ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

रविवार, 31 जुलाई 2022

लड़की की फोटो

 



स्थान- 1978, ग़ाज़ियाबाद 

एम.एम.एच. कॉलेज से ड्रॉइंग एन्ड पेन्टिंग में एम.ए. की पढ़ाई कर रही लड़की की शादी की बातें शुरु हो चुकी हैं। तो सबसे पहले तो एक फोटो की दरकार है लड़की की, वो भी स्टूडियो में मेकअप करके बनारसी साड़ी पहन कर और स्टैंड  पर हाथ रख कर पोज बनाते हुए ।सही अनुपात में हंसते हुए। एकदम सही अनुपात से…मतलब न थोड़ा सा भी ज्यादा कि बेशर्म लगे और न ही इतना कम जो घुन्नी लगे। लेकिन अब सवाल ये है कि बिल्ली के गले में घंटी बाँधे कौन ? 

किसी तरह माँ ने कहा -

'एक फोटो खिंचवा लो।’

'क्या जरूरत है ?’

'अरे सब लड़किएं खिंचवाती हैं न।’

'हाँ, तो ….पर किसलिए?’

'शादी के लिए भेजनी होती है न।’

'तो हैं तो इतनी सारी,  कोई सी भी भेज दो।’

'एक भी ढ़ंग की नहीं,और अकेले तो एक भी नहीं है।’

'जैसी शकल होगी वैसी ही तो आएगी और ग्रुप वाली फोटो पर टिक लगा कर भेज दो।जिसे पसन्द आ जाए करे वर्ना न करे।अहसान नहीं करेगा हम पर  शादी करके कोई।’

`ओफ् हो! तुमसे तो बात करना ही बेकार है…’

माँ झुँझला कर बड़बड़ाते हुए उठ गईं ।

खैर फिर एक फैमिली ग्रुप फोटोग्राफ में से गाँधी नगर चौराहे वाले चौधरी फ़ोटो स्टूडियो से लड़की का फोटो निकलवाया गया और लड़के वालों के यहाँ भेजना शुरु किया गया। जवाबों के सिलसिले शुरु-

`लड़की पसन्द है’

`पसन्द नहीं लड़के को’

`पसन्द है...पर दहेज कितना देंगे चौहान साहब?’

`लड़की की भाभी को पसन्द नहीं।’

कहीं लड़के वाले को लड़की नहीं पसन्द तो कहीं पापा को लड़का या घर नहीं पसन्द ।

आखिरकार एक महापुरुष को  फोटो पसन्द और पापा को लड़का पसन्द ...अब लड़का और घरवाले लड़की देखेंगे।पापा को घर बुला कर बेटियों को नुमाइश लगा कर दिखाना कतई नहीं पसन्द ।

तो आगरे मामाजी के घर जाने का प्रोग्राम बनाया गया।साथ में दिखाने लायक सादी सी  साड़ी ब्लाउज भी माँ ने चुपके से सूटकेस में दबा ली। 

कल सब `कभी-कभी’ मूवी देखने जाएंगे ।लड़की खुश ! ये लम्बू हीरो एक्टिंग अच्छी करता है ..टाइटिल सॉन्ग बहुत पसन्द है तो सब समझते हुए भी मामी के कहने पर बिना चूँ चपड़ किए साड़ी पहन ली। कोई मेकअप नहीं। 

`रानी बेटी एक बिन्दी छोटी सी लगा लेतीं।’ मामी ने धीरे से कहा। 

`नहीं! ‘ सपाट मना कर चप्पल फटकारती चल दी साथ। अम्माँ, मामा जी, मामी जी , मामी की बेटी और छोटी बहन भी साथ गए बाकी सब घर पर ।

सिनेमा हॉल के बाहर ही `अचानक’ मामाजी के कोई दोस्त की फैमिली के दस- बारह लोग मिले...बड़ी खुशी हुई...बड़ी खुशी हुई के बाद लड़की का परिचय -ये हैं हमारी बहन की बेटी`जलफुकड़ी देवी’😜 लड़की ने जितना रूखा- सूखा, सड़ा सा मुँह बना सकती थी बनाया।

