अगस्त पन्द्रह, उन्नीस सौ सैंतालिस
उस रात भी चाँद सोया नहीं था
चाँद ! जब तुम कल आना
तो चाँदनी में नहाए
ओस का श्रृंगार किए
बर्फानी रंग के ढेर सारे
आसमानी फूल भी
साथ में लेते आना
मुझे नमन करना है शहीदों को
मुझे नमन करना है उन योगियों को
नींद से बोझिल मुँदी पलकों में
सारी रात भटका किए
सपनों के हिरन-
हाँफता सूरज
कराहती नदी
टुकड़ा- टुकड़ा चाँद
काला आसमाँ
सिर पर कफन बाँधे
जुनूनी हौसले
गोलियों से भरी राहें
खून से रंगे सीने…
घबड़ा कर उठ बैठी
नतशिर बैठी हूँ
नम आँखों से देखा
पसीजी हथेलियों में एक वसीयत थी
वतन के नाम-
"जो खून से है सींचा, वो चमन बचा के
रखना…!”
— उषा किरण
आपकी लिखी रचना सोमवार 15 अगस्त 2022 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
हार्दिक आभार
हटाएंहार्दिक आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअनुपम।
जवाब देंहटाएंसार्थक।
वंदेमातरम्।
हार्दिक आभार
हटाएंहार्दिक आभार
हटाएंप्रभावी सुन्दर कविता ऊषा जी । सुन्दर उपमान प्रयुक्त किये हैं ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार गिरिजा जी
हटाएंजो खून से है सींचा, वो चमन बचा के
जवाब देंहटाएंरखना…!”
हृदय स्पर्शी! आजादी का जश्न मनाते वक्त इस वसियत को कभी नहीं भूलना चाहिए।
आपको भी आजादी की अमृत महोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं ऊषा जी 🙏
शुक्रिया कामिनी जी…आपको भी बहुत बधाई 🙏
हटाएंइस को हमेशा याद रखना चाहिए sundar rachna
जवाब देंहटाएंबहु शुक्रिया
हटाएं"जो खून से है सींचा, वो चमन बचा के
जवाब देंहटाएंरखना…!”
....बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
हार्दिक आभार 🙏
हटाएंअमृत महोत्सव पर वो खौफनाक मंजर भी याद रहे देशवासियों को।
जवाब देंहटाएंबहुत ही हृदयस्पर्शी सृजन ।
हार्दिक आभार 🙏
हटाएं