ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

शुक्रवार, 28 मई 2021

वो सुबह कभी तो आएगी...*




आजकल आसमान में रोशनी कुछ ज्यादा है


हाथ छुड़ाकर हड़बड़ी में

लोग दौड़ कर सितारे बनने की

जाने कैसी होड़ में शामिल हुए जा रहे हैं ?


धरा पर अँधेरा है या है तीखी पीली धूप

नहीं होता आँखें खोलने का साहस

 ही कुछ देखने या पढ़ने का

एक तेज झपाका जोर से पड़ता है

जैसे जोर से गाल पर कोई चाँटा जड़ता है


दुख सिर्फ़ यही नहीं कि वे चले गए

दुख ये भी है कि चार काँधों पर नहीं गए

 मन्त्र थे विलाप चंदनहार

बिना कुछ कहेसुने ऐसे कौन जाता है

विदाई के बिना बोलो तो

यूँ भी भला कोई जाता है 


सन्नाटों का कफन ओढ़े 

निकल जा रहे हैं लोग चुपचाप

मौन हैनदियाँसागरसारी कायनात 

धरती भी मौन है मौत का तांडव जारी है

पीछे हाँफती पसलियों में चीखें घुटती हैं 


ॐशान्ति...विनम्र श्रद्धांजलि लिखते

थरथराती हैं लाचार उँगलियाँ

रुको बसबहुत हुआ...अब और नहीं 

तितर-बितर हुआ...जो टूट-फूट गया

बहुत कुछ सहेजनासमेटना बाकी है 

पर पहले साँसें तो संभल जाएं

जरा तूफान तो थम जाए

जरा होश तो आए


भूल जाओ अब भी

सारा द्वेषईर्ष्या  क्रोध

पुरानी रंजिशें, आरोप-प्रत्यारोप, प्रतिशोध 

तुम्हारी निर्ममता का सही वक्त नहीं ये

हाथ बढ़ा लगा लो सबको गले

हौसला रखो...हौसला दो

दोस्तदुश्मन की लकीरें मिटा दो

पीली धूपों पर शीतल चन्दन के फाहे रखो

अब भी  समझे तो कब समझ पाओगे 

माना कि ये वक्त बहुत निर्मम है तो क्या

इन्सानियत को भूल 

दाँत बाहर निकाल भेड़िये बन जाओगे


हौसले पस्त हैं...सारे सपने कहीं छिप गए हैं

एक दिन सब ऐश्वर्यसम्पदातेरा-मेरा

यहीं तो छूट जाएंगेनिशानियाँ रह जाएंगी

और...हाथ छूट जाएंगे


बस एक ही आशा,एक ही प्रार्थना

अपनों को काँपते कलेजे से भींच

हाथ बाँध,आसमान पर टिकी हैं आँखें

बेसुध से होंठ बुदबुदाते हैं-

सर्वे भवन्तु सुखिन:,सर्वे सन्तु निरामया ...



हौसला रखोआशाओं के दिए जलाए रखो

नफरत के आगे प्रेम को हारने मत देना 

हम सब फिर मुस्कुराएंगे

मिल कर उम्मीदों केप्रेम-गीत गाएंगे

धरा पर भी एक दिन दीवाली होगी

देखना...वो सुबह जल्द ही जरूर आएगी !!


                  — उषा किरण 

37 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (29 -5-21) को "वो सुबह कभी तो आएगी..."(4080) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    --
    कामिनी सिन्हा

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. नमस्कार कामिनी जी...मेरी रचना का चयन करने का बहुत आभार🙏

      हटाएं
  3. वर्तमान हालातों का सजीव वर्णन किया है आपने आदरणीया उषा जी।

    जवाब देंहटाएं
  4. काश ये सुबह जल्दी ही आये । जो हो रहा है उसका सजीव चित्रण ।
    न जाने ये अंधेरा कब छटेगा ।
    अच्छी आशावादी रचना ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आमीन....धन्यवाद संगीता जी ...वैसे ये कल आपसे बात करने के बाद ही लिखी...प्रेरणा आप ही हैं 🥰😍

