ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

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गुरुवार, 12 मार्च 2020

ताना-बाना - पुस्तक- समीक्षा





लेखनी और तूलिका का मिलन...उषा किरण
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 ( लेखिका —ऋता शेखर मधु )

"कहते हैं एक चित्र हजार शब्दों की ताक़त रखता है। ऐसे में अगर चित्रों को दमदार शब्दों का भी साथ मिल जाए, तो फिर इस रचनात्मक संगम से निकली कृति सोने पर सुहागा ही है।" ये शब्द हैं सुविख्यात कवि कुमार विश्वास जी के...ज़ाहिर सी बात है कि आपके मन में भी यह सवाल उठ रहे होंगे कि कौन हैं वह जिनके कर- कमलों को माँ बागेश्वरी से लेखनी और तूलिका , दोनों का वरदान मिला। वे हैं हमारी प्यारी उषा किरण दी।  उनकी सद्य प्रकाशित पुस्तक *'ताना-बाना'* ने जब हमारे घर की चौखट पर कदम रखा तो मैं खुशी से फूली न समायी।  उस पल की अनुभूति को अभिव्यक्त करने के लिए शब्द नहीं मिल रहे...love you उषा दी...झटपट पुस्तक पलटने लगी और सारे चित्रांकन देखकर बस एक ही शब्द निकलता रहा...वाह! फिर उनकी कविताएं, अनुभूतियां, अभिव्यक्ति पढ़ती गयी। चित्र पर कविताएँ थीं या कविताओं पर चित्र...कई बार यह प्रश्न उठता रहा। प्रथम चित्र गणपति को समर्पित है।आंखें, तुण्ड, उदर की बारीकियां मन मोहती रहीं। कविताओं की सँख्या 101...और हर एक कविता के लिए उनके बेमिसाल चित्र।
लेखन की बात करूँ तो प्रथम अभिव्यक्ति *परिचय* अद्भुत है। कवयित्री ने लिखा...*पूछते हो कौन हूँ मैं,क्या कहूँ कौन हूँ? शायद...भगवान का गढ़ा एक डिफेक्टिव पीस- जिसमें जल आकाश हवा तो बहुत हैं पर आग और मिट्टी बहुत कम* सिर्फ इन पंक्तियों की ही व्याख्या की जाए तो भाव की सीमा को शब्दों में बाँधना मुश्किल हो जाएगा। उसके आगे की पँक्तियाँ जाने कितना कुछ समेटने में सफल हैं।
 *सुनी है* कविता में राजस्थान को बहुत खूबसूरती से समेटा गया है। शुरू की चंद पँक्तियाँ अवश्य उत्सुकता जगाएँगी कि आगे क्या लिखा होगा....*सुनी है कान लगाकर उन सर्द, तप्त दीवारों पे दफ़न हुई वे पथरीली धड़कनें,वे काँपती सिसकियाँ और खिलखिलाहटें* ....और कविता के अंत में यह कहना कि ...*वापिस लौट तो आयी पर एक छोटा -सा राजस्थान आ गया है संग मेरी धड़कनों में...! रचनाकार का सृजन के प्रति समर्पण का दर्पण है। एक नन्हीं सी कविता *सब्र* ने एक उपन्यास ही गढ़ दिया है...* थका मांदा सूरज दिन ढले टुकड़े-टुकड़े हो लहरों में डूब गया जब, सब्र को पीते सागर के होंठ और भी नीले हो गए...!* कविता *एक दिन* पर की गई चित्रकारी अद्भुत है। चित्रकार की कल्पनाशीलता की प्रशंसा करनी पड़ेगी। कविता *मन्नत* में उन्होंने प्रभु के सामने जो इच्छाएँ व्यक्त की हैं वह उनके वसुधैव कुटुम्बकम के भाव की झलक दिखा रहा।
कविता *सुन रही हो न* में कवयित्री की संवेदनशीलता मर्म को छू लेने वाली है। नारी विमर्श पर यह कविता नारी को प्रेरित कर रही है कि सशक्त बनने की ओर पहला कदम उसे स्वयं उठाना होगा। कोई उसकी मदद तभी कर सकता है जब वह स्वयं अपनी बेड़ियों को काट डाले। इस अभिव्यक्ति पर किया गया रेखांकन भी सहज रूप से दिल में उतर रहा। किसी दर्द को जीवन से जोड़ देने की कला का परिचय *रुट-कैनाल* में मिलता है। कवयित्री ने दार्शनिक अन्दाज में सटीक लिखा,"एक छोटे दाँत ने सिखा दिया बरसों से पाले दर्दों से मुक्ति का रास्ता"।

