तुम बना लेना चाय तब तक

अदरक  इलायची वाली

अपनी फीकी पर मेरी

थोड़ी ज़्यादा मीठी

और तीखी सी चटनी

कच्ची आमी की

फिर तुम इन्द्रधनुष थोड़ा

सीधा कर देना और

रस्सी डाल उस पर मैं

बना दूंगी मस्त झूला

बढ़ाएँगे ऊँची पींगें

छू लेंगे भीगे आकाश को

साबुन के बुलबुले बनाएँ

तितली के पीछे भागें

जंगलों में फिर से भटक जाएँ

नदियों में नहाएँ

चलो न ऐ दोस्त

हम फिर से बच्चे बन जाएँ ...!!

                        — उषा किरण 

चित्र ; Pinterest से साभार

मुँहबोले रिश्ते

            मुझे मुँहबोले रिश्तों से बहुत डर लगता है।  जब भी कोई मुझे बेटी या बहन बोलता है तो उस मुंहबोले भाई या माँ, पिता से कतरा कर पीछे स...