ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

शनिवार, 27 मार्च 2021

साँप-सीढ़ी

 



14 टिप्‍पणियां:

  1. चार पंक्तियों में कितनी गहरी और यथार्थ बात कह गयी आप।
    प्रिय उषा जी सामाजिक हो या राजनीतिक या बात रिश्ते की हो हर संदर्भ में आपकी पंक्तियाँ सटीक बैठ रही।

    सादर।

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    1. आपने कितनी गहराई से बात को पकड़ा...बहुत शुक्रिया 😊🌹

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  2. मेरी रचना साझा करने के लिए बहुत शुक्रिया 😊

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  3. चार पंक्तियाँ और जीवन का अर्थ ...
    बहुत खूब ...
    होली की हार्दिक शुभकमनाएं ...

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  4. आपको भी होली की बहुत शुभकामनाएँ...शुक्रिया 😊

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  5. यही खेल है।
    बहुत खूब अभिव्यक्ति। होली की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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    1. शुक्रिया...आपको भी होली की बहुत शुभकामनाएँ ।

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  6. यह खेल है और कुछ ऐसा ही जीवन

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  7. आज कल सब अप्रत्यक्ष रूप से यही खेलना चाहते ।
    चार पंक्तियों में इंसान की फितरत बता दी । बहुत खूब ।

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  8. लाजवाब, बेहतरीन ,जबरदस्त ,बहुत खूब , सादर नमन

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