ताना बाना
मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले
तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं
और जब शब्दों से भी मन भटका
तो रेखाएं उभरीं और
रेखांकन में ढल गईं...
इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये
ताना- बाना
यहां मैं और मेरा समय
साथ-साथ बहते हैं
शनिवार, 27 मार्च 2021
साँप-सीढ़ी
Labels:
कविता
तूलिका और लेखनी के सहारे अहसासों को पिरोती रचनाओं की राह की एक राहगीर.
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आजकल एक पोस्ट बहुत वायरल हो रही है कि प्राकृतिक चिकित्सा से फोर्थ स्टेज का कैंसर ठीक हो गया। मैं ऐसे बहुत से लोगों को जानती हूँ जिन्होंने अप...
चार पंक्तियों में कितनी गहरी और यथार्थ बात कह गयी आप।
जवाब देंहटाएंप्रिय उषा जी सामाजिक हो या राजनीतिक या बात रिश्ते की हो हर संदर्भ में आपकी पंक्तियाँ सटीक बैठ रही।
सादर।
आपने कितनी गहराई से बात को पकड़ा...बहुत शुक्रिया 😊🌹
हटाएंमेरी रचना साझा करने के लिए बहुत शुक्रिया 😊
जवाब देंहटाएंचार पंक्तियाँ और जीवन का अर्थ ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ...
होली की हार्दिक शुभकमनाएं ...
बहुत धन्यवाद!
हटाएंआपको भी होली की बहुत शुभकामनाएँ...शुक्रिया 😊
जवाब देंहटाएंयही खेल है।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब अभिव्यक्ति। होली की हार्दिक शुभकामनाएँ।
शुक्रिया...आपको भी होली की बहुत शुभकामनाएँ ।
हटाएंयह खेल है और कुछ ऐसा ही जीवन
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने अनीता जी...शुक्रिया
हटाएंआज कल सब अप्रत्यक्ष रूप से यही खेलना चाहते ।
जवाब देंहटाएंचार पंक्तियों में इंसान की फितरत बता दी । बहुत खूब ।
बहुत शुक्रिया ।
जवाब देंहटाएंलाजवाब, बेहतरीन ,जबरदस्त ,बहुत खूब , सादर नमन
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया...😊🙏
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