ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

शनिवार, 5 सितंबर 2020

#तस्मै_श्री_गुरुवे_नम:🌸🌼🌺☘️🌿


"गुरू बिन ज्ञान न उपजै, गुरू बिन मिलै न मोष।

गुरू बिन लखै न सत्य को गुरू बिन मिटै न दोष।।”

आज इस मुकाम पर आकर जब पलट कर देखती हूँ तो अपने गुरुओं के प्रति मन श्रद्धावनत हो जाता है। हर इंसान के जीवन में उसके गुरुओं की महत्वपूर्ण भूमिका रहती ही है । हम अपने आदर्श गुरुजनों का अनुकरण करते हैं तो कभी उनका प्रोत्साहन हमें जीवन में कुछ बनने को प्रेरित करता है।

हमारी पीढ़ी की गुरुजनों पर जैसी श्रद्धा थी उतनी तो आज नहीं देखने को मिलती लेकिन फिर भी आज भी कई शिष्य हैं जो गुरुओं का बहुत सम्मान करते हैं , अपना आदर्श मानते हैं और परम्परा का निर्वहन करते हैं !मेरे जीवन में ऐसे अनेक शिष्य आए हैं !

यदि अपने गुरुजनों को याद करूं तो  पीलीभीत में घर पर ट्यूशन पढ़ाने आती थीं जो सफेद साड़ी में बेहद सौम्य टीचर जी उनकी याद आती है ...जिनके साथ हम दोनों बहनें एक बार माँ के साथ ‘अनपढ़ ‘ फिल्म देखने गए थे । मैं छठी कक्षा में पढ़ती थी खूब रोई देख कर । घर आकर टीचर जी ने समझाया कि पढ़- लिख कर अपने पैरों पर खड़ा होना क्यों जरूरी है । 

उस फिल्म में अनपढ़ माला सिन्हा की दुर्गति देख समझ आया पढ़ाई क्यों जरूरी है वर्ना उससे पहले तो लगता था बस पेरेन्ट्स और टीचर हमारे दुश्मन ही हैं और टॉर्चर करने के लिए ही ये पढ़ाई-लिखाई होती है । छोटी क्लास में तो स्कूल बहुत रो-धो कर ही जाते थे।कभी पेट दर्द का बहाना कभी उल्टी का ।कई बार तो जोर- जोर से रो धोकर इतना ड्रामा खड़ा कर देते कि लोग छतों से देखने आ जाते तो लगता अब तो बहुत बेइज्जती होगी अगर चले गए तो पर उठा कर रिक्शे में लाद दिए जाते थे ! कई बार रिक्शे के आते ही खुद को टॉयलेट में बन्द कर लेते थे ।ताता(पापा) के ऑफिस जाने पर अम्माँ कहतीं 

"अरे उषा आ जाओ गए तुम्हारे ताताजी निकल आओ” तब निकलते और बस फिर पूरा दिन आजाद हम और हमारी मस्ती !परन्तु इसके बाद निश्चय किया कि अब मक्कारी नहीं करेंगे मन लगा कर पढ़ेंगे।

पीलीभीत में कक्षा छै: में पढ़ते थे तब डाँस के मास्टर साहब आते थे कत्थक सिखाने और हम माँ के कहने पर ता थेई थेई तत ...करते पर जरा भी एन्जॉय नहीं करते थे क्योंकि वो टाइम कॉलोनी के बच्चों के साथ मिल कर ऊधम मचाने और खेलने का होता था ,जिसमें कुछ टाइम की कटौती हो जाती थी तो हम दोनों बहनें मिल कर मास्टर साहब को छकाने की नई- नई योजनाएं बनाते रहते थे।आज इस उम्र में न जाने क्यों मन घुँघरू बाँध फिर से ता थेई थेई तत...करने को मचलता है ।

हमारे डाँस का प्रोग्राम स्कूल में करवाने के लिए प्रिंसिपल से परमीशन लेकर मास्टर साहब ने खूब जम कर प्रैक्टिस करवायी पर जैसे ही हम अपनी कत्थक की पिंक ड्रेस पहन घुँघरू बाँध धड़कते दिल से स्टेज पर आए तो पता नहीं किस बात पर वाइस प्रिंसिपल और मास्टर साहब में झगड़ा शुरु हो गया और हम चुपचाप स्टेज से नीचे उतर आए अब तो याद नहीं कारण झगड़े का क्या था पर मास्टर जी ने जम कर झगड़ा किया था मैडम से ...नमन है मास्टर साहब की सादगी और लगन को🙏


