ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

स्मृति -चित्रण लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
स्मृति -चित्रण लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शनिवार, 5 सितंबर 2020

#तस्मै_श्री_गुरुवे_नम:🌸🌼🌺☘️🌿


"गुरू बिन ज्ञान न उपजै, गुरू बिन मिलै न मोष।

गुरू बिन लखै न सत्य को गुरू बिन मिटै न दोष।।”

आज इस मुकाम पर आकर जब पलट कर देखती हूँ तो अपने गुरुओं के प्रति मन श्रद्धावनत हो जाता है। हर इंसान के जीवन में उसके गुरुओं की महत्वपूर्ण भूमिका रहती ही है । हम अपने आदर्श गुरुजनों का अनुकरण करते हैं तो कभी उनका प्रोत्साहन हमें जीवन में कुछ बनने को प्रेरित करता है।

हमारी पीढ़ी की गुरुजनों पर जैसी श्रद्धा थी उतनी तो आज नहीं देखने को मिलती लेकिन फिर भी आज भी कई शिष्य हैं जो गुरुओं का बहुत सम्मान करते हैं , अपना आदर्श मानते हैं और परम्परा का निर्वहन करते हैं !मेरे जीवन में ऐसे अनेक शिष्य आए हैं !

यदि अपने गुरुजनों को याद करूं तो  पीलीभीत में घर पर ट्यूशन पढ़ाने आती थीं जो सफेद साड़ी में बेहद सौम्य टीचर जी उनकी याद आती है ...जिनके साथ हम दोनों बहनें एक बार माँ के साथ ‘अनपढ़ ‘ फिल्म देखने गए थे । मैं छठी कक्षा में पढ़ती थी खूब रोई देख कर । घर आकर टीचर जी ने समझाया कि पढ़- लिख कर अपने पैरों पर खड़ा होना क्यों जरूरी है । 

उस फिल्म में अनपढ़ माला सिन्हा की दुर्गति देख समझ आया पढ़ाई क्यों जरूरी है वर्ना उससे पहले तो लगता था बस पेरेन्ट्स और टीचर हमारे दुश्मन ही हैं और टॉर्चर करने के लिए ही ये पढ़ाई-लिखाई होती है । छोटी क्लास में तो स्कूल बहुत रो-धो कर ही जाते थे।कभी पेट दर्द का बहाना कभी उल्टी का ।कई बार तो जोर- जोर से रो धोकर इतना ड्रामा खड़ा कर देते कि लोग छतों से देखने आ जाते तो लगता अब तो बहुत बेइज्जती होगी अगर चले गए तो पर उठा कर रिक्शे में लाद दिए जाते थे ! कई बार रिक्शे के आते ही खुद को टॉयलेट में बन्द कर लेते थे ।ताता(पापा) के ऑफिस जाने पर अम्माँ कहतीं 

"अरे उषा आ जाओ गए तुम्हारे ताताजी निकल आओ” तब निकलते और बस फिर पूरा दिन आजाद हम और हमारी मस्ती !परन्तु इसके बाद निश्चय किया कि अब मक्कारी नहीं करेंगे मन लगा कर पढ़ेंगे।

पीलीभीत में कक्षा छै: में पढ़ते थे तब डाँस के मास्टर साहब आते थे कत्थक सिखाने और हम माँ के कहने पर ता थेई थेई तत ...करते पर जरा भी एन्जॉय नहीं करते थे क्योंकि वो टाइम कॉलोनी के बच्चों के साथ मिल कर ऊधम मचाने और खेलने का होता था ,जिसमें कुछ टाइम की कटौती हो जाती थी तो हम दोनों बहनें मिल कर मास्टर साहब को छकाने की नई- नई योजनाएं बनाते रहते थे।आज इस उम्र में न जाने क्यों मन घुँघरू बाँध फिर से ता थेई थेई तत...करने को मचलता है ।

हमारे डाँस का प्रोग्राम स्कूल में करवाने के लिए प्रिंसिपल से परमीशन लेकर मास्टर साहब ने खूब जम कर प्रैक्टिस करवायी पर जैसे ही हम अपनी कत्थक की पिंक ड्रेस पहन घुँघरू बाँध धड़कते दिल से स्टेज पर आए तो पता नहीं किस बात पर वाइस प्रिंसिपल और मास्टर साहब में झगड़ा शुरु हो गया और हम चुपचाप स्टेज से नीचे उतर आए अब तो याद नहीं कारण झगड़े का क्या था पर मास्टर जी ने जम कर झगड़ा किया था मैडम से ...नमन है मास्टर साहब की सादगी और लगन को🙏


पीलीभीत के स्कूल में ही मैडम थीं कोकिला देवी जिनकी बहुत सी मट्ठे व नीबू अचार की मजेदार चटपटी यादें हैं पर रहने देती हूँ उनको शेयर नहीं करती...नमन उनको भी 🙏

उसके बाद बलिया में आठवीं क्लास में जो मास्टर साहब घर ट्यूशन पढ़ाने आते थे वो इतने गंभीर थे कि डर के मारे साँस साधे पढ़ते रहते थे । एक दिन फ़ाइनल एग्ज़ाम से दो दिन पहले मनोज कुमार की फिल्म ' उपकार ‘आई थी वो देखने चले गए । साढ़े नौ बजे तक लौट कर आए तो पापा ने फुसफुसा कर बताया कि -

"तुम्हारे मास्टर साहब ढ़ाई घंटे से बैठे तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं हमने कहा कि देर हो जाएगी आने में पर वो बोले कोई बात नहीं हम इंतजार करेंगे !”

हमें काटो तो खून नहीं ! लगा भाग जाएं घर से, कुछ कर लें ...हाय- हाय ये क्या कर दिया हमने ...सोचा था हमें न पाकर चले जाएंगे पर अब क्या करें? हमारा मन हाहाकार कर रहा था । 'मेरे देश की धरती उगले , उगले हीरे मोती...’ का सारा नशा काफूर हो चुका था! काँपते से गए तो मास्टर साहब ने मोटे चश्मे से देखा और कहा -

"देख ली पिक्चर ?”

"जी” हम काँपते गले से मिमियाए ।

"परसों तो पेपर है आपका...तो कोई नहीं ,आपका होम-वर्क ये है कि इतने कीमती तीन घन्टे में क्या देखा और क्या -क्या कीमती शिक्षा मिली विस्तार से लिखिए !”

और मास्टर साहब चले गए हम खूब रोए और माँ से लड़े कि तुमने हमें मना क्यों नहीं किया ...तो जिन्होंने बिना सजा दिए बहुत बड़ा सबक दे दिया ...नमन उन गुरु को भी 🙏

आठवीं क्लास में पापा का बीच सैशन ट्रान्सफर हो गया तो हमें और बहन को गाँव में कुछ महिनों को भेजा गया और वहीं एडमीशन करवा दिया गया।ताऊ जी कॉलेज मैनेजमेन्ट कमेटी में थे तो व्यवस्था की गई कि जो किताबें चेंज हुई हैं मास्साब उनको ही अलग से पढ़ा दिया करेंगे ।वहाँ शहर से आने के कारण बहुत रुतबा था अपना।एक दिन जब पानी पीकर लौटे तो देखा हमारी बड़ी बहन जी क्लास में खड़े होकर सबको बता रही थीं कि प्रेशर कुकर क्या होता है और बच्चे व मास्साब सब मुँह खोले सुन रहे थे क्योंकि कुकर तब नया- नया ही चला था !

गाँव का वह चार पाँच महिनों का शिक्षा- प्रवास बेहद मस्ती भरा रहा। कोई अनुशासन नहीं ,खूब मस्ती की हमने जी भर कर ! खेतों व बाग में सखियों की टोली संग डोलना , पेड़ पर चढ़ कर आम और जामुन तोड़ना...गुड़ियों के ब्याह रचाना, बिलउओं में ताई जी संग जाना और खूब नाचना-गाना ...ढेरों यादें हैं वहाँ की मस्ती की । वहाँ स्कूल में टाट पट्टी पर बैठते थे, कपड़े में किताबें बाँध कर ले जाते थे । लड़कों की इतनी बुरी तरह से पिटाई होती कि कई डंडियाँ टूट जातीं ...वो पिटते और बिलबिला कर चीखते ,रोते  और लड़किएं चुपके- चुपके मुँह छिपा कर मुस्कुरातीं पर हम काँपते और रोते रहते।

यूँ तो गाँव के हर आँगन में सपरी ( अमरूद) का पेड़ था पर 'कट्टी- बुआ’ के आँगन की सपरी के लिए व्याकुल होकर हर बच्चा पत्थर मार कर भाग जाता था क्योंकि वो फिर गाली बकती थीं ! और बिट्टा- बुआ को छेड़ने और गाली खाने के लिए नाक पर उंगली फिराना ही काफी होता था ! लेकिन हम इन उत्पातों से दूर ही रहते थे !

