ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

मंगलवार, 15 सितंबर 2020

चिट्ठी

 



चलो  चिट्ठी लिखते हैं
तुम मुझे लिखना
मैं तुमको लिखूँगी
अत्र कुशलम् तत्रास्तु
से शुरू करेंगे
और अन्त में 
बड़ों को प्रणाम
छोटों को प्यार लिखेंगे
और बीच में 
ढ़ेरों सतरंगी रंग भरेंगे
फिर प्यार से 
होठों पर टिका 
जीभ से नमी दे
लिफ़ाफ़ा बन्द कर
उस पर तेरा नाम और
डायरी में ढूँढ कर 
पता लिखेंगे 
फिर चौखट पर टिक 
कई दिनों तक 
बेसब्री से 
जवाब का इंतजार करेंगे
और इस तरह 
कई दिन तक हम
एक दूसरे के 
खयालों की खुशबू में
भीगे रहेंगे...!!
                             - उषा किरण 


3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर एक वक् इसी तरह से पत्रों को लिखा जाता था ।आदरणीया शुभकामनाएँ,

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  2. सतरंगी रंग बिखर रहा है इस चिट्ठी से ... अति सुंदर ।

    जवाब देंहटाएं

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