बेटियां होती हैं कितनी प्यारी
कुछ कच्ची
कुछ पक्की
कुछ तीखी
कुछ मीठी
पहली बारिश से उठती
सोंधी सी महक सी
दूर क्षितिज पर उगते
सतरंगी वलय सी
आंखों में झिलमिलाते तारे
पैरों में तरंगित लहरें
उड़ती फिरती हैं तितली सी
बरसती हैं बदली सी
फिर एक दिन-
आँचल में सूरज-चॉंद
ऑंगन की धूप छॉंव लेकर
कोमल सी पलकों से रचातीं
सुर्ख बेल-बूटे
फिर उजले से आंगन में
रोपती हैं जाकर
बड़े चाव से
कुछ अंकुरित बीज
समर्पण के
संस्कार के
ममता के
दुलार के
और बेटियां इस तरह
रचती हैं
क्षितिज के अरुणाभ भाल पर
आगाज
एक नन्हीं सुबह का !!!
एक साथ कई पोस्ट मत डालिये . एक दो दिन पाठकों को पढ़ने का समय दीजिये . बहुत प्रसन्नता हो रही है आपके इस रूप से रूबरू होकर .
जवाब देंहटाएंआपने पढा ...सराहा...अच्छा लगा...आगे ध्यान रखूंगी
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