विभिन्न भाव पर रची गयी कुल 101 कविताओं को पढ़कर ही जाना जा सकता है कि कवयित्री में कोमलता, विचार, संस्कार, आक्रोश, प्रश्न, प्यार...हर भाव में लेखनी की प्रखर गूँज है और श्वेत श्याम रेखाचित्र आँखों को सुकून देने वाली कलाकृतियाँ हैं। हार्ड बाइन्ड की पुस्तक आकर्षक कलेवर में है। आगे भी उषा किरण जी की कृतियाँ हमारे समक्ष आएँ , इसके लिए दिल से शुभकामनाएं।
आपका सुनहरी स्याही से अंकित स्वहस्ताक्षरित शुभकामना संदेश एवं साथ में चित्रांकन हमारे लिए अमूल्य हैं 🙏🌹🌹

पस्तक का नाम: ताना-बाना
मूल्य:450/-
प्रकाशक:शिवना प्रकाशन, सीहोर (म0 प्र0)


बुधवार, 26 फ़रवरी 2020

पुस्तक समीक्षा —बाना -बाना





रश्मि कुच्छल की प्रतिक्रिया ताना-बाना पर—
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इस सफरनामे का आवरण ही लेखिका यानी  डॉ . उषाकिरण दी का व्यक्तित्व है ,घनी कालिमा को चीरकर उभरता सुनहरा सूरज ।
रेखाओं की चितेरी जादू भरी उंगलियां कब इन रेखाओं को शब्द बना देती हैं और कब ये कवितायों की भावभूमि के उड़ते मेघ से कागज पर चित्र बनकर उतर आते हैं ,ये अद्भुत संयोजन और कारीगिरी इस किताब को विशेष बनाती है व दीदी को एक विशिष्ट गरिमामयी काव्यचित्र संकलन "ताना - बाना " की जननी ।
स्त्री मन की नजर से जीवन के हर रंग को छूती , विषाद, विसंगति और विडंबनाओं पर तंज करती , कभी निरुपाय तो कभी दृढ़ होकर राह बनाती हर कविता उनके नजरिये से मिलवाती है ।
आज कुछ कविताओं से रूबरू होते हुए एक कविता पर रुक गयी हूँ ।
आप सबके लिए ---🙏😊

ताना- बाना ( पुस्तक समीक्षा)





लेखिका— रन्जु भाटिया






ताना बाना ( काव्यसंग्रह )

सुन लो           

जब तक कोई

आवाज देता है

क्यूँ कि...

सदाएं  एक वक्त के बाद

खामोश हो जाती हैं

और ख़ामोशी ....

आवाज नहीं देती!!

   डॉ उषा किरण


कितनी सच्ची पंक्तियां है यह। हम वक़्त रहते अपने ही दुनिया मे रहते हैं बाद में पुकारने वाली आवाज़ों को सुनने की कसक रह जाती है । शब्दों का यह "ताना बाना" ,ज़िन्दगी को आगे चलाता रहता है । यही सुंदर सा शब्दों का" ताना बाना "जब मेरे हाथ मे आया तो घर आ कर सबसे पहले मैने इसमें बने रेखाचित्र देखे ,जो बहुत ही अपनी तरफ आकर्षित कर रहे थे , कुछ रचनाएं भी सरसरी तौर पर पढ़ी ,फिर दुबई जाने की तैयारी में इसको सहज कर रख दिया ।
     यह सुंदर सा "काव्यसंग्रह "मुझे "उषा किरण जी" से इस बार के पुस्तक मेले में भेंटस्वरूप मिली । उषा जी 'से भी मैं पहली बार वहीं मिली ,इस से पहले फेसबुक पर उनका लिखा पढ़ा था और उनके लेखन से बहुत प्रभावित भी थी । क्योंकि उनके लेखन में बहुत सहजता और अपनापन सा है जो सीधे दिल मे उतर जाता है ।
     पहले ही कविता "परिचय " में वह उस बच्ची की बात लिख रही हैं जो कहीं मेरे अंदर भी मचलती रहती है ,
नन्हे इंद्रधनुष रचती
नए ख्वाब बुनती
जाने कहाँ कहाँ ले जाती है
उषा जी ,के इस चित्रात्मक काव्य संग्रह में बेहद खूबसूरत ज़िन्दगी से जुड़ी रचनाएं हैं ।जो स्त्री मन की बात को अपने पूरे भावों के साथ कहती हैं । औरत का मन अपने ही संसार मे विचरण करता है ,जिसमे उसकी वो सभी  भावनाएं हैं जो दिन रात के चक्र में चलते हुए भी उसके शब्दों में बहती रहती है और यहां इन संग्रह में तो शब्दों के साथ रेखांकित चित्र भी है जो उसके साथ लिखी कविता को एक  सम्पूर्ण अर्थ दे देते हैं जिसमे पढ़ने वाला डूब जाता है।
डॉ उषा जी के इस संग्रह को पढ़ते हुए मैंने खुद ही इन तरह की भावनाओं में पाया , जिसमे कुछ रचनाएं प्रकृति से जुड़ी कर मानव ह्रदय की बात बखूबी लिख डाली है ,जैसे सब्र , कविता में
थका मांदा सूरज
दिन ढले
टुकड़े टुकड़े हो
लहरों में डूब गया जब
सब्र को पीते पीते
सागर के होंठ
और भी नीले हो गए

