ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

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रविवार, 13 मई 2018

बोंसाई


जब से
घने जंगलों को छोड़
ड्रॉइंगरूम के कोने में सिमट गए हो
जरूरत के हिसाब से
हंसते हो
इंचों में नाप के
मुस्कुराते हो
बरगद !
तुम कितने मॉडर्न हो गए हो
आधुनिकता तो सीखे कोई तुमसे
तुमने अपने कद को देखो
कितना छोटा कर लिया है
जब तुम जंगल में थे लोग  कहते हैं-
तुम विस्तृत थे
उन्मुक्त थे
झूमते थे
हंसते थे
हवाओं के साथ सुर मिला कर
गाते थे
पंछी के पंखों के नीचे
अपनी गुनगुनी उंगलियों से
गुदगुदाते थे
तुम्हारी छाया में
कुछ श्रम विश्राम पाते थे
उन लोगों को कहने दो
अपनी तरफ देखो
कितने साफ हो तुम
और कितने सलीकेदार
आखिर
सभी को हक है
अपना स्टैंडर्ड सुधारने का
आज तुम्हारी कीमत है
तुम खरीदे तो जा सकते हो
नहीं, तुम फिक्र न करो
बरगद !
जब मन करे
तभी तुम गाओ
और भूल जाओ सारी आवाजें
मत देखो वे इशारे
जो कह रहे हैं
बरगद ....
अब तुम बौने हो गए हो !
...............................
- उषा किरण


शनिवार, 12 मई 2018

नटखट- चॉंद


रात बारिश की
नन्हीं उंगली पकड़
नीचे उतर आया
नटखट-चॉंद
चलो 
नाव में बिठा कर
वापिस पहुंचाएं .

बेटियाँ

बेटियां होती हैं कितनी प्यारी
कुछ कच्ची
कुछ पक्की
कुछ तीखी
कुछ मीठी
पहली बारिश से उठती
सोंधी सी महक सी
दूर क्षितिज पर उगते
सतरंगी वलय सी
आंखों में झिलमिलाते तारे
पैरों में तरंगित लहरें
उड़ती फिरती हैं तितली सी
बरसती हैं बदली सी
फिर एक दिन-
आँचल में सूरज-चॉंद
ऑंगन की धूप छॉंव लेकर
कोमल सी पलकों से रचातीं
सुर्ख बेल-बूटे
फिर उजले से आंगन में 
रोपती हैं जाकर
बड़े चाव से
कुछ अंकुरित बीज
समर्पण के
संस्कार के
ममता के 
दुलार के
और बेटियां इस तरह 
रचती हैं
क्षितिज के अरुणाभ भाल पर
आगाज
एक नन्हीं सुबह का !!!

मुँहबोले रिश्ते

            मुझे मुँहबोले रिश्तों से बहुत डर लगता है।  जब भी कोई मुझे बेटी या बहन बोलता है तो उस मुंहबोले भाई या माँ, पिता से कतरा कर पीछे स...