सुनी हैं कान लगा कर
उन सर्द तप्त दीवारों पर
दफन हुई वे
पथरीली धड़कनें
वे काँपती सिसकियाँ
और खिलखिलाहटें !
आन-बान-शान की, शौर्य की
बेशुमार कहानियाँ
वे हैरान करती रिवायतें
बंजर जमीनों की कराहटें
स्वागत में ठुमकते पैर
आवाहन करते गीत-
`केसरिया बालम पधारो म्हारे देस...’
ऊँट, बकरियाँ, आदमी सभी का आधार
`केर साँगरी ‘
लहरिया, बंधेज के खिलखिलाते रंग
रेत के मीलों फासलों पर
राहत देती वो एकाकी,शीतल झील
एक बेटी की इज़्ज़त की खातिर
दो सौ साल से वीरान पड़ा-
वो उजड़ा, भुतहा `कुलधरा गाँव’
गाड़ी के पीछे धूल भरे नंगे पाँवों से
भागते, चिल्लाते बच्चे
`कमिंग...कमिंग...’
अभिभूत मन....धुँधली आँखें !
क्यूँ न लुटा दूँ दिल दुनिया की
सारी दौलत !
सारी नदियों से माँग चुल्लू भर- भर
छोड़ दूँ पानी इन प्यासे बंजर खेतों में !
वापिस लौट तो आई पर
एक छोटा सा राजस्थान
आ गया है संग
मेरी धड़कनों में...!
— उषा किरण
मैं भी मूलतः राजस्थानी हूँ। पापा मुंबई में बसे तो हमें राजस्थान जाने का मौका बहुत कम मिला। सिर्फ तीन बार गई हूँ। आजकल एक यू ट्यूब चैनल shubh journey को देख देंखकर सारे राजस्थान की आभासी सैर कर रही हूँ। बहुत अच्छा चैनल है। कुलधरा के बारे में बहुत पढ़ा, सुना है। एक बार जाने की बड़ी इच्छा है।
जवाब देंहटाएंजी राजस्थान की तो बात ही क्या ? बहुत सुंदर...शुक्रिया
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 2064...पीपल की पत्तियाँ झड़ गईं हैं ... ) पर गुरुवार 11 मार्च 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना।
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महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ।
आपको भी शुभकामनाएँ 🙏🌺
हटाएंसुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत आभार
हटाएंइन इमारतों में दबी आवाजें कब कौन सुन पाया ... ये सुनाने के लिए हौसला और एक अलग सोच होनी ज़रूरी .. बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसंगीता जी सही कहा आपने . जाने कितना दर्द समेटे गौरव गाथाएं दफ्न होंगी इनमें !
जवाब देंहटाएंहर कोई अपनी मिटटी, वहां की गंध समेट के ले जाता है जहाँ जाता है ...
जवाब देंहटाएंसंवेदनाएं मरती नहीं हाँ दब सकती हैं बस ...
सही कहा आपने ...बहुत शुक्रिया दिगम्बर जी😊
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