पढ़ते ही एक अजब से एहसास से दिल भर जाता है। ऐसी ही उनकी नमक का सागर ,बड़ा सा चाँद, एक टुकड़ा आसमान, अहम ,आदि बहुत पसंद आई । इन रचनाओं में जो साथ मे रेखाचित्र बने हुए है वह इन कविताओं को और भी अर्थपूर्ण बना देते हैं।
   किसी भी माँ का सम्पूर्ण संसार उनकी बेटियां बेटे होते हैं , इस संग्रह में उनकी बेटियों पर लिखी रचनाएं मुझे अपने दिल के बहुत करीब लगी
बेटियां होती है कितनी प्यारी
कुछ कच्ची
कुछ पक्की
कुछ तीखी
कुछ मीठी
वाकई बेटियां ऐसी ही तो होती है ,एक और उनकी कविता मुनाफा तो सीधे दिल मे उतर गई ,जहां बेटी को ब्याहने के बाद मुनाफे में एक माँ बेटा पा लेती है। जो रचनाएं आपके भी जीवन को दर्शाएं वह वैसे ही अपनी सी लगती है । लिखने वाला मन और पढ़ने वाला मन  कभी कभी शायद एक ही हालात में होते हैं । कल और आज शीर्षक से इस संग्रह की एक और रचना मेरे होंठो पर बरबस मुस्कान ले आयी जिसमे हर बेटी छुटपन में माँ की तरह खुद को संवारती सजाती है ,कभी माँ के सैंडिल में ,कभी उसकी साड़ी में , और इस रचना की आखिरी पँक्तियाँ तो कमाल की लगी सच्ची बिल्कुल
आज तुम्हारी सैंडिल
मेरी सैंडिल से बड़ी है
और .....
तुम्हारे इंद्रधनुष भी
मेरे इंद्रधनुष से
बहुत बड़े हैं !
इस तरह कभी बेटी रही माँ जब खुद माँ बनती है तो मन के किसी कोने में छिपी आँचल में मुहं दबा धीमे धीमे हंसती है  ( माँ कविता )
बहुत सहजता से उनके लिखे इस संग्रह में रोज़मर्रा की होने वाली बातें , शरीरिक दर्द जैसे रूट कैनाल में बरसों से पाले दर्दों से मुक्ति का रास्ता सिखला देती है ।
इस संग्रह की हर रचना पढ़ने पर कई नए अर्थ देती है । मुझे तो हर रचना जैसे अपने मन की बात कहती हुई लगी । पढ़ते हुए कभी मुस्कराई ,कभी आंखे नम हुई । सभी रचनाओं को यहां लिखना सम्भव नहीं पर जिस तरह एक चावल के दाने से हम उनको देख लेते है वैसे ही उनकी यह कुछ चयनित पँक्तियाँ बताने के लिए बहुत है कि यह संग्रह कितना अदभुत है और इसको पढ़े बिना नहीं रहा जा सकता है ।
"ताना बाना "डॉ उषा जी का यह संग्रह  इसलिए भी संजोने लायक है ,क्योंकि इसमें  बने रेखाचित्रों से भी पढ़ने वाले को बहुत जुड़ाव महसूस होगा  ।
  डॉ उषा जी से मिलना भी बहुत सुखद अनुभव रहा । जितनी वो खुद सरल और प्यारी है उनका लिखा यह संग्रह भी उतना ही बेहतरीन है । अभी एक ग्रुप में जुड़ कर उनकी आवाज़ में गाने सुने ,वह गाती भी बहुत सुंदर  हैं । ऐसी प्रतिभाशाली ,बहुमुखी प्रतिभा व्यक्तित्व के लिखे इस संग्रह को जरूर पढ़ें ।
धन्यवाद उषा जी इस शानदार काव्यसंग्रह के लिए और आपको बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं

ताना बाना
डॉ उषा किरण
शिवना प्रकाशन
मूल्य 450 rs

मुँहबोले रिश्ते

            मुझे मुँहबोले रिश्तों से बहुत डर लगता है।  जब भी कोई मुझे बेटी या बहन बोलता है तो उस मुंहबोले भाई या माँ, पिता से कतरा कर पीछे स...