दो विपरीत बहते छोरों को अचानक गठबंधन में बाँध दिया गया
ऐसे, जैसे कोई हादसा अचानक हो जाए
न प्यार था न परिचय
बस दो अजनबी…
न वो सूरज था न वो किरन
न वो दिया था न वो बाती।
न वो चाँद था और न वो चाँदनी
एकदम विपरीत थे वे दोनों…
एक शान्त तो दूसरी बेचैन
एक जमीनों पर पैर जमा कर रखता
तो दूसरी आसमानों में ऊँचाइयाँ नापती
तब भी चलते- चलते
एक दूसरे के रास्तों में आ जाते
यूँ ही भिड़ जाते…
पर साथ चलना तो तय था
धीरे-धीरे महसूस हुआ वे विरोधी नहीं
परस्पर पूरक थे एक दूजे के, तो फिर…
उसने जमीनें बाँटी थोड़ी
तो उसने भी अपने आकाश के
कुछ हिस्से उसके नाम कर दिए…
अब आख़िरी पड़ाव है
साँझ होने को है…
हैं तो आज भी वे बिल्कुल विपरीत
लेकिन लोग कहते हैं कि उनकी शक्लें अब
कुछ- कुछ मिलने लगी हैं…!
— उषा किरण
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(२२-०८ -२०२२ ) को 'साँझ ढलती कह रही है'(चर्चा अंक-१५२९) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
हार्दिक आभार अनीता जी!
हटाएं'पर साथ चलना तो तय था,वे विरोधी नहीं
जवाब देंहटाएंपरस्पर पूरक थे '- समय एक सम पर ला देगा .
प्रतिभा जी आपका हृदय से आभार🙏
हटाएंसुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत आभार!
हटाएंवाह बहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंविरोधी नहीं एक दूसरे के पूरक
यही तो जीवन है
हार्दिक आभार आपका🙏
हटाएंमुझे आपकी यह रचना बहुत पसंद आई ,जिंदगी की सच्चाई
जवाब देंहटाएंप्राय: अरेंज्ड मैरिज में पहले यही होता था…हार्दिक आभार रन्जु जी😊
हटाएंभारतीय समाज में ऐसा होता आया है पर अब ऐसा होना भी एक महत्वपूर्ण घटना होती है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन।
सही कहा आपने…बहुत शुक्रिया!
हटाएंबहुत सुंदर लिखा दी आपने जीवन के सफ़र को,सच साथ चलते-चलते शक्ले मिलने लग जाती है।
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम
हमारी पीढ़ी में ढल ही जाते थे एक दूसरे के अनुसार…बहुत शुक्रिया
हटाएंशायद रेल की पटरियों की तरह ही परस्पर पूरक हैं तभी तो साथ चलते एक से ही लगने लगे है। दो शरीर एक आत्मा की तरह।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर र सराहनीय सृजन ।
सस्नेह।
हार्दिक आभार आपका😊
हटाएंइतने सुंदर सार्थक भाव ही एक दूसरे की पूरकता का प्रमाण है । सुंदर रचना के लिए बधाई ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार जिज्ञासा जी😊
हटाएंजी उषा जी,एक सुन्दर दांपत्य जीवन का यही सौंदर्य उसे दीर्घजीवी और अनन्य बनाता है।अजनबी से,दो देह एक प्राण तक की यात्रा की खूबसूरती को बहुत मोहक अंदाज में लिखा है आपने।बहुत भाग्यशाली होती हैं ये जोडियाँ।बधाई और आभार आपके लिए 🙏🙏
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएं
हटाएंजी सही कहा आपने …पहले कम उम्र में व परिपक्वता आने से पहले ही शादी हो जाती थी तो एक दूसरे के अनुरूप प्राय: ढल ही जाते थे…मेरी कविता पसन्द करने का बहुत शुक्रिया रेणु जी 😊
दो व्यक्ति परस्पर अलग ही होते हैं किन्तु शायद हमारी सभ्यता और संस्कृति है जो बंधे रखती है एक दूसरे से और हम एक दूसरे के पूरक बन जाते हैं !!बहुत सुंदर रचना !!
जवाब देंहटाएंअनुपमा जी हार्दिक आभार 😊
जवाब देंहटाएंआपने सच ही कहा। दाम्पत्य-जीवन ऐसे ही समायोजनों के अवलम्ब पर रहता एवं संचालित होता है।
जवाब देंहटाएं