ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

सोमवार, 14 मई 2018

मुनाफा

विदा के बाद 
समेट रही थी घर, 
दोने, पत्‍तल, कुल्‍हड 
ढोलक, घुंघरू, मंजीरे 
सब ठिकाने पहुंचाए 
सौगातें बांटी 
भाजी सबके साथ बांधी 
फुर्सत से
डायरी उठा 
हिसाब लेकर बैठी 
कितना खर्चा 
कितना आया 
हैरान थी 
घटा कुछ भी नहीं था 
बेटी तो आज भी 
उतनी ही 
अपनी थी 
ब्‍याज में 
एक अपना सा 
बेटा भी
पीछे
मुस्‍कुराता खडा था।

18 टिप्‍पणियां:

  1. वाह , बधाई इस सुन्दर ब्लॉग के लिये .

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  2. बहुत खूब!,सबको अपना लिया ....आपने ब्लॉग बनाकर रचनाओं को सहेज लिया हमारे लिए,आभार आपका 🙏

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    1. आपकी ,शिखा और वन्दना ...की ही प्रेरणा से बना ,मुझे भी अच्छा लग रहा है सब रचनाएं यहां सुरक्षित रहेंगी 😊...आपका आभार 🙏

      हटाएं
  3. हिन्दी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है.

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    उत्तर
    1. जी मैडम...अब क्या कहें...धन्यवाद आपको पसंद नहीं है

      हटाएं
  4. ब्लॉगर होने की बधाई,
    मुनाफ़ा हो तो अपना होना सार्थक लगता है

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  5. हार्दिक बधाई उषा जी । स्वागत है आपका ब्लॉग बिरादरी में । बहुत ही खूबसूरत कविता पढ़ी आपकी मुनाफा । आपकी सकारात्मक सोच को सलाम । बहुत खुशी हुई अब आपसे आपकी रचनाओं के माध्यम से भी जुड़ने का अवसर मिलेगा ।

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  6. आपकी प्रतिक्रिया अनमोल होगी मेरे लिए

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  7. एक अपना सा बेटा पीछे मुस्कुराता हुआ खड़ा था

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  8. जी नमस्ते,
    "पाठकों की पसंद" के अंतर्गत हमारी विशेष अतिथि आदरणीया साधना जी ने आपकी रचना पसंद की है।
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १६ नवंबर २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  9. वाह बहुत ही सुंदर भावों से सजी प्यारी रचना।

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