पार्क, स्टेशन, सड़क हो
या बाजार
ये जो तुम हर जगह मुझसे
बीस कदम आगे चलते हो न
नाक की सीध में एकदम
सीना तान कर
सतर कन्धे
हथेली पर सूरज उगाए
और सोचते हो कि
आगे हो मुझसे...?
गलत सोचते हो तुम
बिल्कुल गलत
मैं और बीस कदम
अपनी मर्जी से पीछे होकर
कहीं छिप जाऊँ अगर
तो क्या हो
सोचा है कभी ?
अपनी हथेलियों में ये जो तुम
सूरज की दिपदिपाहट लिए
दर्प से घूमते हो ,
तुम्हारे आँगन में ओस से भीगे
चाँदनी में नहाए महकते
प्रार्थनारत ये हरसिंगार ,
पिंजड़े में चहकती मैना,
द्वारे चटकते गुलमोहर
और अमलतास की धमक
नाते-रिश्तों की सरगोशियाँ
ये महफिलों और
उत्सवों की रौनकें
आंगन में सजे इन्द्रधनुष
खान - पान के वैभव
और सुकून की नीदें ...
ये सब भी छिप जाएंगी
उसी पल !
लम्बे डग भरते
तुम जो ये सोचते हो न कि
तुमने मुझे पीछे छोड़ा हुआ है
तो सुनो -
गलतफहमी है तुम्हारी
सच तो ये है कि
पीछे तुमने नहीं छोड़ा
बल्कि...
मैंने ही अपने माथे का सूरज
तुम्हारी हथेली में रोप
तुमको आगे किया हुआ है ...!!
— उषा किरण
फोटो : प्रणान सिंह की वॉल से साभार
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 14 अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
धन्यवाद पम्मी जी !
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जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 14 अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (14-10-2020) को "रास्ता अपना सरल कैसे करूँ" (चर्चा अंक 3854) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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बहुत धन्यवाद डॉ० रूपचन्द्र जी !
हटाएंवाहः
जवाब देंहटाएंअद्धभुत भावाभिव्यक्ति
धन्यवाद विभा जी !
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंअच्छी फटकार लगाई है । ये जो दम्भ है न व्व भी स्त्री के कारण ही दिखा पाते हो ।
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने...धन्यवाद 😊
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