खैर लड़की ने झूम कर मूवी देखी जम कर हंसी , जम कर रोई। कभी -कभी मेरे दिल में खयाल आता है गाने पर धीमे -धीमे सुर मिलाया। खूब डकारें लेकर , हंस- हंस कर ठंडा कोला पिया।खूब मजा लेकर मूवी देखी।

लौटते समय फिर हॉल के बाहर सब साथ मिले तो मामाजी के दोस्त के खानदान ने पुन: पुन: लड़की को ऊपर से नीचे तक खूब आँखें फाड़-फाड़ कर घूर कर देखा । बच्चे बिना बात शरमाए जा रहे थे, शायद कल्पनाओं में लड़की को मामी या चाची बना देखने की कल्पना करके। पर लड़की आज जरा नहीं बिदकी। मूवी के खुमार में सब माफ...घूर लो जितना घूरना हो बेशरमों। मन ही मन सोच रही थी इस लम्बू की फिल्म देखने के बदले तो चाहें रोज देख लें लड़के वाले...चूँ तक नहीं करेगी।

`लड़की का रंग जरा दबा है गोरा नहीं है !’ हफ्ते भर बाद लड़के वालों का रिएक्शन आया।लड़की को जरा बुरा नहीं लगा ।ठीक है पहले से देख कर रिजेक्ट कर दिया वर्ना बिना देखे हो जाती शादी तो सारी उम्र लड़का कौए की तरह ठोंगे मारता। तब तो बड़ी वाली बेइज्जती हो जाती। एक महिने बाद दूसरी खबर...स्कूटर की डिमान्ड है यदि देंगे तो शादी हो जाएगी। उस समय लड़कों की दहेज की औकात बस स्कूटर तक ही थी या मोटरसाइकिल तक की। गाड़ी तो किसी- किसी के ही बाप पर होती थी। अब जैसी बात नहीं थी कि हमारा ड्राइवर भी अपनी लड़की की शादी में गाड़ी दे रहा है ।

पापा स्कूटर देने को तैयार हैं ।

जीजाजी और भैया से बात कर रहे हैं। रोकना के लिए जाना है। पर लड़की का खून खौल रहा है। पहले रिजेक्ट करने पर बेइज्जती नहीं लगी पर अब ये तो सरासर बेइज्जती है। वो घायल शेरनी सी आँगन के चक्कर लगा रही है।

अकेले में माँ को घेर लिया-

`क्यूँ अम्माँ ये स्कूटर ले कर डॉक्टर साहब को हम गोरे लगने लगेंगे क्या ? रहेंगे तो हम तब भी  काले ही न?’

`अरे ये तो लड़के वाले पहले कहते ही हैं जरा भाव बढ़ाने के लिए। वर्ना तुम कोई काली थोड़े ही हो, शक्ल तो वहीदा रहमान से मिलती है तुम्हारी।’ अम्माँ ने लिपाई- पुताई की। 

`हमें नहीं चाहिए किसी से गोरे-काले होने का सर्टिफिकेट बताए देते हैं। हम नहीं करने वाले शादी इस डॉक्टर के बच्चे से।’

लड़की गुस्से से फनफनाई। 

`सारे दिन किताबों में घुसी रहती हो …किताबी भाषा ही बोलती हो …तुमको शादी करनी है नहीं, बस बहाने ढूँढती रहती हो…!’अम्माँ को गुस्सा आ गया।

`हाँ तो बढ़ाएं न अपने भाव अपने घर बैठ कर ...अब तो हमारा भाव बढ़ गया...कह दो नहीं करनी उस फकीर से शादी।डॉक्टर, कलैक्टर ही क्यूँ हमें खुद पर भरोसा है मेहनत से सब हासिल कर सकते हैं हम !’

लड़की की भुनभुन और अम्माँ की बड़बड़ कि- `भगवान जाने कहाँ निभेंगी ये नाक पर मक्खी नहीं बैठने देतीं…!’ सुगबुगाहट पापा के पास पहुँची। पापा ने कहा -

`हाँ ठीक तो कह रही है वो ...!’ बात खत्म !

