ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

मंगलवार, 29 मई 2018

जब तक


सुन लो               
जब तक कोई 
आवाज देता है
क्यूँ कि...  
सदाएं  एक वक्त के बाद 
खामोश हो जाती हैं 
और ख़ामोशी .... 
आवाज नहीं देती!!
                  -----उषा किरण 













कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

खुशकिस्मत औरतें

  ख़ुशक़िस्मत हैं वे औरतें जो जन्म देकर पाली गईं अफीम चटा कर या गर्भ में ही मार नहीं दी गईं, ख़ुशक़िस्मत हैं वे जो पढ़ाई गईं माँ- बाप की मेह...