वहाँ के अमीन मास्साब यूँ तो रिश्ते में हमारे बब्बा लगते थे पर हमें बहुत बुरे लगते  थे पीछे पड़े रहते हमारे -

" काए कल्लू की बहू की मूँछ इतनी बड़ी और बिल्लू की बहू की पूँछ इत्ती लम्बी ,बस जे ही करने आईं तुम सहर से इहाँ , हैं कभी फुरसत मिले बिलउए से तो तनिक किताब भी खोल लिया करो बिटिया ...!”

कभी भी हमारे बस्ते में से कलमी अमिया निकाल लेते और चपरासी को बुला कर देते कि -"जाओ घर पर दे आओ मुंसाइन को कहियो बढिया चटनी बट लें हरी मिच्चा पुदीना डाल के !” हम कसमसा कर रह जाते ....उनको भी नमन🙏

फिर बुलन्दशहर में टैन्थ में घर पर म्यूजिक सिखाने आते थे श्री परमानन्द शर्मा मास्टर जी उनका विशेष स्नेह मिला वो दिल्ली से गोद में रख कर हमारे लिए तानपुरा लेकर आए थे । हम अपने गायन से जितने निराश रहते उनको हम पर उतना ही विश्वास था । उनके फेवरिट स्टुडेंट रहे !उनकी दिव्य स्मृतियों को सादर नमन🙏

एक  कजिन टैन्थ में ड्रॉइंग में फेल हो गई तो पापा ने सतारा से अपने पास बुला लिया ।उसको ड्रॉइंग टीचर सिखाने आते थे हमारे पास ड्राँइंग नहीं थी पर हम पूरे टाइम बैठ कर देखते रहते थे । एक दिन मास्टर साहब ने कहा कि कुछ बना कर लाओ हमने एक ड्राइंग बना कर दिखाई वो बहुत खुश हुए पापा को बुला कर कहा "मैं इसको भी सिखाउंगा इसका हाथ बहुत अच्छा है बेशक आप पैसे मत देना।” 

फिर हम भी सीखने लगे और इलैवेन्थ में हमने भी ड्राइंग ले ली जो बहुत मुश्किल से मिली सास्टर साहब के कहने पर माँ ने प्रिंसिपल को गारन्टी दी कि हमारे एग्जाम में सबसे ज्यादा नम्बर आएंगे ! पहले तो मैडम बहुत नाराज हुईं पर बाद में हम उनके फेवरिट स्टुडेंट हो गए ,इस तरह हमारे अंदर पेंटिंग की जड़ों को ढूँढ कर तराशने वाले श्रद्धेय अश्विनी शर्मा मास्टर साहब को नमन जिनके कारण लगभग चालीस साल तक ड्राइंग की टीचर रही और जीवन में यश, धन, आत्मविश्वास आत्मसम्मान व परम सन्तुष्टि प्राप्त कर सकी !🙏

ट्वैल्थ में थी तब पापा का ट्रान्सफर मथुरा हो गया और वहाँ हमारे होश उड़ गए । कई किताबें बदल गईं जैसे संस्कृत और हिन्दी की किताबें यहां दूसरी पढ़ाई जाती थीं और आधी किताब इलैवेन्थ में पढ़ा दी गई थी बाकी आधी ट्वैल्थ में पढ़ाई जा रही थीं हमें समझ नहीं आ रहा था क्या करें ? हमने जाकर मैडम से बात की तो उन्होंने कहा कि यहाँ वाली ही पढो़ पीछे का खाली पीरियड में आकर पढ़ लिया करो । 

अब समस्या म्यूजिक की आई क्योंकि क्लास में रागों की बंदिश दूसरी सिखाई जा रही थीं जबकि हमने दूसरी तैयार की हुई थीं ...खैर मास्टर साहब हमारा अलग से सुनते थे । उनका एक संगीत स्कूल था तो शाम को वहाँ जाकर सीखते थे ! शाम को तानपुरा लेकर प्रैक्टिस करते तो बाहर गली के उजड्ड बच्चे जोर - जोर से चिल्लाते 'सारे गधे पानी पी गए ‘😂 बाहर किसी सहायक को डंडा लेकर बैठाते तब प्रैक्टिस कर पाते थे ।वो संगीत मास्टर साहब ब्लाइन्ड थे पर बहुत मेहनत व पेशेन्स से सिखाते थे...उनको भी नमन🙏 

क्रमश:

शुक्रवार, 29 मई 2020

स्मृति- -चित्रण ( आँचल की खुशबू)



