कैसे थक कर हार जाऊँ
उम्मीदों से बँधा
मन्नतों के धागों से लिपटा
वटवृक्ष हूँ मैं…!!
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-उषा किरण
मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले
तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं
और जब शब्दों से भी मन भटका
तो रेखाएं उभरीं और
रेखांकन में ढल गईं...
इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये
ताना- बाना
यहां मैं और मेरा समय
साथ-साथ बहते हैं
ख़ुशक़िस्मत हैं वे औरतें जो जन्म देकर पाली गईं अफीम चटा कर या गर्भ में ही मार नहीं दी गईं, ख़ुशक़िस्मत हैं वे जो पढ़ाई गईं माँ- बाप की मेह...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (31-08-2022) को "जय-जय गणपतिदेव" (चर्चा अंक 4538) पर भी होगी।
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कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका हार्दिक आभार 🙏
जवाब देंहटाएंवाह। बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार 🙏
हटाएंसच कहा दी कैसे हार जाऊं अभी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
धन्यवाद अनीता जी😊
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