ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

रविवार, 21 अगस्त 2022

वे

 


         

दो विपरीत  बहते छोरों को अचानक गठबंधन में बाँध दिया गया

ऐसे, जैसे कोई हादसा अचानक हो जाए


न प्यार था न परिचय

बस दो अजनबी…

न वो सूरज था न वो किरन 

न वो दिया था न वो बाती। 

न वो चाँद था और न वो चाँदनी

एकदम विपरीत थे वे दोनों…


एक शान्त तो दूसरी बेचैन

एक जमीनों पर पैर जमा कर रखता

तो दूसरी आसमानों में ऊँचाइयाँ नापती

तब भी चलते- चलते 

एक दूसरे के रास्तों में आ जाते

यूँ ही भिड़ जाते…


पर साथ चलना तो तय था

धीरे-धीरे महसूस हुआ वे विरोधी नहीं 

परस्पर पूरक थे एक दूजे के, तो फिर…

उसने जमीनें बाँटी थोड़ी 

तो उसने भी अपने आकाश के 

कुछ हिस्से उसके नाम कर दिए…


अब आख़िरी पड़ाव है

साँझ होने को है…

हैं तो आज भी वे बिल्कुल विपरीत 

लेकिन लोग कहते हैं कि उनकी शक्लें अब 

कुछ- कुछ मिलने लगी हैं…!

                      — उषा किरण

24 टिप्‍पणियां:


  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(२२-०८ -२०२२ ) को 'साँझ ढलती कह रही है'(चर्चा अंक-१५२९) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. 'पर साथ चलना तो तय था,वे विरोधी नहीं

    परस्पर पूरक थे '- समय एक सम पर ला देगा .

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  3. वाह बहुत ही सुन्दर रचना
    विरोधी नहीं एक दूसरे के पूरक
    यही तो जीवन है

    जवाब देंहटाएं
  4. मुझे आपकी यह रचना बहुत पसंद आई ,जिंदगी की सच्चाई

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    1. प्राय: अरेंज्ड मैरिज में पहले यही होता था…हार्दिक आभार रन्जु जी😊

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  5. भारतीय समाज में ऐसा होता आया है पर अब ऐसा होना भी एक महत्वपूर्ण घटना होती है।
    बहुत सुंदर सृजन।

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  6. बहुत सुंदर लिखा दी आपने जीवन के सफ़र को,सच साथ चलते-चलते शक्ले मिलने लग जाती है।
    सादर प्रणाम

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    1. हमारी पीढ़ी में ढल ही जाते थे एक दूसरे के अनुसार…बहुत शुक्रिया

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  7. शायद रेल की पटरियों की तरह ही परस्पर पूरक हैं तभी तो साथ चलते एक से ही लगने लगे है। दो शरीर एक आत्मा की तरह।
    बहुत सुंदर र सराहनीय सृजन ।
    सस्नेह।

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  8. इतने सुंदर सार्थक भाव ही एक दूसरे की पूरकता का प्रमाण है । सुंदर रचना के लिए बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
  9. जी उषा जी,एक सुन्दर दांपत्य जीवन का यही सौंदर्य उसे दीर्घजीवी और अनन्य बनाता है।अजनबी से,दो देह एक प्राण तक की यात्रा की खूबसूरती को बहुत मोहक अंदाज में लिखा है आपने।बहुत भाग्यशाली होती हैं ये जोडियाँ।बधाई और आभार आपके लिए 🙏🙏

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    1. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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    2. जी सही कहा आपने …पहले कम उम्र में व परिपक्वता आने से पहले ही शादी हो जाती थी तो एक दूसरे के अनुरूप प्राय: ढल ही जाते थे…मेरी कविता पसन्द करने का बहुत शुक्रिया रेणु जी 😊

      हटाएं
  10. दो व्यक्ति परस्पर अलग ही होते हैं किन्तु शायद हमारी सभ्यता और संस्कृति है जो बंधे रखती है एक दूसरे से और हम एक दूसरे के पूरक बन जाते हैं !!बहुत सुंदर रचना !!

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  11. अनुपमा जी हार्दिक आभार 😊

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  12. आपने सच ही कहा। दाम्पत्य-जीवन ऐसे ही समायोजनों के अवलम्ब पर रहता एवं संचालित होता है।

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