आँचल की खुशबू —
~~~~~~~~~~~~

"उषा इधर आओ”
“हाँ....क्या ?”
"चलो तुम ये भिंडी काटो”
"हैं भिंडी ...पर क्यों.....मैं क्यों ?”
“मैं क्यों का क्या मतलब ? काटो भिंडी हम कह रहे हैं बस...हर समय किताबों में घुसी रहती हो ये नहीं कि कुछ काम- काज सीखो ।”
"अब ये भिंडी काटने में क्या सीखना होता है भई...ए राजपाल सुनो इधर आओ चलो तुम ये भिंडी काटो...हमें पढ़ना है।”
“अरे राजपाल से हम भी कटवा लेते पर ये भिंडी आज तुम ही काटोगी समझीं “ अब तक अम्माँ को गुस्सा आ चुका था तो हमने चुपचाप बैठ कर फटाफट भिंडी कतरने में ही अपनी खैर समझी।
“ये भिंडी काटी हैं तुमने कोई छोटी कोई बड़ी और बिना देखे काटे जा रही हो जाने कितने कीड़े काट दोगी तुम ?”
“अरे हम कीड़े देखते जा रहे थे पर छोटी बड़ी से क्या फर्क पड़ने वाला है सब्ज़ी पक के सब बराबर ही हो जानी हैं “ हम चिनचिनाए।
“रुको ...देखो जो छोटी होगी वो जल्दी पक जाएगी और जो बड़ी है वो देर से तो जब तक बड़ी पकेगी छोटी भिंडी घुट जाएगी ...समझीं...सिर्फ़ दो चार पेंटिंग बना कर दीवार पर सजा देना ही काफी नहीं होता ,हर काम में कलात्मकता होनी चाहिए ...खाली कविता कहानी से ही जीवन नहीं चलता है !”
उनका लैक्चर शुरु हो चुका था ...बात पूरी हो हम तब तक अपने दड़बे में घुस किताब उठा चुके थे,बात ख़त्म ।
पर बात वहीं ख़त्म नहीं हुई ...आज उस बात के 43 साल बाद भी जब भी ,जितनी बार हमने भिंडी काटी हैं ये भिंडी प्रकरण हमेशा स्मृतियों में भिंडी सा चिपक कर साथ चला आया है।
बस अम्माँ यूँ ही चलती हो तुम साथ मेरे ...अपनी बातों, नसीहतों , मुहावरों और किस्सों से महकती हो मेरे भीतर ...तुम्हारी पीठ से चिपक कर तुम्हारा पल्लू सूँघती थी मैं जब छोटी थी ...क्या पता था अनजाने में ही जीवन भर के लिए वो सुगन्ध अन्तर्तम में बसा रही थी मैं...माँ कभी भी कहीं नहीं

रविवार, 24 मई 2020

स्मृति चित्रण (नर में नारायण)





"मैं सोया और स्वप्न देखा
कि जीवन आनन्द है
मैं जागा और देखा कि
जीवन सेवा है
मैंने सेवा की
और पाया कि
सेवा आनंद है”
        —रवीन्द्रनाथ टैगोर

चार दिन पहले मालविका का फोन आया तो बताने लगी कि वो जिस एन जी ओ "प्रगति “के साथ काम करती है उस स्कूल में जब टीचर ने ऑनलाइन क्लास लेते समय एक बच्ची को होमवर्क न करने पर डाँटा  तो वो बोली मैडम तीन दिन से खाना नहीं खाया हमसे नहीं पढ़ा जा रहा । दरअसल प्रगति के तीनों ही स्कूलों में बहुत गरीब घरों के बच्चे पढ़ते हैं ।उन टीचर ने मालविका को बताया मालविका ने तुरन्त फोन नं० लेकर उसके फादर से बात की और घर में जितना भी राशन , मैगी के पैकिट, ब्रैड, दूध था सब थैलों में भरा ,आदी ने भी अपने चॉकलेट्स बिस्किट लाकर दिए ।सब खाने पीने का सामान गवीश के साथ ले जाकर उसके पापा को पास के मार्केट में बुला कर दे दिया ।उन्होंने बताया कि वो गाड़ी धोने का काम करते हैं पर आजकल न तो गाड़ी निकलतीं न ही धुलतीं हैं तो लोगों ने पैसे देने बन्द कर दिए,बहुत परेशानी है।मालविका ने बोर्ड के  सभी मेंबर से बात की सबने मिल कर अरेंजमेन्ट किया । कुछ निर्णय लिए गए ...फंड्स का इंतजाम  कर राशन के पैकिट्स बनवाए और सभी बच्चों के घर फोन करके उनके पेरेन्ट्स को स्कूल बुला कर राशन व स्टेशनरी देने की व्यवस्था सुरक्षित तरीके से करवाई। । वो बता रही थी कि राशन देते समय जब मैंने पूछा कि अब गाँव तो नहीं जाओगे तो सभी ने यही कहा कि खाने का इंतजाम तो हो गया पर मकान का किराया कहाँ से लाएंगे ।आपस में सभी बोर्ड मेंबर से सलाह कर फिर सभी के एकाउन्ट में चार- चार हजार रुपये भी डलवाए ।अब तीनों स्कूलों के लगभग 450 बच्चों और उनके परिवारों के चेहरों पर मुस्कान वापिस आ रही है अभी भी निरन्तर राशन बाँटा जा रहा है और बच्चे भी अब मन लगा कर होमवर्क पूरा करते हैं ।मुझे यह सब सुन कर बहुत तसल्ली , संतोष और  खुशी मिली।
               मालविका मुझे बता रही थी कि उस बच्ची के फादर जिस सोसायटी में कारें धोने का काम करते थे वहाँ काफी रिच फ़ैमिलीज रहती हैं जिनका शायद किसी होटल या रेस्टोरेन्ट का लन्च या डिनर का एक बार का या एक जोड़ी जूते का बिल जितना आता होगा उतने में उस बेचारे का पूरा परिवार महिने भर खाना खा सकता है पर इस आपदा काल में उनको यदि बिना काम किए पैसे दे देंगे तो उनको तो ऐसी कोई कमी नहीं आने वाली है पर ....दरअसल बात नीयत की है ।
आपकी इस लालच की वजह से उनका पूरा परिवार भूखा सोएगा ये क्यों नहीं दिखाई देता । आपकी तो ऐयाशी कुछ कम हो सकती है पर वो बेचारे तो भूखों मर जाएंगे।पुताई वाले, कबाड़ी वाले,रिक्शा ,ऑटो वाले, धोबियों,छोटी दुकानों वाले ,घरों में काम करने वाली बाइयों इन सबका क्या हाल होगा आप सोच कर देखिए।हम सबकी मदद नहीं कर सकते पर जो हमारे दायरे में है हम उतना तो कर ही सकते हैं ।
         इस पोस्ट को लिखने का मकसद बस यही है कि मुझे लगता है कि किसी की भी अच्छी बातों और कामों को शेयर जरूर करना चाहिए होसकता है इससे कुछ और लोगों को भी कुछ अच्छा करने की प्रेरणा मिले ।
    मेरी सभी से गुजारिश है दिल बड़ा रखिए अपने सहायकों को पूरा पेमेन्ट करिए हो सके तो कुछ एक्स्ट्रा देकर मदद करिए वर्ना भूखे पेट वो अपने देस-गाँवों को लौटेंगे या यहीं कैसे जिन्दा बचेंगे।हो सकता है वो लौटें ही नहीं तब? कैसी होगी आपकी जिंदगी इन सबके बिना...जरा सोचिए।
आपदा- काल है ,गरीबों के लिए ये समय काल बन कर आया है ।यथासंभव इनकी मदद करिए जहाँ- जहाँ जितनी हो सके ।यकीन मानिए मंदिरों ,तीर्थों , पूजा,अनुष्ठानों से आप जितना पुण्य कमाएंगे उससे दस गुना ज्यादा इस संकट की घड़ी में उनकी मदद करके कमाएंगे, भूखों का पेट भरके कमाएंगे ।नर में ही नारायण को देखिए ।
ये सच है कि कोई भी नेकी की राह आसान नहीं होती ।बहुत रुकावटें आती हैं । जब आप शुभ संकल्प लेते हैं तो कुछ लोग नकारात्मकता भी फैलाते हैं ऐसे वक्त पर ...लेकिन यदि आप उजले मन से नेकी के रास्ते पर आगे बढ़ते हैं तो राहें खुद आसान हो जाती हैं । कभी कहीं पढी पंक्तियाँ कुछ-कुछ याद आ रही हैं...
     "साफ है मन यदि
     राह है सच्चाई की
     तो प्रार्थना के बिना भी
     प्रसन्न होंगे देवता....!!” 🙏

#फोटो_प्रगति_में_राशन_वितरण

मंगलवार, 24 मार्च 2020

मन का कोना — नर हो न निराश करो मन को ...

                                     


वैश्विक संकट की स्थिति है ।सारे दिन घर में बन्द होकर टी वी , न्यूज़ पेपर, मोबाइल में देख पढ़ कर सबके मन दहशत में हैं । जिस भी फ्रैंड से बात की हर कोई ख़ौफ़ज़दा है ।फेसबुक पर भी कई पोस्ट में हताशा दिखाई दी दहशत है सब तरफ बदहवासी है खुद मैं भी सुकून में नहीं हूँ ।सारे दिन टी वी के आगे बैठी रहती हूँ इस उम्मीद में कि अभी उद्घोषणा होगी कि वैक्सीन आ गया जाकर सब अपने डॉक्टर से लगवा लें ...जबकि जानती हूँ अभी वक्त लगेगा काश मेरा ये दिवा स्वप्न साकार हो जाए!🙏
