ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

सोमवार, 15 मार्च 2021

तुरपन

 


9 टिप्‍पणियां:


  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 17 मार्च 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आज कल कहाँ वो बात
    नही चाहिए किसी को भी
    किसी का आपस में साथ
    तुम बात कर रहे
    बखिया की ,तुरपन की
    कपड़े पहने जाते है
    अब फटे या स्टोनवाश ।

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    1. अकेले चल कर तो
      मन बीहड़ हो जाएंगे
      गर उड़ गई रिश्तों की
      नमी और खुशबू भी
      आने वाली पीढ़ी को
      विरासत क्या दे जाएंगे...!!

      बहुत शुक्रिया संगीता जी😊

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    2. अभी तक अटक रहे हो
      टांकों में नेह के धागों में
      क्षमा की तो सुंई भी अब
      चुभ जाती है लोगों को
      बहुत देख चुकी हूँ
      ये नाते रिश्ते ज़िन्दगी में
      बस मज़ा आता है सबको
      अब अपनी ही बन्दगी में ।

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  3. वाह मजा आ गया आपको और संगीता जी को पढ़कर,एक से बढ़कर एक, शानदार, यहाँ तो कविताओं की बहार है , ऊपर भी नीचे भी , ये आनंद और कहाँ , मन खुश हो गया , खूबसूरत पोस्ट, आप दोनों को बधाई हो, नमन

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