ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

सोमवार, 14 मई 2018

मुनाफा

विदा के बाद 
समेट रही थी घर, 
दोने, पत्‍तल, कुल्‍हड 
ढोलक, घुंघरू, मंजीरे 
सब ठिकाने पहुंचाए 
सौगातें बांटी 
भाजी सबके साथ बांधी 
फुर्सत से
डायरी उठा 
हिसाब लेकर बैठी 
कितना खर्चा 
कितना आया 
हैरान थी 
घटा कुछ भी नहीं था 
बेटी तो आज भी 
उतनी ही 
अपनी थी 
ब्‍याज में 
एक अपना सा 
बेटा भी
पीछे
मुस्‍कुराता खडा था।

सलीका

घिरे आते तिमिर को उसने
डर कर धूरते कहा
“क्या होगा कल बच्चों का”
उसके कमजोर कांपते हाथों को
अपनी पसीजी हथेली में थाम
सजल नयन मैंने कहा-
“वही... जो होना है 
क्‍या सोचते हो तुम
क्‍या ये तुमसे पलते हैं “!
उंगली उठाकर मैंने अनंत को देखा
फिर, थोडा सा हंसकर कहा
“यह सब पहली बार तो नहीं 
न जाने कितनी नावों में
कितनी बार... “?
उसने आसमानी उंचाइयों को
अदब से देखा
अाश्‍वस्‍त हो मुस्‍कुराया
और इस तरह
सारी उम्र जीने का सलीका तुमसे सीख कर भाई
तुम्‍हें मरने का सलीका 
सिखा रही थी
मैं !!!




मन्नत

एक रोटी बनाऊं 
चांद जितनी बडी 
जिसमें सब भूखों की 
भूख समाए, 
चरखे पर कोई
ऐसा सूत कातूं 
कि सब नंगों का 
तन ढक जाए 
मेरी छत हो 
इतनी विशाल
जो सभी बेसहारों की
गुजर हो जाए 
कुछ ऐसा करो प्रभु 
कि आज
ये सारे सपने 
सच हो जाएं।


एकलव्य

एकलव्‍य 
वे भी थे 
एकलव्‍य ये भी हैं 
फर्क सिर्फ इतना है
वो अंगूठा काट देते थे 
ये अंगूठा
काट लेते हैं।



अहम्

लहर बार-बार आकर 
लडती है, झगडती है 
मैं हूं... मैं हूं... 
पर- 
सागर मौन रहकर 
बस माैन ही रहता है।



सोच का स्वेटर

सोच का स्‍वेटर

बचपन से बुना
बडा बेढब 
इतना बडा 
नहीं किसी काम का 
पर करें क्‍या ?
सोच की सिलाइयों की
आदत है बुनने की
रूकती ही नहीं, बस... 
बुने ही जाती है

राखी




लो बांध लिए बहनों ने
भाइयों की कलाइयों पर
प्यार के ,आशीष के
रंग -बिरंगे धागे...
मना कर उत्सव पर्व
लौट गए हैं सब
अपने-अपने घर
रोकी हुई उच्छवास के साथ
हृदय की गहराइयों में संजोई
प्यार,स्नेह के सतरंगी रंगों से रंगी
आशीष के ,दुआओं के
धागों से बुनी...
तारों की छांव में
विशाल गगन तले
खड़ी हूं बांह फैलाए
तुम्हारे असीम भाल पर
लाओ तो
लगा कर तिलक दुलार का
बांध देती हूं मैं भी
राखी अब...
अपनी कलाई बढाओ तो
भैया !

मुँहबोले रिश्ते

            मुझे मुँहबोले रिश्तों से बहुत डर लगता है।  जब भी कोई मुझे बेटी या बहन बोलता है तो उस मुंहबोले भाई या माँ, पिता से कतरा कर पीछे स...