ज्यादातर लोगों के बच्चे विदेशों में या दूसरे शहरों में पढ़ रहे हैं या जॉब कर रहे हैं उनके लिए मन परेशान है ।देश के हालात भी धीरे-धीरे चिन्ताजनक होते जा रहे हैं परन्तु कुछ बेवकूफों की बेवक़ूफ़ी का खामयाजा सबको भुगतना पड़ेगा ।कई लोगों की पोस्ट और मैसेज पढ़ रही हूँ धीरे- धीरे सब अवसाद में जा रहे हैं तो संभलिए खुद और संभालिए सबको । अपने से जुड़े अशिक्षित व अति उत्साही और अन्धविश्वासी लोगों को मौका मिलने पर समझाएं कि घर पर रहें और आवश्यक सावधानी स्वच्छता का पालन करें ।
ध्यान करिए , प्राणायाम करिए मन शाँत होगा । एन्जायटी से कहीं ऐसा न हो कि आपका बी पी , शुगर बेकाबू हो जाए या दिल पर ज्यादा बोझ पड़ने से दिल गड़बड़ा जाए और आपको डॉक्टर या हॉस्पिटल की जरूरत पड़ जाए । एक तो डॉक्टर्स व हॉस्पिटल स्टाफ पर पहले ही इतना बोझ है कोरोना के चलते और आगे भी उनको कोरोना पीडि़तों को देखना है तो हिम्मत रखिए ।अपना ध्यान रखिए ,अपने बुजुर्गों से बात करिए , हौसला दीजिए उन्हें , बच्चों के साथ गाने गाइए , नाती पोतों को कहानी सुनाइए उनके पापा मम्मी की बचपन की शैतानियाों के किस्से सुनाइए , कविता या कहानी की दो लाइन सुना कर कहिए बाकी तुम पूरी करो  देखिए फिर उनकी कल्पना की उड़ान कैसी ईरान तूरान की मिलाते हैं ।बच्चों से कुछ रेसिपी ट्राई करवाइए हमारे आदी (नाती) ने चीज सैंडविच , कप केक ,फ्रूट सलाद बनाना सीखा है । जब बच्चे खुद बनाते हैं तो खूब गपर-गपर खाते हैं ।बच्चों के साथ इन्डोर गेम खेलिए , यदि लॉन हैतो बैडमिंटन खेलिए (मेरे दामाद ने इन दिनों चार कि० वेट कम किया खेल कर) कुछ जो मन को अच्छा लगे पढ़िए, मित्रों से फोन पर बात करिए एक दूजे का हौसला बढ़ाइए ।देखिए घर में कहीं कभी मंगा कर रखे कलर्स ब्रश रखे हों तो पेंटिंग ही बना डालिए  । नहीं तो गर्म कपड़ों की पैकिंग का काम निबटा लीजिए । अपनी कवर्ड चैक करिए कुछ बहुत अच्छे कपड़े जो ये सोच कर साल दो साल से सेंत रखे हैंकि जब स्लिम हो जाउंगी तब पहनूँगी तो निकाल कर दे दीजिए अपने केयर टेकर्स को और भूल जाइए दो साल में नहीं घटा तो कोई गारंटी नहीं कि आगे भी....।
कभी सितार, हारमोनियम, बाँसुरी, माउथऑर्गन , पियानो,तबला ,कुछ सीखा था जिसे जीवन की आपाधापी में भूल गए थे तो निकालिए ,धूल झाड़िए फिर से जीवन में सुर लाइए कुछ गुनगुनाइए ।अगर लिखने का मन  है या हुनर है तो लिखिए कुछ ।सर्च करिए नेट पर कुछ अच्छी रेसिपी ट्राई करिए आप भी। जैसे आज मैंने तवा फ्राई सब्जी बनाई ।मर्द लोगों को चाहिए कि पत्नियों को कहें अब इस सन्डे ,सैटरडे तुम्हारी छुट्टी और बच्चों के साथ खुद संभालिए किचिन ।बाजार से ग्रोसरी आप खुद लाएं । माली की छुट्टी कर गार्डन में खुरपी चलाइए बच्चों से कहिए पानी दें ।देखिए कितनी ख़ुशियाँ आएंगी घर में सेहत भी बनेगी टेंशन भी कम होगा । सहायकों की छुट्टी होने से आपकी पत्नि पर काम का बोझ आ पड़ा है ऊपर से बढ़िया डिशेज की फ़रमाइश तो जाकर काम में हाथ बंटाइए न ।यदि कोई परिचित या पड़ोसी बुजुर्ग घर पर अकेले रहते हों तो उनकी खबर फोन पर जरूर लेते रहिए और छोटे बच्चों से भी कहिए कि वो भी पूछे संस्कार पड़ेंगे बच्चों में कोई जरूरत हो तो मदद करिए।
आज बेटी ने बताया कि उनकी सोसायटी में एक बुजुर्ग डॉक्टर दंपत्ति अकेले रहते हैं बच्चे बाहर हैं उन्होंने अपनी सभी मेड को छुट्टी दे दी है तो कल बेटी और उसकी कुछ फ्रैंड्स मिल कर उनके घर की साफ- सफाई करके आईं और कुछ खाना भी बना कर दे कर आईं  कुछ देर उनसे बात की हाल- चाल पूछा , हिम्मत बढ़ाई कहा कि कोई प्रॉब्लम हो तो हमें बताइएगा । एक और परिवार है जिन्होंने पूरी तरह खुद को घर में बंद कर लिया है क्योंकि उनकी माँ को कैंसर है कैंसर पेशेन्ट की इम्यूनिटी वैसे भी कम होती है तो अपनी दवाइयाँ लेने जाते समय उनसे पूछा और उनकी भी दवाइयाँ व फल लाकर दिए । सुन कर मन भीग गया मैंने खूब शाबाशी दी
भूल जाइए इस समय जाति -पाँति, धर्म बस जरूरतमंदों को मदद करिए । आप जिन मंदिरों में , तीर्थों में भगवान के नाम पर दान देते हैं वो सब वैसे ही बन्द पड़े हैं नर में नारायण देखिए । आपकी मेड, ड्राइवर, माली जो भी आप पर निर्भर हैं इसके अतिरिक्त भी जहाँ कर सकते हैं उनकी मदद करिए ताकि उनके चूल्हे जलते रहें ।बिना पैसे काटे  छुट्टी दें  एक महिने के पैसे एडवांस दें और कहें कि कम से कम आटा,चावल , नमक ,चीनी, पत्ती,दाल चावल, आटा लाकर रख लें या सेलरी से अलग दान समझ कर कुछ पैसे देकर उनकी मदद करें ऐसा करके देखिए कितनी खुशी और शाँति मिलती है ऐसी शाँति किसी पूजा पाठ से भी नहीं मिल सकती। क्योंकि हो सकता है हालात बिगड़ने पर घरों से निकलने लायक हालात न रहें आगे जाकर  ,क्योंकि  लॉक-डाउन से भी रुक नहीं रहे घरों में कुछ बेवकूफ लोग।आलम ये है कि कल टी वी पर देखा कुछ लोग टैटू बनवाने जा रहे थे...मजाक समझ रखा है कुछ लोगों ने वे कोरोना को गंभीरता से नहीं ले रहे तो सरकार को सख्त कदम उठाने ही पड़ेंगे हो सकता है कल आपके शहर में भी कर्फ़्यू लग जाय।
प्रार्थना करिए  ये आपको मानसिक शक्ति , शान्ति देती है और आशावान बनाती है तो आप जिसको भी इष्ट मानते हों प्रार्थना करिए ,चैन्टिंग करिए या जिस भी धर्म के अनुयायी हों अल्लाह, ईशू,नानक जिसमें भी आस्था हो विश्व के लिए पहले प्रार्थना करिए तब अपने और अपने बच्चों के लिए  करिए सामूहिक प्रार्थना में बल होता है ।
सारे विश्व में मौत का तांडव है । इस समय सबसे बड़ी समस्या है खुद को बचाए रखना और अपने देश परिवार समाज को कैसे बचाएं उस पर विचार कर सहयोग करना ।
पैसे बैंकों में रखे रह गए, जमीन जायदाद पड़ी रह गईं , अकूत संपत्ति भी साथ नहीं गईं और हजारों लोग चटापट उठ गए । रह गया सब यहीं रिश्ते मान- अपमान , सम्मान ,प्रशस्ति-पत्र भी !
दूसरी तरह के अमीर बनिए एकांतवास में आत्मनिरीक्षण करिए  । दिल बड़ा करिए ।कभी किसी ने अपमान किया आपका ,आपको हर्ट किया,दुश्मनी ठानी बस यही टाइम है माफ कर दीजिए मन से ।यदि आपकी गल्ती है तो माफी माँग लीजिए ...मन का कबाड़ छाँट दीजिए आशा, प्रेम व प्रार्थना का दीप जलाइए " #अप्प_दीपो_भव”सकारात्मक बनिए । बच्चों को भी ये सब सिखाइए ।ये बवंडर तो थम ही जाएगा एक दिन बहुत कुछ उत्पात मचा कर ।प्रकृति का कहर है थमेगा ही एक दिन पर हमें बहुत कुछ सिखा कर और सीखने का वक्त भी है । देखिए अपने अहंकार को जाँचिए जरा काम करिए उस पर भी।
आखिर में करबद्घ निवेदन है कि मोदी, केजरीवाल,अमितशाह वगैरह को जितनी मन हो बाद में गाली दे लेना पर अभी जो कह रहे हैं , जो पॉलिसी व नियम बना रहे हैं मानने में ही सबकी भलाई है ...मान लो सबके कल्याण की बात है🙏
ये जो कुछ मैं लिख रही हूँ ये आपसे ज्यादा खुद के लिए लिख रही हूँ कि ...उषा किरण संभल जाओ , रुक तो गई ही हो ...संभलो...जरा सोचो...क्योंकि कल हो न हो 🤔
कोरोना लॉक डाउन का हासिल-कुछ फोटो








मंगलवार, 10 मार्च 2020

स्मृति- चित्रण..( फागुन रँग झमकते थे)



