ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

रविवार, 25 अक्टूबर 2020

पुस्तक समीक्षा- ताना- बाना

  लेखिका—शिखा वार्ष्णेय 




दि. 14 जून 2020 में  स्वदेशन्यूज में मेरे काव्य- संग्रह #ताना_बाना पर शिखा वार्ष्णेय की लिखी समीक्षा छपी ...पढ़ कर प्रोत्साहन तो मिलता ही है ...आप सबसे शेयर करना भी बनता है ...शुक्रिया Shikha Varshney और शुक्रिया Suresh Hindustani जी 😍


https://www.swadeshnews.in/full-page-pdf/epaper/gwalior-weekly/2020-06-14/saptak/261?fbclid=IwAR0eCRggA_vOhJcxzlTFx-90gTn7mPjSClWMBJbQP6R8CbPVkrHf3Os4xoo

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