      हटाएं
    2. दुख सिर्फ़ यही नहीं कि वे चले गए

      दुख ये भी है कि चार काँधों पर नहीं गए

      न मन्त्र थे, न विलाप, न चंदनहार

      बिना कुछ कहे- सुने कौन जाता है

      विदाई के बिना बोलो तो

      यूँ भी भला कोई जाता है

      ये पढ़ते हुए लगा था मुझे कि शायद मेरी भावनाओं को उतार दिया है । लेकिन ये भी तो न जाने कितने लोग सह चुके हैं । सब कुछ बस जैसे ज़ेहन में समाता जा रहा ।

      हटाएं
    3. बस प्रभु अब दया करें 🙏

      हटाएं
  5. बेचारे आसमान ने क्या किया है। ये तो धरती वालों का ही किया धरा है।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. किसने क्या किया नहीं पता ...बस कोई अब सब ठीक कर दे ...यही प्रार्थना है🙏

      हटाएं
  6. मिल कर उम्मीदों के, प्रेम-गीत गाएंगे

    धरा पर भी एक दिन दीवाली होगी

    देखना...वो सुबह जल्द ही जरूर आएगी !! अवश्य ऐसा ही होगा।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आमीन🙏....जल्दी ही सबकी प्रार्थनाएँ सफल हों ...धरा पर फिर खुशहाली हो 😊

      हटाएं
  7. उत्तर
    1. आलोक जी आपका बहुत आभार...जब आप बहुत को दो बार लिखते हैं तो बहुत प्रोत्साहन मिलता है ...पुन: आभार🙏

      हटाएं
  8. हौसला रखो, आशाओं के दिए जलाए रखो

    नफरत के आगे प्रेम को हारने मत देना

    हम सब फिर मुस्कुराएंगे

    मिल कर उम्मीदों के, प्रेम-गीत गाएंगे

    धरा पर भी एक दिन दीवाली होगी

    देखना...वो सुबह जल्द ही जरूर आएगी !!

    बहुत ही उमदा और सटीक रचना!
    हमारे ब्लॉग पर भी आइएगा आपका स्वागत है🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  9. सामायिक परिस्थितियों का दृश्य चित्र उकेरा है आपने हृदय स्पर्शी रचना,साथ ही आशा का सुंदर संदेश।
    बहुत सुंदर सृजन।

    जवाब देंहटाएं
  10. हौसला रखना है और अपने मूल से जुड़कर अपनी जड़ों को सींचना है, यही वक्त है जब भारतीयता और मानवीयता को पूरी तरह से एक होना है. सुंदर सृजन

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. यही वक्त है जब भारतीयता और मानवीयता को पूरी तरह से एक होना है....बहुत सही बात...धन्यवाद अनीता जी😊

      हटाएं
  11. बहुत सुंदर,ऐसी ही सुबह की कामना है

    जवाब देंहटाएं
  12. हौसला रखो, आशाओं के दिए जलाए रखो

    नफरत के आगे प्रेम को हारने मत देना

    हम सब फिर मुस्कुराएंगे

    मिल कर उम्मीदों के, प्रेम-गीत गाएंगे

    धरा पर भी एक दिन दीवाली होगी

    देखना...वो सुबह जल्द ही जरूर आएगी !!

    हृदय स्पंदनों को झंकृत करती अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  13. सकारात्मक संदेश देती उत्कृष्ट रचना।

    जवाब देंहटाएं
  14. नमस्ते.....
    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की ये रचना लिंक की गयी है......
    दिनांक 27 मार्च 2022 को.......
    पांच लिंकों का आनंद पर....
    आप भी अवश्य पधारें....

    जवाब देंहटाएं
  15. फिर से पढ़ना और उस समय के साथ गुज़रना मन को भिगो गया । सुबह आते आते फिर कहीं छुप जाती है ।।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. संगीता जी मैं तो इस कविता को लिख कर भूल ही गई थी…आपने कहाँ से खोद निकाली😊…ईश्वर करे वैसा समय अब कभी न आए🙏

      हटाएं
  16. धन्यवाद संगीता जी ! मैं तो इस कविता को लिख कर भूल ही गई थी’ आपने कहाँ से खोद निकाली ? भगवान करे वैसा वक्त फिर कभी न आए😔🙏

    जवाब देंहटाएं

खुशकिस्मत औरतें

  ख़ुशक़िस्मत हैं वे औरतें जो जन्म देकर पाली गईं अफीम चटा कर या गर्भ में ही मार नहीं दी गईं, ख़ुशक़िस्मत हैं वे जो पढ़ाई गईं माँ- बाप की मेह...