ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

बुधवार, 20 अगस्त 2025

नचिकेता



नींद नहीं आती जबतब

बेचैनी में तकिया दूसरी दिशा में रख पैर दक्षिणदिशा में कर लेती हूँ 

और पल भर में गहरी नींद सो जाती हूँ


माँ कहती थीं-दक्षिण में पैर करके नहीं सोते

यमराज की दिशा है

पर मेरी नीदों के मन में  तो मानो कोई नचिकेता समा गया है 

बारबार वहीं का पता पूँछता

उधर ही चल पड़ना चाहता है


मैं भी गई थी यम-देहरी तक,

जहाँ मृत्यु खामोश खड़ी थी।

कैसी दुस्तर गाँठें थीं 

जो ढीली पड़ी नहीं 

प्रश्नों की पोटली खुलीं नहीं..,


तो फिर

लौट आई हूँ खाली हाथ

जवाब भी छूट गए

जैसे आधी अधूरी धुन

खामोश हवा में बिखर जाए


पैरों की झनझनाहट अकुलाती है

मन की गाँठें सिर पटकती हैं 

नचिकेता …नचिकेता

तुम सा तो मन नहीं 

दृढ़ता भी नहीं… जिद भी नहीं


कहते हैं कि

यदि बनी रहे प्यासतो एक दिन

पानी भी मिल ही जाता है 

बस प्यास को सहेजे रखना होगा,

और अपना कुआँ

स्वयं ही खोदना होगा


हाँजानती हूँ

किसी एक का प्रश्न

सबका प्रश्न तो हो सकता है,

परन्तु उत्तरहर किसी को

स्वयं अपना खोजना होगा।


अपना नचिकेता स्वयं

आप ही बनना होगा…!!

—उषा किरण 


फोटो; गूगल से साभार 

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नचिकेता

नींद   नहीं   आती   जब ,  तब बेचैनी   में   तकिया   दूसरी   दिशा   में   रख   पैर   दक्षिण -  दिशा   में   कर   लेती   हूँ   और   पल   भर   ...