आज हमारी मित्र वन्दना अवस्थी दुबे ने होली के संस्मरण लिखने को कहा है तो याद आती है अपने गाँव औरन्ध (जिला मैनपुरी) की होली जहाँ पूरा गाँव सिर्फ चौहान राजपूतों का ही होने के कारण सभी परस्पर रिश्तों में बँधे थे इसी कारण एकता और सौहार्द्र की मिसाल था हमारा गाँव ।प्राय: होली पर हमें पापा -मम्मी गाँव में ताऊ जी ,ताई जी के पास ले जाते थे बड़े ताऊ जी आर्मी से रिटायर होने के बाद गाँव में ही सैटल हो गए थे  होली पर प्राय: ताऊ जी की तीनों बेटिएं भी बच्चों सहित आ जाती थीं और दोनों दद्दा भी सपरिवार आ जाते ,छोटे रमेश दद्दा भी हॉस्टल से गाँव आ जाते ।हवेलीनुमा हमारा घर सबकी खुशबुओं और कहकहों से चहक-महक उठता ।आहा ! गाँव जाने पर कैसा लाड़ - चाव होता था ।याद है बैलगाड़ी जैसे ही दरवाजे पर रुकती तो हम कूद कर घर की ओर दौ़ड़ते जहाँ दरवाजे पर बड़े ताऊ जी बड़ी- बड़ी मूँछों में मुस्कुराते कितनी ममता से भावुक हो स्वागत करते दोनों बाँहें फैला आगे आकर चिपटा लेते  "आ गई बिट्टो ” ।ताई अम्मा मुट्ठियों में चुम्मियों की गरम नरमी भर देतीं ।दालान पार कर आँगन में आते तो छोटी ताई जी भर परात पानी में बेले के फूल डाल आँगन में अनार के पेड़ के नीचे बैठी होतीं ,हम बच्चों को परात में खड़ा कर ठंडे पानी से पैर धोतीं बाल्टी के पानी से हाथ मुंह धोकर अपने आँचल से पोंछ कर हम लोगों को कलेजे से लगा लेतीं ।ताई जी बहुत कम उम्र में ही विधवा हो गई थीं ...ताऊ जी आर्मी में थे जो युद्ध में शहीद हो गए थे ...वे गाँव में या फिर हमारे साथ कभी -कभी रहने आ जातीं और हम सब पर बहुत लाड़-प्यार लुटातीं पर हम पर उनका विशेष प्यार बरसता था ।आँगन में लगे नीबू का शरबत पीकर हम सरपट भागते मिट्ठू को पुचकारते तो कभी गैया के गले लगते कभी कालू को दालान पे खदेड़ते ...दौड़ कर अनार अमरूद की शाखों पर बंदर से लटकते..हंडिया का गर्म दूध पीकर ,चने-चबेने और हंडिया की खुशबू वाले आम के अचार से पराँठे ,सत्तू खा पी कर बाहर निकल पड़ते उन्मुक्त तितली से ।
रास्ते में बहरी कटी बिट्टा के आँगन में लगे अमरूदों का जायजा लेते...बिट्टा बुआ के घर के सामने से डरते -डरते भाग कर निकल ,अपनी सहेली बृजकिशोर चाचाजी की बेटी ऊषा के पास जा पहुँचते।चाचा-चाची से वहां लाड़ लड़वा कर  उषा के साथ और सहेलियों से मिलने निकल जाते ।रास्ते में बबा,चाचा,ताऊ लोगों को नमस्ते करते जाते...'खुस रहो...अरे जे सन्त की बिटिया हैं का ...’  'अरे ऊसा -ऊसा लड़ पड़ीं धम्म कूँए में गिर पडीं हो हो हो ‘गंठे बबा ’देख जोर से हँसते -हँसते हर बार कहते ।गाँव की चाचिएं, ताइएं ,दादी लोग खूब प्यार करतीं ,आसीसों की झड़ी लगा देतीं और हम आठ-दस सहेलियों की टोली जमा कर सारे गाँव का चक्कर लगा आतीं, साथ ही पक्के रंग , कालिख, पेंट का इंतजाम कर लौटते वापिस घर ।
पापा नहा-धोकर अपने झक्क सफेद लखनवी कुर्ते व मलमल की धोती में सज सिंथौल पाउडर से महकते मोहर बबा की चौपाल पर पहुँचते जहां उनकी मंडली पहले से ही उनके इंतजार में बेचैन प्रतिक्षारत रहती क्योंकि खबर मिल चुकी होती कि ' सन्त’ आ रहे हैं ।पापा अपनी अफसरी भूल पूरी तरह गाँव के रंग में रंग जाते परन्तु उनकी  नफासत उस ग्रामीण परिवेश में कई गुना बढ़ कर महकती...हमें पापा का ये रूप बहुत मजेदार लगता था ।उधर मम्मी भी हल्का घूँघट चदरिया हटा जरा कमर सीधी करतीं कि गाँव की महिलाओं के झुंड बुलौआ करने आ धमकतीं..सबके पैर छूतीं ,ठिठोली करतीं,हाल-चाल पूँछतीं मम्मी का भी ये नया रूप होता ।मम्मी की भी गाँव में बहुत धाक थी वे पहली बहू थीं जो इतने बड़े अफसर की बिटिया और बीबी थीं और हारमोनियम पर गाना गाती थीं। वे भी गाँव में बहुत आदर-प्यार देती थीं सबको ।
             वस्तुत: हम सभी गांव के खुले प्राकृतिक  माहौल में अपनी -अपनी केंचुली उतार उन्मुक्त हो प्रकृति के साथ एकाकार हो आनन्द में सराबोर हो जाते ।हम भाई-बहन पूरी मस्ती से  सरसों, गेहूँ  और चने के खेतों में उन्मुक्त हो भागते-दौड़ते।कभी आम ,जामुन बाग से तोड़ माली काका की डाँट के साथ खाते तो कभी खेतों में घुस कर  कच्ची मीठी मटर खाते ,कभी होरे आँच पर भूने जाते तो कभी खेत से तोड़ कर चूल्हे पर भुट्टे भूनते  । चने के खेत से खट्टा कच्चा ही साग मुट्ठी भर खा जाते और बाद में खट्टी उंगलियाँ भी चाट लेते । कलेवे में कभी मीठा या नमकीन सत्तू और कभी बची रोटी को मट्ठे मे डाल कर या अचार संग खाने  में जो स्वाद आता था वो आज देशी-विदेशी किसी भी खाने में नहीं मिलता । बरोसी से उतरी दूध की हंडिया को खाली होने पर ताई जी हम लोगों को देतीं जिसे हम लोहे की खपचिया  से खुरच कर मजे लेकर जब खाते तो ताई जी हंसतीं 'अरे लड़की देखना तेरी शादी में बारिश होगी ‘ हम कहते 'होने दो हमें क्या ’ और सच में हमारी शादी में खूब बारिश हुई ,भगदड़ मची तो ताई जी ने यही कहा 'वो तो होनी ही थी हंडिया और कढ़ाई कम खुरची हैं इन्होंने’।
गाँव में कई दिनों पहले से होलिका -दहन की तैयारी शुरु हो जाती...पेड़ों की सूखी टहनियों के साथ घरों से चुराए तख़्त , कुर्सी ,मेज,मूढ़ा,चौकी सब भेंट चढ़ जाते ...बस सावधानी हटी और दुर्घटना घटी समझो  और होली पर भेंट चढ़ी चीज वापिस नहीं ली जाती अगला कलेजा मसोस कर रह जाता...सारी रात होली पर पहरा दिया जाता सुबह पौ फटते ही सामूहिक होली जलाने का रिवाज  होता जिसमें पूरे गाँव के मर्द और लड़के गेहूँ की बालियों को भूनते जल देकर परिक्रमा करते और आंच साथ लेकर लौटते जिसे बड़े जतन से घर की औरतें बरोसी में उपलों में सहेजतीं होली के दिन दोपहर में घर वाली होली जलाने के लिए पर कितने ही पहरे लगे हों कोई न कोई उपद्रवी छोकरा आधी रात ही होली में लपट दिखा देता बस सारे गाँव में तहलका मच जाता लोग हाँक लगाते एक दूसरे को ,लोग धोती , पजामे संभालते ,आँख मलते जल भरा लोटा लेकर लप्पड़-सपड़ भागते  जाते और उस अनजान बदमाश को गाली बकते जाते  ..' अरे ददा काऊ नासपीटे ने पजार दी होरी...दौड़ियो रे ...’गाली पूरे साल दी जातीं उस बदमास को।
दूसरे दिन सुबह से ही होली का हुड़दंग शुरु हो जाता ।घर की औरतें पूड़ी-पकवान बनाने में जुट जातीं ।हम बच्चे भाभियों को रँगने को उतावले रसोई के चक्कर काटते तो बेलन दिखा कर मम्मी और ताई जी धमकातीं...'अहाँ कढाई से दूर...’पर हम दाँव लगा कर घसीट ले जाते भाभियों को जिसमें रमेश दद्दा हमारी पूरी मदद करते साजिश रचने में और फिर तो क्या रंग ,क्या पानी ,क्या गोबर ,क्या कीचड़ ...बेचारी भाभियों की वो गत बनती कि बस ! लेकिन बच हम भी नहीं पाते ,भाभियाँ  मिल कर हम में से भी किसी न किसी को घसीट ले जातीं तो बालकों की वानर सेना कूद कर छुड़ा लाती और फिर जमीन पर मिट्टी गोबर के पोते में भाभियों की जम कर पुताई होती....हम सब भी कच्चे गीले फ़र्श पर फिसल कर धम्म- धम्म गिरते ।गाँव में हुड़दंगों की टोली निकलती गली में ढोल लटका गाते बजाते...गाँव में भाँग -दारू -जुए का जोर रहता सो  बहू -बेटियाँ  घर में या अपनी चौपाल पर ही खेलतीं बाहर निकलना मना था ...हाँ क्यों कि सभी की छतें मिली होती थीं तो वहाँ से छुपते -छिपाते सहेलियों और उनकी भाभियों से भी जम कर खेल आते।
