ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

मंगलवार, 22 मई 2018

सच कहना !




ए चाँद सच कहना
देखो ,झूठ न बोलना
कल
छिटकी देखी तुम्हारी 

चांदनी से बुनी चूनर 

तारों की पायल

 मैंने भी उठ 

एक दीप जलाया 

मेरा नन्हा सा मन 

हुलसा उठा  

बस तभी से 

गुम हो तुम 

सच कहना 

तुम जल गए न

हाँ चाँद 

जल गए हो तुम !
                          __ उषा किरण 










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