पीलीभीत के स्कूल में ही मैडम थीं कोकिला देवी जिनकी बहुत सी मट्ठे व नीबू अचार की मजेदार चटपटी यादें हैं पर रहने देती हूँ उनको शेयर नहीं करती...नमन उनको भी 🙏

उसके बाद बलिया में आठवीं क्लास में जो मास्टर साहब घर ट्यूशन पढ़ाने आते थे वो इतने गंभीर थे कि डर के मारे साँस साधे पढ़ते रहते थे । एक दिन फ़ाइनल एग्ज़ाम से दो दिन पहले मनोज कुमार की फिल्म ' उपकार ‘आई थी वो देखने चले गए । साढ़े नौ बजे तक लौट कर आए तो पापा ने फुसफुसा कर बताया कि -

"तुम्हारे मास्टर साहब ढ़ाई घंटे से बैठे तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं हमने कहा कि देर हो जाएगी आने में पर वो बोले कोई बात नहीं हम इंतजार करेंगे !”

हमें काटो तो खून नहीं ! लगा भाग जाएं घर से, कुछ कर लें ...हाय- हाय ये क्या कर दिया हमने ...सोचा था हमें न पाकर चले जाएंगे पर अब क्या करें? हमारा मन हाहाकार कर रहा था । 'मेरे देश की धरती उगले , उगले हीरे मोती...’ का सारा नशा काफूर हो चुका था! काँपते से गए तो मास्टर साहब ने मोटे चश्मे से देखा और कहा -

"देख ली पिक्चर ?”

"जी” हम काँपते गले से मिमियाए ।

"परसों तो पेपर है आपका...तो कोई नहीं ,आपका होम-वर्क ये है कि इतने कीमती तीन घन्टे में क्या देखा और क्या -क्या कीमती शिक्षा मिली विस्तार से लिखिए !”

और मास्टर साहब चले गए हम खूब रोए और माँ से लड़े कि तुमने हमें मना क्यों नहीं किया ...तो जिन्होंने बिना सजा दिए बहुत बड़ा सबक दे दिया ...नमन उन गुरु को भी 🙏

आठवीं क्लास में पापा का बीच सैशन ट्रान्सफर हो गया तो हमें और बहन को गाँव में कुछ महिनों को भेजा गया और वहीं एडमीशन करवा दिया गया।ताऊ जी कॉलेज मैनेजमेन्ट कमेटी में थे तो व्यवस्था की गई कि जो किताबें चेंज हुई हैं मास्साब उनको ही अलग से पढ़ा दिया करेंगे ।वहाँ शहर से आने के कारण बहुत रुतबा था अपना।एक दिन जब पानी पीकर लौटे तो देखा हमारी बड़ी बहन जी क्लास में खड़े होकर सबको बता रही थीं कि प्रेशर कुकर क्या होता है और बच्चे व मास्साब सब मुँह खोले सुन रहे थे क्योंकि कुकर तब नया- नया ही चला था !

गाँव का वह चार पाँच महिनों का शिक्षा- प्रवास बेहद मस्ती भरा रहा। कोई अनुशासन नहीं ,खूब मस्ती की हमने जी भर कर ! खेतों व बाग में सखियों की टोली संग डोलना , पेड़ पर चढ़ कर आम और जामुन तोड़ना...गुड़ियों के ब्याह रचाना, बिलउओं में ताई जी संग जाना और खूब नाचना-गाना ...ढेरों यादें हैं वहाँ की मस्ती की । वहाँ स्कूल में टाट पट्टी पर बैठते थे, कपड़े में किताबें बाँध कर ले जाते थे । लड़कों की इतनी बुरी तरह से पिटाई होती कि कई डंडियाँ टूट जातीं ...वो पिटते और बिलबिला कर चीखते ,रोते  और लड़किएं चुपके- चुपके मुँह छिपा कर मुस्कुरातीं पर हम काँपते और रोते रहते।

यूँ तो गाँव के हर आँगन में सपरी ( अमरूद) का पेड़ था पर 'कट्टी- बुआ’ के आँगन की सपरी के लिए व्याकुल होकर हर बच्चा पत्थर मार कर भाग जाता था क्योंकि वो फिर गाली बकती थीं ! और बिट्टा- बुआ को छेड़ने और गाली खाने के लिए नाक पर उंगली फिराना ही काफी होता था ! लेकिन हम इन उत्पातों से दूर ही रहते थे !