खैर ...और लड़के देखे जाने लगे । रिश्तेदारों के फोन खटखटाए गए । चिट्ठियाँ लिखी गईं । पेपर में एड दिया गया।आखिर एक और जगह फोटो पसन्द आई लड़की की। सुना आई ए एस है लेकिन एक लाख कैश की डिमान्ड है।उस जमाने में शायद लाख की वैल्यू आज के करोड़ के बराबर तो होती ही होगी।

पापा को कलैक्टर दामाद का बड़ा लालच पकड़े था । जुगाड़ सोच ही रहे थे कि गाँव की कुछ जमीन बेच देंगे या लोन ले लेंगे ।भनक पाते ही लड़की फिर सिरे से उखड़ गई-

`भिखारी-कलैक्टर, भिखारी-कलैक्टर…’ कह कर खूब मुट्ठियाँ हवा में लहराईं। छोटी बहन और भाई व अम्माँ के सामने।

पापा तक बात गई तो बोले-

` वो कह तो सही रही है वैसे वो !’ 

तो वो बात भी गई। लड़की को सुकून मिला वो मस्त है फिर से अपनी पेन्टिंग, लेखन, म्यूजिक और ढेरों और शौक में। आसमानों में उड़ती फिरती है जमीन पर पैर ही नहीं रखती।सारे दिन लॉन में , धूप में ईजल लगा कर म्यूजिक सुनते हुए पेन्टिंग करती है या संतरे , मूँगफली खाते हुए पढ़ती रहती है। बराबर वाले घर से अग्रवाल आन्टी टोकती हैं-

` अरे लड़की सारे दिन धूप में बैठ कर काली हो जाएगी छाँव में बैठा कर।’

लडकी मुस्कुरा देती है बस।

कुछ दिन शान्ति में बीते ही थे कि एक और धमाका हुआ। गाँव से नउआ काका आए हैं बिटिया के लिए रिश्ता लेकर। पापा उनकी आवभगत में कोई कमी नहीं रखते। खूब खा पीकर नउआ काका फूटते हैं कि-

` सौ बीघा जमीन है, ट्रैक्टर है, दो भैंस हैं और लड़का बी ए में पढ़ रहो है , देखन में बिल्कुल रामजी जैसो सुन्दर है। लड़की को खाएबे  पिएबे की कौनो दिक़्क़त नहीं आनी है ।’ 

लड़की अपने कमरे में पढ़ रही थी बातें उसके कानों में भी पड़ रही थीं। सुन कर हंस-हंस कर लोट-पोट हो गई। अम्माँ का तो मारे गुस्से के बुरा हाल था वो पीछे से बड़बड़ाती रहीं पर पापा के सामने वो हमारी तरह तबड़- तबड़ नहीं करती थीं।खैर नउआ काका को दे लेकर समझा कर विदा किया गया।

उसके बाद लड़की ने अम्माँ से खूब मस्ती की। वो जितना नउआ काका को खरी-खोटी कहतीं लड़की उतनी ही मस्ती करती। `अम्माँ हम सोच रहे हैं भैंस का दूध निकालने की कोचिंग ले लें।और बस अम्माँ शुरु हो जातीं !’

खैर फिर अम्माँ की बुआ की बहू के भाई के दोस्त की बहन ने एक प्रोफ़ेसर लड़का बताया। राजपूतों में अच्छी रसूख वाला प्रतिष्ठित परिवार है। पर पापा कुछ अनमने से हो गए।उनका मन है कि पहले दामाद की तरह इंजीनियर हो या डॉक्टर या ऑफ़िसर ।पर लड़की की अम्माँ ने बहुत समझाया कि वो जॉब करना चाहती है तो प्रॉफेसर ऐतराज नहीं करेगा इंजीनियर के तो प्राय: ट्रान्सफर होते रहते हैं वो नहीं करवाएगा जॉब।पापा मान तो गए पर बहुत बुझे मन से गए हैं लड़का देखने।

पापा बहुत खुश हैं लौट कर कि पहली बार ऐसा हुआ कि किसी लड़के वाले ने दहेज की माँग नहीं की बल्कि क्या डिमान्ड है पूछने पर कहा कि-

` सिर्फ़ आपकी बेटी और कुछ नहीं चाहिए । आपके जैसे प्रतिष्ठित परिवार में रिश्ता जोड़ कर हमें खुशी होगी।’ 

पापा बता रहे थे अम्माँ को कि सभी का व्यवहार बहुत सम्मान से भरा था।सभ्य, सौम्य, विनम्र लोग।

लड़की ने सुना तो आँख नम हो गईं। 

न डॉक्टर, न कलैक्टर, न ही इंजीनियर...

