ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

गुरुवार, 7 अगस्त 2025

किस ओर


अल्पना हाथ मुँह मटका कर अनुराधा को खूब खरी-खोटी और भरपूर ताने सुना, भन्ना कर, जहर उगल, पैर पटकती वापिस लौट गईं।शिप्रा ने बीच में बोलने की कोशिश की लेकिन अनुराधा ने इशारे से उसे  रोक दिया।

चाची के जाने के बाद शिप्रा फट पड़ी-

`मम्मी, क्यों सुनती हो आप सबकी इतनी बकवास? आपकी कोई गल्ती भी नहीं है, वो छोटी हैं आपसे और वो कितना कुछ बेबात सुना गईं ? आपको डाँट देना चाहिए था कस के…मतलब ही क्यों रखना ऐसे बत्तमीज लोगों से?’ शिप्रा का गुस्से से गला रुँध गया।

`अरे बेटा कैसी बात कर रही हो तुम ? अपनों को छोड़ा जाता है क्या ? देखो, दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं एक वो, जो समझदार होते हैं, सबको निभाते हैं, दूसरे वे मूर्ख, जिनको सब निभाते हैं…अब ये हमारे हाथ में है कि हम खुद को किस ओर रखते हैं !’

माँ शान्त-भाव से उठ कर चली गईं और शिप्रा सोचती रही कि, माँ कितनी बड़ी बात सूक्तियों में यूँ ही कह जाती हैं।

               — उषा किरण

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