दोपहर नहा-धोकर बरोसी से रात को होली से लाई आग निकाल कर उससे आँगन में होली जलाई जाती जिसमें छोटे छोटे उपलों की माला जलाते और घर के सभी सदस्य नए-नकार  कपड़ों की सरसराहट के बीच होली की परिक्रमा करते जाते और गेहूँ की बालियों को हाथ में पकड़ कर भूनते जाते। खाना खाकर फिर शाम होते ही पुरुष लोग एक दूसरे के घर मिलने निकल जाते और हम बच्चे भी निकल पड़ते अपनी - अपनी टोलियों के साथ...सारे गाँव में घूमते जिसके घर जाओ वहाँ बूढ़ी दादी या काकी पान का पत्ता और कसी गोले की गिरी हाथ में रख देतीं ।सबको प्रणाम कर  रात तक थक कर चूर हो लौटते और खाना खाकर लाल -नीले -पीले बेसुध सो जाते रंग छूटने में तो हफ़्ता  भर लग ही जाता था ।
कभी - कभी होली पर हम लोग ननिहाल मुरादाबाद भी जाते थे  पचपेड़े पर नाना जी की लकदक विशाल मुगलई बनावट वाली कोठी जाने का विशेष आकर्षण होती थी जहाँ मामाजी के पाँच बच्चे, मौसी के चार और चार भाई बहन हम सब मिल कर मुहल्ले के बच्चों के साथ खूब होली की मस्ती करते थे।हमें याद है कि कुछ वहीँ के स्थानीय लोग हफ्ते भर तक होली खेलते थे वो हफ्ते भर तक न नहाते थे न ही कपड़े बदलते थे ।ढोल -बाजा गले में लटका कर सबके दरवाजों पर आकर बहुत ही गन्दी गालियाँ गाते थे पर कोई बुरा नहीं मानता था...हमें बहुत बुरा लगता था और हैरानी होती थी कि कोई कुछ बोलता क्यों नहीं उनको ?
आज भी होली पर वे सभी स्मृतियाँ सजीव हो स्मृति-पटल पर फाग खेलती रहती हैं...अब दसियों साल से गाँव और मुरादाबाद नहीं गए...कोई बचा ही कहाँ अब ...जिनसे वो पर्व और उत्सव महकते-दमकते थे लगभग वे सभी तो अनन्त यात्राओं पर निकल चुके हैं ...वो लाड़-चाव, वो डाँट , वो प्यार भरी नसीहतें सब सिर्फ स्मृतियों में ही शेष हैं अब ।
आप सभी स्वस्थ रहें और आनन्द -पूर्वक सपरिवार होली मनाते रहें पर ध्यान रखें किसी का नुकसान न हो भावनाएँ आहत न हों...सद्भावना व प्यार परस्पर बना रहे...आप सभी को होली की बहुत -बहुत शुभकामनाएँ .🙏
फोटो :गूगल से साभार

स्वास्थ्य सबसे बड़ी नियामत—- स्वस्थ रहें जागरूक रहें

समझदारी।
                               
यूँ ही लंदन में एयर पोर्ट पर चलते-चलते न्यूज़ पेपर उठा लिया और एक न्यूज़ पढ़ कर आश्चर्य- चकित हो गई ।कभी कैंसर जैसी लाइलाज बीमारियों के लिए हम भारतीय सीधे पेशेन्ट को इंगलैंड या अमेरिका ले जाने की बात करने लगते थे जैसे कि वहाँ सारे डॉक्टर्स धन्वन्तरि ही हैं और हमारे सब बेवक़ूफ़ ।पर इंसान से गल्ती या लापरवाही कहाँ नहीं हो सकती ? अब तो विदेशों में भी ख़ूब ऐसे केस सुनने में आते हैं और हमारे भी डॉक्टर चिकित्सा के क्षेत्र में किसी से पीछे नहीं हैं ।28 वर्षीय Ms Sarah Boyle जब बेटे को फ़ीड करवा रही थीं तो उन्होंने नोटिस किया कि वो राइट ब्रैस्ट से नहीं पीता था डॉक्टर को शक हुआ कि शायद ट्यूमर की वजह से टेस्ट चेंज हो गया है उसने टैस्ट करवाया तो पता चला कि उसे असाध्य triple negative breast cancer है ।
Royal Stoke University Hospital in Stoke-on-Trent, England में डबल मस्टकटमी और रिकन्स्ट्रक्टिव सर्जरी और सारी कीमोथेरेपी के बाद सात महीने के इलाज के उपरान्त डॉक्टर कहते हैं कि उसे कैंसर नहीं है Sarah ख़ुशी से रो पड़ीं तब डॉक्टर्स ने बताया कि सच तो ये है कि उनको कभी कैंसर था ही नहीं ।वे हैरान रह गईं ।
कीमो की वजह से समाप्त हो गए बाल व आई ब्रो हालाँकि दुबारा आ गए हैं पर शीशे में देखती हैं तो ख़ुद को बदला हुआ सा महसूस करती हैं और आज भी सर्जरी व कीमो के साइड इफ़ेक्ट झेल रही हैं हालाँकि हॉस्पीटल ने अपनी गल्ती मानी है कि बायप्सी की ग़लत रिपोर्ट देने की वजह से ऐसा हुआ और अब वे एक्स्ट्रा प्रिकॉशन्स लेते हैं ये इंसानी गल्ती है और वे डॉक्टर हरसंभव Sarah की मदद के लिए तैयार रहते हैं ।परन्तु जो क्षति Sarah की हो चुकी है उसका क्या ?उसकी पूर्ति कभी नहीं हो सकती । डॉक्टर्स को ये शक था कि शायद अब वो दुबारा माँ नहीं बन पाएगी कीमों की वजह से उनकी प्रजनन क्षमता पर असर पड़ेगा लेकिन अब वो एक और सात माह के बेटे की माँ हैं।
           इस न्यूज़ को प्रकाश में लाने का मेरा एक ही मक़सद है कि इंसानी गल्ती या लापरवाही कहीं पर किसी से भी हो सकती है ऐसे कई केस इंडिया में भी हुए हैं जब किसी को कैंसर नहीं था और उसका ऑपरेशन और कीमोथेरेपी दे दी गई ।कितनी दुर्भाग्यपूर्ण बात है उस व्यक्ति के लिए जिसने बिना बातशारीरिक,मानसिक,आर्थिक पीड़ा झेली जिसे वो बीमारी है ही नहीं उसे वो इलाज की सारी मुसीबतें झेलनी पड़ीं किसी एक की गल्ती की वजह से । कीमोथेरेपी कोई साधारण इलाज नहीं है कीमोथेरेपी के साइड इफ़ेक्ट सालों साल के लिए शरीर पर दुष्प्रभाव छोड़ जाते हैं ।
मेरी एक फ्रैंड के हस्बैंड को डॉक्टर ने कैंसर बताया तो वो उनको बॉम्बे ऑपरेशन के लिए ले गईं पर ऑपरेशन से ठीक पहले दूसरी रिपोर्ट आ गई जो निगेटिव थी और वो इस त्रासदी को झेलने से बच गए ।
अत: कैंसर यदि डायग्नोस होता भी है तो मेरा सुझाव है कि अन्य किसी अच्छी पैथोलॉजी लैब से दुबारा अवश्य स्लाइड टैस्ट करवा लें तब इलाज शुरू करें ।जागरूक रहना अच्छा है और दूसरों की गल्तियों व अनुभवों से सीख लेना



मन का कोना—अन्तर्राष्ट्रीय चाय दिवस

               

चाय दिवस भी होता है ये आज पता चला...हमारे तो सारे ही दिवस चाय दिवस ही हैं ...अम्माँ बताती थीं जब वो छोटी थीं तो मामाजी कहीं से चाय की पत्ती लाए थे अंग्रेज मुफ़्त में बाँट रहे थे ...(कुछ लोगों का कहना था कि देश का सत्यानाश करने को 😅)...खैर तो मामाजी ने पूरे ताम- झाम से थ्री पॉट चाय बनाई ...घड़ी देख कर चाय सिंझाई गई...और सबको बड़ी नफासत से पिलाई जो दो कौड़ी की लगी । वो ही अम्माँ बाद में सुबह -सुबह लगभग केतली भर चाय मामा जी के साथ पी जातीं...मामी जी को तो हर घंटे चहास लगती सारे दिन कटोरी में चाय बनातीं ...न जाने क्यों ? दरअसल चाय किस क्वालिटी की है उससे ज़्यादा असर इस बात का होता है कि वो किसके साथ पी जा रही है ...किसी आत्मीय के साथ गुनगुनी बातों संग गर्म चाय के मिठास भरे सिप अन्दर तक तृप्ति व ऊष्मा का अहसास कराते हैं ।गाँव जाने पर चूल्हे पर औटती चाय मिलती काढ़ा टाइप अदरक और गुड़ वाली , धूँए की खुशबू वाली ...बटलोही भर चाय बना कर चूल्हे से अंगारे  निकाल उस पर रख दी जाती और जो आता उसमें से धधकती चाय गिलास या कुल्हड़ में दी जाती...एक दिन मैंने गुड़ की बना कर देखी ...जरा मजा नहीं आया कसैली सी लगी सारी फेंकनी पड़ी । शायद गाँव वाली उस चाय में वो टेस्ट कोई खास गुड़ का था या गाँव की मिट्टी की ख़ुशबू और अपनों के प्यार की मिठास  का ...।दुनिया जहान की एक से एक उम्दा ,तरह- तरह की चाय पीने पर भी कभी-कभी वो ही गाँव वाली चाय की हुड़क उठती है  तो कुल्हड़ मंगा कर उसमें चाय पीकर संतोष करना पड़ता है...गौरव अवस्थी की ये कविता जैसे मेरे ही मन की बात है ।