बस यही तो चाहिए था पापा का सम्मान ! 

बाकी जो किस्मत को मंजूर...!

( रीपोस्ट)

22 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज रविवार (31-07-2022) को   "सावन की तीज का त्यौहार"   (चर्चा अंक--4507)    पर भी होगी।
    --
    कृपया लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी लिखी रचना सोमवार 01 अगस्त 2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

    जवाब देंहटाएं
  3. एक लड़की की व्यथा कथा की सुंदर जीवंत प्रस्तुति आदरणीय । बहुत बधाइयाँ ।

    जवाब देंहटाएं
  4. हार्दिक आभार आपका

    जवाब देंहटाएं
  5. उव्वाहहहहहहहहह
    बेहतरीन
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  6. इस कहानी में सब कुछ है जो एक पाठक को चाहिए। पढ़कर दिल खुश हो गया।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  7. बस यही तो चाहिए था पापा का सम्मान !
    बाकी जो किस्मत को मंजूर...! बेटी के मन का गहन भाव बहुत ही सुंदरता से उकेरा है । लेखनी को नमन ।

    जवाब देंहटाएं
  8. लड़की का ब्याह मनमुताबिक घर में होना बाबा अमरनाथ के दर्शन से कम नहीं...
    क्या बिडंबना है न नाजुक बेटियों को सीने से लगाकर पालो और दूसरे के हाथ सौंप दो वो भी उनकी इच्छा और शर्तों के अनुरूप।
    पूरा संस्मरण चलचित्र की भाँति आँखों से गुज़रकर मन को मंत्रमुग्ध कर गया।
    सस्नेह।

    जवाब देंहटाएं
  9. बस यही चाहिए था पापा का सम्मान। पूरी पोस्ट में खूब हंसाया और इस पंक्ति ने आँखें पानी ला दिया। आपको बहुत-बहुत बधाई। ढेरों शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. पोस्ट को इतने मन से पढ़ने का बहुत शुक्रिया!

      हटाएं
  10. बहुत रोचक सत्य। लेकिन अब तो अम्माँ की बुआ की बहू के भाई के दोस्त की बहन वाली संस्कृति दुर्लभ हो गई है। बदलते समय के साथ ढेर सारी मान्यताओं ने करवट बदल ली है। और अब लड़के कूड़ा दान की धरोहर में परिवर्तित होने की कगार पर हैं। बहुत सार्थक किस्सागोई।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सही कहा आपने , अब तो लडका बताओ वाली परम्परा ही समाप्त हो गई है । कोई किसी के चक्कर में नहीं पडना चाहता।माँ- बाप तक कई बार सोचते हैं…हार्दिक आभार !

      हटाएं
  11. ना डॉक्टर, न कलैक्टर, न ही इंजीनियर...
    बस यही तो चाहिए था पापा का सम्मान !
    बस इससे अधिक कुछ नहीं चाहिये होता था किसी समय एक लड़की को।आज समय पलट गया।आज लड़कों से ज्यादा लडकियों की शर्ते हैं।एक अत्यंत रोचक और भावपूर्ण अभिव्यक्ति जिसमें बतरस की अद्भूत मिठास मिली।जी खुश हो गया पढ़कर।बधाई उषा जी।और हाँ फोटो वाली साँवली लड़की कभी कभी की तीनों नायिकाओं को मात दे रही है। 🙏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. तीनों हीरोइनों से….😂 तारीफ़ हर उम्र में अच्छी ही लगती है …मन से मेरी रचना पढ़ने का बहुत शुक्रिया 😊

      हटाएं
  12. हर लड़की का बस यही तो सपना होता है कि उसके कारण उसके माता पिता को कभी अपमान न सहना पड़े .....
    जब लडकी इन परिस्थितियों से गुजरती है तो वाकई सोचती है कि इससे अच्छा भ्रूण में ही मार दी गयी होती ।
    बहुत ही लाजवाब कहानी

    जवाब देंहटाएं

खुशकिस्मत औरतें

  ख़ुशक़िस्मत हैं वे औरतें जो जन्म देकर पाली गईं अफीम चटा कर या गर्भ में ही मार नहीं दी गईं, ख़ुशक़िस्मत हैं वे जो पढ़ाई गईं माँ- बाप की मेह...