जब से
घने जंगलों को छोड़
ड्रॉइंगरूम के कोने में सिमट गए हो
जरूरत के हिसाब से
हंसते हो
इंचों में नाप के
मुस्कुराते हो
बरगद !
तुम कितने मॉडर्न हो गए हो
आधुनिकता तो सीखे कोई तुमसे
तुमने अपने कद को देखो
कितना छोटा कर लिया है
जब तुम जंगल में थे लोग कहते हैं-
तुम विस्तृत थे
उन्मुक्त थे
झूमते थे
हंसते थे
हवाओं के साथ सुर मिला कर
गाते थे
पंछी के पंखों के नीचे
अपनी गुनगुनी उंगलियों से
गुदगुदाते थे
तुम्हारी छाया में
कुछ श्रम विश्राम पाते थे
उन लोगों को कहने दो
अपनी तरफ देखो
कितने साफ हो तुम
और कितने सलीकेदार
आखिर
सभी को हक है
अपना स्टैंडर्ड सुधारने का
आज तुम्हारी कीमत है
तुम खरीदे तो जा सकते हो
नहीं, तुम फिक्र न करो
बरगद !
जब मन करे
तभी तुम गाओ
और भूल जाओ सारी आवाजें
मत देखो वे इशारे
जो कह रहे हैं
बरगद ....
अब तुम बौने हो गए हो !
...............................
- उषा किरण
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