सोमवार, 17 फ़रवरी 2020

स्मृति — चित्रण—( भारतीय महिला साहित्य समागम” )



6th और 7th फ़रवरी को इंदौर में आयोजित वामा तथा घमासान डॉट कॉम के सौजन्य से "अखिल भारतीय महिला साहित्य समागम” के आयोजन में अतिथि वक्ता के रूप मे भाग लेने के लिए इंदौर से आमन्त्रण मिलने पर पहले तो असमंजस में थी पर बाद में जाने का तय किया । सुरभि भावसार ने हम लोगों के एयर टिकिट व रहने की व्यवस्था करवाई।
             इंदौर मैं पहली बार गई ।वहाँ के लोगों के स्वभाव की मिठास और मेहमान नवाज़ी  ने सच में मन मोह लिया।एयरपोर्ट पर वरिष्ठ पत्रकार राजेश राठौर जी हमको रिसीव करने आए थे वो रास्ते भर हमें शहर व प्रोग्राम की जानकारी देते रहे शहर की साफ़-सफ़ाई के बारे में और भविष्य की योजनाओं के बारे में बताते रहे ।सारा शहर एकदम साफ़ सुथरा देख बहुत अच्छा लगा ।
हमारा रुकने का इंतजाम साउथ एवेन्यू होटल में किया गया था ।होटल के  द्वार पर ही ज्योति जैन जी बुके व मीठी मुस्कान सहित  स्वागत के लिए स्वयम् प्रस्तुत थीं।उनकी आत्मीयता ने सफर की थकान मिटा दी।
        थोड़ी देर बाद ही रूम में कार्यकारिणी की सदस्याएँ अमर चड्ढा, पद्मा राजेन्द्र ,वसुधा गाडगिल,अंतरा करवडे, सुरभि भावसार मिलने आईं और बहुत अपनत्व से पूछा कि हमें कोई परेशानी या कमी तो नहीं है !
उसके बाद घमासान डॉट कॉम से अर्जुन राठौर जी कैमरामैन को लेकर आए और एक छोटा सा इंटरव्यू लिया ।
             6th फ़रवरी को उद्घाटन-सत्र में बराबर में ही 'जाल सभाग्रह’ पहुँचे  जहाँ चाय नाश्ते का इंतजाम था उसके पश्चात कार्यक्रम प्राम्भ हुआ ।सभी अतिथि वक्ताओं का स्वागत पगड़ी पहना कर,श्रीफल ,स्मृति चिन्ह एवम् उपहार देकर किया गया ।
स्वागत सत्र में मृदुला सिन्हा व चन्द्रकान्ता जी को सुनने का अनुभव बहुत अच्छा रहा ।स्त्री-विमर्श पर जीवन मंथन से निकला हर वाक्य जीवन अनुभव का सार था जैसे ,जहाँ सिर्फ़ समस्याएँ ही नहीं उनके समाधान का भी रास्ता दिखाया।मृदुला सिन्हा जी ने कहा कि स्त्री या पुरुष की जगह अब परिवार विमर्श की जरूरत है ।
अन्य कविता व कहानी सत्रों में सत्रों में मालिनी गौतम,अलकनन्दा साने ,जयश्री रॉय ,सुषमा गुप्ता, इत्यादि को सुनने का अनुभव बहुत आनन्ददायक रहा।
7th फ़रवरी को भी टॉक शो में रुचिवर्धन मिश्र,रचना समंदर,निर्मला भुराड़या,वर्षा गुप्ता तथा अन्य सत्रों में सीमा जैन,शील कौशिक,जयंती रंगनाथन,नासिका शर्मा , जया जादवानी व रेणु जैन इत्यादि के परिपक्व विचारों को सुनने का अनुभव अविस्मरणीय रहा।
इसके अतिरिक्त विभिन्न शहरों से पधारी महिला साथियों ने भी अपनी कविताएं तथा लघु-कथाएँ सुनाईं।गिरिजा कुलश्रेष्ठ जी ने भी बहुत सुरीली आवाज में कविता का सस्वर पाठ किया और अर्चना चावजी व कविता वर्मा जी ने भी लघु-कथा सुनाई ।
सभी के विचारों को सुनना ,मिलना-जुलना,गपशप ,संग खाना- पीना ,और फ़ोटोग्राफ़र के कहने पर मिल कर कैटवॉक कर खिलखिलाते हुए फ़ोटो खिंचवाना स्मृति -पटल पर सदा के लिए अंकित हो गया।
फेसबुक पर ही परिचय हुआ था संजय नरहरि पटेल जी से वो अत्यन्त व्यस्त होने पर भी मिलने आए कुशलता पूछी ।
निधि जैन भी बहुत स्नेह से मिलीं उनका घर आने का निमन्त्रण वक्त न होने के कारण स्वीकार नहीं कर सकी जिसका अफसोस रहा ।
फ़ेसबुक के माध्यम से गाने के शौक़ीन हम जैसे दीवानों का अर्चना चावजी और वन्दना अवस्थी दुबे ने एक ग्रुप बनाया ‘गाएँ गुनगुनाएँ ग्रुप ‘जो महिला साहित्यकारों एवम् ब्लॉगर्स का ही ग्रुप है ।ढा़ई साल में सभी में बेहद आत्मीयता हो गई है।उनमें  से अर्चना चावजी ,गिरिजा जी और कविता वर्मा जी से पहली बार उक्त प्रोग्राम में मिल कर इतनी ख़ुशी और स्नेह मिला कि कह नहीं सकती ।
गिरिजा जी के साथ ग्वालियर से आईं उनकी दोस्त प्रतिभा द्विवेदी जी से भी खूब आत्मीयता हो गई ।
अर्चना जी की सहजता ,सौम्यता,गंभीरता व आत्मीयता ने मन मोह लिया ।एक तपस्विनी सा औरा है उनका।गाती भी बहुत मधुर हैं ।उनका धैर्य व सबको साथ लेकर चलने का भाव अनुकरणीय है ।बहुत कुछ सीखने को मिलता है उनसे।कर्तव्यपरायणता व दूसरों के काम आने में उनकी मिसाल दी जा सकती है बहुत निर्मल मन है उनका।
            गिरिजा कुलश्रेष्ठ जी का प्यार तो आँखों और बातों से हर पल छलक रहा था ।दो दिन साथ रहे पर बहुत कुछ सुनने-कहने से रह गया ।पुन: मिलने का वादा लेकर जुदा हुए।वे इतनी प्यार और भाव भरी लगीं कि इत्मिनान से साथ बैठ कर उनको खूब सुनने का मन कर रहा था।वे बहुत ही सुरीला गाती हैं ।भजन ,ग़ज़ल, शास्त्रीय संगीत सभी पर उनकी मज़बूत पकड़ है ।उनका स्नेहिल स्पर्श हथेलियों में आज भी महसूस होता है।
                कविता वर्मा जी से दोस्ती भी फ़ेसबुक पर ही हुई थी वे भी बहुत आत्मीयता से मिलीं ।बहुत मीठी बोली और मीठा स्वभाव है उनका । उनके पति का जन्मदिन था परन्तु रात तक  हमारे ही साथ रहीं ।मालिनी गौतम जी भी हम लोगों जैसी ही  मिल गईं ।हम सबको अपनी गाड़ी में बैठा कर कविता वर्मा जी शाम को खजराणा मंदिर ले गईं जहाँ गणपति के दर्शन कर षोडशियों की तरह खूब मस्ती धमाल किया हमने और ख़ूब वीडियो बनाईँ व सेल्फ़ी लीं ।
            फिर अगले दिन कविता जी ने साहित्य समागम के प्रोग्राम  के बाद अपने श्रीमान जी को भी बुला लिया तो हम चारों उनके साथ उनकी गाड़ी में लद कर सर्राफ़ा बाज़ार गए ।
सर्राफ़ा बाज़ार भी एक ही अजूबा है ।नौ बजे तक तो सर्राफ़ा बाज़ार चलता है और उसके बाद वहीं चाट बाज़ार लग जाता है जो रात दो बजे तक जाग्रत रहता है ।भीड़ इतनी जैसे कोई मेला लगा हो ।आलू पैटी,जोशी के दही बड़े,भुट्टे की कीस ,पानी पूरी,गराड़ू,साबूदानाखिचड़ी,जलेबी ,पोहा,मालपुआ,रबड़ी,क़ुल्फ़ी फ़ालूदा, शरीफे की रबड़ी सब चखने में ही बुरी तरह पेट भर गया ।और बहुत कुछ बाकी रह गया था।
जोशी के दही बड़े खाने में तो मज़े के थे ही उनको उछाल कर बनाने की कारीगरी और एक ही चुटकी से बारी-बारी मसाले डालने का हुनर भी कम मनोरंजक नहीं था ।उसकी दुकान के सामने सदा भीड़ लगी रहती है । वहीं अर्चना जी भी अपनी बेटी और मायरा  के साथ आ गईं ।हम सबने भाई साहब की एक दिन पहले गुज़र चुकी बर्थडे को फिर खूब खा पीकर मस्ती से मनाया । ।पान खाकर वापिस लौटे भीड़ इतनी थी कि चलना मुश्किल हो रहा था हम बार - बार कहे जा रहे थे कि बाप रे इंदौरी कितने चटोरे जबकि कसर हमने भी नहीं छोड़ी 













सोमवार, 4 फ़रवरी 2019

सफरनामा—अन्नदाता सुखी भव




