ऐ दोस्त
अबके जब आना न
तो ले आना हाथों में
थोड़ा सा बचपन
घर के पीछे बग़ीचे में खोद के
बो देंगे मिल कर
फिर निकल पड़ेंगे हम
हाथों में हाथ लिए
खट्टे मीठे गोले की
चुस्की की चुस्की लेते
करते बारिशों में छपाछप
मैं भाग कर ले आउंगी
समोसे गर्म और कुछ कुल्हड़
तुम बना लेना चाय तब तक
अदरक इलायची वाली
अपनी फीकी पर मेरी
थोड़ी ज़्यादा मीठी
और तीखी सी चटनी
कच्ची आमी की
फिर तुम इन्द्रधनुष थोड़ा
सीधा कर देना और
रस्सी डाल उस पर मैं
बना दूंगी मस्त झूला
बढ़ाएँगे ऊँची पींगें
छू लेंगे भीगे आकाश को
साबुन के बुलबुले बनाएँ
तितली के पीछे भागें
जंगलों में फिर से भटक जाएँ
नदियों में नहाएँ
चलो न ऐ दोस्त
हम फिर से बच्चे बन जाएँ ...!!
— उषा किरण
( रीपोस्ट)
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (०८-०८ -२०२२ ) को 'इतना सितम अच्छा नहीं अपने सरूर पे'( चर्चा अंक -४५१५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
हार्दिक आभार 🙏
हटाएंसुंदर भावों का सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार
हटाएंहार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंचलो.दोस्त फिर से बच्चे बन.जायें।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण रचना।
सादर।
हार्दिक आभार श्वेता जी🌹
हटाएंवाह लाजबाव अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार
हटाएंसुंदर सृजन। सुंदर भाव।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार 🥰💐
हटाएंक्या मेरी टिप्पणी स्पैम में चली गई?
जवाब देंहटाएंनहीं…दिख रही है।
जवाब देंहटाएंदोस्ती और बचपन को आमंत्रित करती प्यारी रचना
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार गिरिजा जी !
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