ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

शनिवार, 28 मई 2022

मौन



सुनो तुम-

एक ही तो ज़िंदगी है 

बार- बार

और कितनी बार 

उलट-पलट कर 

पढ़ती रहोगी उसे

तुम सोचती हो कि

बोल- बोल कर 

अपनी नाव से

शब्दों को उलीच 

बाहर फेंक दोगी

खाली कर दोगी मन

पर शब्दों का क्या है

हहरा कर 

आ जाते हैं वापिस

दुगने वेग से….

देखो जरा 

डगमगाने लगी है नौका

जिद छोड़ दो

यदि चाहती हो 

इनसे मुक्ति, तो

कहा मानो 

चुप होकर बैठो और

गहरे मौन में उतर जाओ अब…!

                               —उषाकिरण

10 टिप्‍पणियां:

  1. ये मौन भी कभी कभी डगमगा देता है ।
    इसलिए बोलो मत लेकिन किसी के साथ मन को बाँट लो । शायद कुछ सुकून मिले , क्यों कि मैं जानती हूँ कि मौन भी बहुत भयानक स्थिति पैदा करता है ।।

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    1. कितना बोले आखिर इंसान …सुन- सुन कर अपने ही कान पक जाते हैं कभी- कभी…तब लगता है बस अब गहन मौन में डूबते जाओ…धन्यवाद आपका😊🙏

      हटाएं
  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (29-5-22) को क्या ईश्वर है?(चर्चा अंक-4445) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    ------------
    कामिनी सिन्हा

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मेरी रचना का चयन करने के लिए आपका हृदय से आभार…देरी से आने के लिए क्षमा करें…🙏😊

      हटाएं
    2. कामिनी जी मेरी रचना का चयन करने के लिए हृदय से आभार…देरी से आने के लिए क्षमा करें 😊🙏

      हटाएं
  3. मौन .... उद्धारक हो या मारक .... सब कह देता है। सही कहा।

    जवाब देंहटाएं
  4. शब्द हहरा कर आ जाते हैं और कविता बह उठती है नदिया सी और फिर गहरे उतरते हैं मौन में अगली कविता के लिए!!बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!!

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  5. 'यदि चाहती हो

    इनसे मुक्ति, तो

    कहा मानो

    चुप होकर बैठो और

    गहरे मौन में उतर जाओ अब…'

    -सुन्दर अभिव्यक्ति!

    जवाब देंहटाएं

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