प्राय: सफर में बहुत विचित्र अनुभव होते हैं ..कुछ खट्टे ,कुछ मीठे..आज से लगभग पन्द्रह साल पहले के एक अनुभव को तो मैं आजन्म नहीं भूल सकती ...असाध्य रोग से पीड़ित हो किसी डॉक्टर को दिखा कर मैं कलकत्ता (कोलकाता) से लौट रही थी हमारी ट्रेन का समय शाम का था जिस होटल में रुके थे वहाँ रास्ते के लिए कुछ खाना पैक करने के लिए कहा पर उन्होंने कहा इस समय संभव नहीं है...सोचा रास्ते में कुछ व्यवस्था हो जाएगी पर नहीं हो सकी...बीमार थी तो यूँ ही कुछ भी नहीं खाना चाह रही थी रास्ते में किसी स्टेशन पर एक कैंटीन थी वहाँ मेरे पति गए पर वो तब तक बंद हो चुकी थी...हार कर चिप्स और फल का सहारा लिया...हमारे कम्पार्टमेंट में एक फैमिली सफर कर रही थी लगभग पाँच छै: लोग थे उन्होंने  अपना दस्तरखान बिछाया और टोकरी से तरह-तरह के व्यन्जन सजाने शुरू किए..पूड़ियाँ ,आलू,अरबी,भिंडी कई तरह की सब्ज़ियाँ ,चटनी ,सलाद,पापड़,भुजिया,अचार  ...और मेरे पेट के चूहों ने जोर से उछल -कूद मचानी शुरू कर दी...हमारे पति तो फल प्रेमी हैं खाकर ऊपर की सीट पर सोने चले गए पर हमें जब तक कुछ नमक रोटी न मिले काम नहीं चलता आँखें नाक,कान,मन,प्राण सब बार- बार उधर ही खिंचे जा रहे थे 😜..हमने झट मैगज़ीन में अपनी आँखों को बाँध दिया..तभी अचानक उनमें से एक महिला ने कहा `सुनो बेटा आप भी आ जाओ हमारे साथ खा लो’...हमने सकुचा कर कहा `नहीं नहीं आप लोग खाएं’...उन्होंने पुन:-पुन:आग्रह किया कि `हम सुन रहे थे आप लोगों को खाना नहीं मिला है और हमारे पास बहुत खाना है देखिए ये सब इतना बचेगा कि फिंकेगा ही बचा हुआ आप संकोच न करें बस आ जाइए ‘...उनकी बहू प्रेम से हमारा हाथ पकड़ कर जब उठाने लगी तो हमने भी मन में कहा `चल उषा वसुधैव कुटुम्बकम्’...और उनके साथ चौकड़ी मार बैठ गए...इतना स्वादिष्ट खाना था कि क्या कहें...हम चटखारे लेकर खाने और बातों के मज़े लेने लगे सहसा उन्होंने कहा आप अपने हस्बैंड को भी बुला लीजिए...वो ऊपर से ही बोले `नहीं नहीं मैंने फल खा लिए हैं बस इनको ही खिलाइए ‘....पर वो नहीं मानीं सभी लोग बहुत आग्रह करने लगे हमने कहा `आ जाओ थोड़ा खा लो ‘...उन्होंने मना कर दिया पर उन लोगों ने जबर्दस्ती उनको भी बुला लिया पति तो दो पूड़ी बेहद संकोच से खाकर ऊपर बर्थ पर सोने चले और हम बातों और खाने के मजे लेते जैसे उसी परिवार के सदस्य हो गए...वो बताती रहीं कि आटे में हल्दी नमक डाल कर दूध से गूँधते हैं पूड़ी का आटा...सफर के लिए अरबी ,आलू और भिंडी की सब्जी को डीप फ्राई करके बनाते हैं तो जल्दी खराब नहीं होती...हम मारवाड़ी लोग भुजिया खाते हैं हर खाने के साथ...फिर मारवाड़ी लोगों की शादी के रिवाज...लहंगों , साड़ियों ,ज़ेवरों की ,रीति रिवाजों के बारे में बताती जातीं और बहुत स्नेह आग्रह से खिलाती-पिलाती जाती थीं...बाद में दो तरह की मिठाई खिलाई...खा पीकर धन्यवाद देकर अपनी सीट पर आ गए ...सुबह फिर उनका दस्तरख़ान बिछा और केन की टोकरी से ब्रैड,खीरा टमाटर निकाल कर सैंडविच बनने लगे, भुजिया और मिठाई तो थी ही ...उन्होंने फिर आमन्त्रित किया पर हमने हाथ जोड़ मना कर दिया पति किसी स्टेशन से कुछ खाने पीने का सामान ले आए थे... दिल्ली स्टेशन पर उतरते समय हमने पुन: आभार जताया तो हाथ पकड़ कर बोलीं कि `अभी भी बहुत खाना बचा है अच्छा है आपने खा लिया धन्यवाद मत कहिए आपसे बहुत अपनापन हो गया है ‘ सारे परिवार ने स्नेहपूर्ण विदाई ली ...इतने वर्षों के बाद भी उस शाही भोज की स्मृतियों को भुला नहीं पाती...ज़िंदगी भर एक से एक मँहगे और नायाब खानों का स्वाद चखा है...देश विदेश के बड़े -बड़े शैफ के फ़ाइव व सैवन स्टार रेस्ट्राँ में कितनी ही सिग्नेचर डिश खाईं होंगी पर वे सारे उस रात ट्रेन में ,बीमारी व कमज़ोरी में खाए स्वादिष्ट सुरुचिपूर्ण बनाए व प्रेम व आग्रह से खिलाए खाने के आगे फीके पड़ जाते हैं ...मेरा मन आज भी बहुत दुआएँ देता है उनको और आदर व प्यार से भीग कर कहता है...` अन्नदाता सुखी भव’ 🙏😌
          #सफरनामा

शनिवार, 26 जनवरी 2019

सफरनामा — वो हवाई यात्रा...


सिंगापुर से दिल्ली की फ्लाइट में सीट नं० ढूँढती अपनी सीट तक पहुँची तो वहाँ एक यँग लड़की पहले से विराजमान थी...हमने कहा `ये हमारी सीट है’...तो लगी बहस करने काफी जद्दोजहद के बाद सीट से उठ कर नं० को झाँक कर देखा ...उसके बराबर की बाकी सीट पर मम्मी जी ,पापा जी और भैया बैठे हमें घूर रहे थे ...बोली “आप उधर पीछे बैठ जाओ मेरे पापा की सीट पर “...मैंने कहा नहीं हम यहीं बैठेंगे बराबर वाली रो में साथ ही में मेरे पति की सीट थी हमने इशारा कर कहा हम दोनों भी साथ हैं ...तो बोली " आप कहीं भी पीछे बैठ जाओ “...हमारा इतनी देर में मुँह तमतमा चुका था हमने जोर देकर कहा "नहीं आप उठिए हमें अपनी ही सीट पर बैठना है “...उसके पापा उठ कर पीछे जाने लगे और पूरे परिवार ने हमें घूरना शुरु कर दिया... जैसे हमने ही उनके अधिकारों का हनन कर लिया हो ...हम आराम से अपनी सीट पर व्यवस्थित हो गए...बैल्ट बाँध कर जैसे ही रिमोट उठाया तो बोली "मैं हैल्प करूँ आपकी”..."नो थैंक्स ”कह हमने मनपसंद मूवी  लगा ली । सीट बैल्ट खोलने का सिग्नल मिलने पर हमने सीट को पीछे कर जैसे ही रिलैक्स करना चाहा पीछे भूचाल आ गया ...हमारी सीट को धक्के दिए जाने लगे बड़बड़ भी शुरु हो गई...हमने मुड़ कर देखा तो मोहतरमा झुँझलाईं कि हमें टॉयलेट जाना है कैसे जाएं ...हमने शराफत से सीट आगे कर ली जब वो वापिस सीट पर आ गईं और डिनर फ़िनिश हो गया तो हमने फिर बटन दबा कर जैसे ही सीट पीछे की वैसे ही उनकी बड़बड़ फिर शुरू ...हमने खड़े होकर समझाया कि आप भी कर लो अपनी सीट पीछे देखिए सभी ने की है पर वो पति पत्नि हमें बड़ी बड़ी आँखें फैला नफरत से घूरते रहे और सारे रास्ते हाथ और भौंह नचा कर इशारों से दूसरी पंक्ति में बैठे हमारे पति से हमारी लानत मलामत करती रहीं ...हमारे पति चुपचाप मजे लेते रहे मन ही मन कह रहे होंगे "गलत पँगा ले लिया बेट्टे तूने आज ..”🤣😜उधर बराबर वाली लड़की का रिमोट ठीक से काम नहीं कर रहा था कई रिमोट बदलने पर भी जब नहीं चला तो उसने डिनर सर्व करती सभी एयर होस्टेज को "इक्सक्यूज मी “ कह कर शिकायत हर दो मिनट पर करनी शुरू कर दी...पर आखिर तक भी समस्या का समाधान नहीं हो सका ...एक टाइम के बाद एयर होस्टेज ने भी अनसुना करना शुरु कर दिया और वो बेचैन आत्मा पाँच घँटे तक फड़फड़ाती रही...दरअसल बहुत बड़ा एक ग्रुप था उन लोगों का जो मुज़फ़्फ़रनगर  जा रहा था  पीछे वाली भी उसी की आंटी थीं ...समूह बल से हौसले सभी के बेहद बुलंद थे..और उत्साह चरम पर...यात्रा को भी हर कीमत पर पिकनिक की तरह एन्जॉय करने के मूड में थे...हमने सारा ध्यान खाने पीने और मूवी में केन्द्रित किया और पीछे व बराबर से आती फुँफकारों को सिरे से योगनिद्रा अपना कर इग्नोर कर दिया...सफर के अँत तक ट्रॉली  में सामान उठा कर बाहर जाने तक वे कई जोड़ी आँखेँ हमें लगातार घूर कर भस्म करने का प्रयास करती रहीं....दोष हमारा सिर्फ यही था कि हम अपनी सीट चेंज नहीं करना चाहते थे...ऐसे लोगों को मेरा सुझाव है कि आगे से कृपया पूरा प्लेन बुक करा कर ही यात्रा करें 😂...धन्यवाद 🙏
     #सफरनामा

मुँहबोले रिश्ते

            मुझे मुँहबोले रिश्तों से बहुत डर लगता है।  जब भी कोई मुझे बेटी या बहन बोलता है तो उस मुंहबोले भाई या माँ, पिता से कतरा कर पीछे स...