ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

रविवार, 25 अक्तूबर 2020

पुस्तक -समीक्षा (ताना-बाना)

                             ~   पुनीत राठी~

                               ~~~~~~~~~~~



धन्यवाद मैम इस अमूल्य उपहार के लिये.........

आपका  काव्य संग्रह ताना-बाना सचमुच एक ताना- बाना ही है आपके जीवन का लेकिन जब पाठक इसे पढता है तब आपकी कविताओ मे अपनी संवेदनाओ के धागो को पाता  है और फिर एक ताना -बाना चलता है । जीवन मे एक धागा सुख  तो कही दो धागे दुख और भी न जाने कितने संबन्ध उनसे मिलने वाले अनुभवो के धागो से जो जीवन का ताना - बाना बनता है पूरी किताब को अन्त तक  पढने पर यही धागे बार- बार छुए जाते है और छू जाते है दिल को भी.....

 पुस्तक मे कविताये और उन पर बनाये गये आपके चित्र दोनो है जो नयी कविता के दौर मे शायद एेसा पहली बार है जो पाठक के आनन्द को द्विगुणित करते है ।  माना चित्र कविताओ पर आधारित है लेकिन कविताओ और चित्रो का अपना अलग - अलग अस्तित्व भी है। यदि कविताये बिना चित्रो के पढे तब भी एक चित्रात्मकता है और यदि चित्र ही देखे तब लगता है मानो किसी कला- विथिका मे घूम रहे हो।

" आपकी पुस्तक एक एेसी दीर्घा है जिसमे कला प्रदर्शनी और काव्य पाठ का आनन्द एक व्यक्ति को पाठक और दर्शक बनकर एक साथ मिलता है।"

सभी कविताये मुझे बेहद पसन्द आयी लेकिन कुछ कविताओ ने मन को बान्ध लिया जैसे परिचय , मुक्ति, मिलन , एकलव्य, पथराया पल ,फितरत और थाली का चांद ।

फरियाद , ताता, अभी भी, राखी और मां जैसी कविताये जो पारिवारिक संबन्धो से मिलने वाले सुख-दुख के विषय मे लिखी गयी है दिल को छू जाती है।

धूप, नदी, इन्द्रधनुष,रेत , बारिश चान्द और भी न जाने कितने उपमानो से सजी आपकी कविताये अपने आप मे धरती से लेकर अम्बर तक को समेटे है...!

                                   एक बार पुन: धन्यवाद🙏

 —  पुनीत राठी


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