वहाँ के अमीन मास्साब यूँ तो रिश्ते में हमारे बब्बा लगते थे पर हमें बहुत बुरे लगते  थे पीछे पड़े रहते हमारे -

" काए कल्लू की बहू की मूँछ इतनी बड़ी और बिल्लू की बहू की पूँछ इत्ती लम्बी ,बस जे ही करने आईं तुम सहर से इहाँ , हैं कभी फुरसत मिले बिलउए से तो तनिक किताब भी खोल लिया करो बिटिया ...!”

कभी भी हमारे बस्ते में से कलमी अमिया निकाल लेते और चपरासी को बुला कर देते कि -"जाओ घर पर दे आओ मुंसाइन को कहियो बढिया चटनी बट लें हरी मिच्चा पुदीना डाल के !” हम कसमसा कर रह जाते ....उनको भी नमन🙏

फिर बुलन्दशहर में टैन्थ में घर पर म्यूजिक सिखाने आते थे श्री परमानन्द शर्मा मास्टर जी उनका विशेष स्नेह मिला वो दिल्ली से गोद में रख कर हमारे लिए तानपुरा लेकर आए थे । हम अपने गायन से जितने निराश रहते उनको हम पर उतना ही विश्वास था । उनके फेवरिट स्टुडेंट रहे !उनकी दिव्य स्मृतियों को सादर नमन🙏

एक  कजिन टैन्थ में ड्रॉइंग में फेल हो गई तो पापा ने सतारा से अपने पास बुला लिया ।उसको ड्रॉइंग टीचर सिखाने आते थे हमारे पास ड्राँइंग नहीं थी पर हम पूरे टाइम बैठ कर देखते रहते थे । एक दिन मास्टर साहब ने कहा कि कुछ बना कर लाओ हमने एक ड्राइंग बना कर दिखाई वो बहुत खुश हुए पापा को बुला कर कहा "मैं इसको भी सिखाउंगा इसका हाथ बहुत अच्छा है बेशक आप पैसे मत देना।” 

फिर हम भी सीखने लगे और इलैवेन्थ में हमने भी ड्राइंग ले ली जो बहुत मुश्किल से मिली सास्टर साहब के कहने पर माँ ने प्रिंसिपल को गारन्टी दी कि हमारे एग्जाम में सबसे ज्यादा नम्बर आएंगे ! पहले तो मैडम बहुत नाराज हुईं पर बाद में हम उनके फेवरिट स्टुडेंट हो गए ,इस तरह हमारे अंदर पेंटिंग की जड़ों को ढूँढ कर तराशने वाले श्रद्धेय अश्विनी शर्मा मास्टर साहब को नमन जिनके कारण लगभग चालीस साल तक ड्राइंग की टीचर रही और जीवन में यश, धन, आत्मविश्वास आत्मसम्मान व परम सन्तुष्टि प्राप्त कर सकी !🙏

ट्वैल्थ में थी तब पापा का ट्रान्सफर मथुरा हो गया और वहाँ हमारे होश उड़ गए । कई किताबें बदल गईं जैसे संस्कृत और हिन्दी की किताबें यहां दूसरी पढ़ाई जाती थीं और आधी किताब इलैवेन्थ में पढ़ा दी गई थी बाकी आधी ट्वैल्थ में पढ़ाई जा रही थीं हमें समझ नहीं आ रहा था क्या करें ? हमने जाकर मैडम से बात की तो उन्होंने कहा कि यहाँ वाली ही पढो़ पीछे का खाली पीरियड में आकर पढ़ लिया करो । 

अब समस्या म्यूजिक की आई क्योंकि क्लास में रागों की बंदिश दूसरी सिखाई जा रही थीं जबकि हमने दूसरी तैयार की हुई थीं ...खैर मास्टर साहब हमारा अलग से सुनते थे । उनका एक संगीत स्कूल था तो शाम को वहाँ जाकर सीखते थे ! शाम को तानपुरा लेकर प्रैक्टिस करते तो बाहर गली के उजड्ड बच्चे जोर - जोर से चिल्लाते 'सारे गधे पानी पी गए ‘😂 बाहर किसी सहायक को डंडा लेकर बैठाते तब प्रैक्टिस कर पाते थे ।वो संगीत मास्टर साहब ब्लाइन्ड थे पर बहुत मेहनत व पेशेन्स से सिखाते थे...उनको भी नमन🙏 

क्रमश:

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