एक नन्हे से पौधे की ओट में
मीलों चली है वो
आसमान पर तपता सूरज
नीचे जलती जमीन
एक पग धरती है
दूसरा उठा लेती
दूसरा धरती है तो
तिलमिला कर
पहला उठा लेती है
पैर छालों से भरे हैं
मन भी...
कुछ छायादार पेड़
दिखते हैं दूर-दूर
मन करता है दौड़ जाए
टिक जाए कुछ देर
या हमेशा को....
फिर देखती है हाथ में पकड़े
उस नन्हे पौधे को
नहीं ! अभी नहीं....
बुदबुदाती है होठों में
अभी चलना ही होगा
दूर क्षितिज के पास
हरियाली की गोद में
रोपना है इसे
सूरज ढलने से पहले...
और...
वो बहादुर बेटी
निरन्तर
चल रही है मीलों
तपती बंजर जमीन पर...!!!
___उषा किरण
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