ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

मंगलवार, 10 मार्च 2020

स्वास्थ्य सबसे बड़ी नियामत—- स्वस्थ रहें जागरूक रहें

समझदारी।
                               
यूँ ही लंदन में एयर पोर्ट पर चलते-चलते न्यूज़ पेपर उठा लिया और एक न्यूज़ पढ़ कर आश्चर्य- चकित हो गई ।कभी कैंसर जैसी लाइलाज बीमारियों के लिए हम भारतीय सीधे पेशेन्ट को इंगलैंड या अमेरिका ले जाने की बात करने लगते थे जैसे कि वहाँ सारे डॉक्टर्स धन्वन्तरि ही हैं और हमारे सब बेवक़ूफ़ ।पर इंसान से गल्ती या लापरवाही कहाँ नहीं हो सकती ? अब तो विदेशों में भी ख़ूब ऐसे केस सुनने में आते हैं और हमारे भी डॉक्टर चिकित्सा के क्षेत्र में किसी से पीछे नहीं हैं ।28 वर्षीय Ms Sarah Boyle जब बेटे को फ़ीड करवा रही थीं तो उन्होंने नोटिस किया कि वो राइट ब्रैस्ट से नहीं पीता था डॉक्टर को शक हुआ कि शायद ट्यूमर की वजह से टेस्ट चेंज हो गया है उसने टैस्ट करवाया तो पता चला कि उसे असाध्य triple negative breast cancer है ।
Royal Stoke University Hospital in Stoke-on-Trent, England में डबल मस्टकटमी और रिकन्स्ट्रक्टिव सर्जरी और सारी कीमोथेरेपी के बाद सात महीने के इलाज के उपरान्त डॉक्टर कहते हैं कि उसे कैंसर नहीं है Sarah ख़ुशी से रो पड़ीं तब डॉक्टर्स ने बताया कि सच तो ये है कि उनको कभी कैंसर था ही नहीं ।वे हैरान रह गईं ।
कीमो की वजह से समाप्त हो गए बाल व आई ब्रो हालाँकि दुबारा आ गए हैं पर शीशे में देखती हैं तो ख़ुद को बदला हुआ सा महसूस करती हैं और आज भी सर्जरी व कीमो के साइड इफ़ेक्ट झेल रही हैं हालाँकि हॉस्पीटल ने अपनी गल्ती मानी है कि बायप्सी की ग़लत रिपोर्ट देने की वजह से ऐसा हुआ और अब वे एक्स्ट्रा प्रिकॉशन्स लेते हैं ये इंसानी गल्ती है और वे डॉक्टर हरसंभव Sarah की मदद के लिए तैयार रहते हैं ।परन्तु जो क्षति Sarah की हो चुकी है उसका क्या ?उसकी पूर्ति कभी नहीं हो सकती । डॉक्टर्स को ये शक था कि शायद अब वो दुबारा माँ नहीं बन पाएगी कीमों की वजह से उनकी प्रजनन क्षमता पर असर पड़ेगा लेकिन अब वो एक और सात माह के बेटे की माँ हैं।
           इस न्यूज़ को प्रकाश में लाने का मेरा एक ही मक़सद है कि इंसानी गल्ती या लापरवाही कहीं पर किसी से भी हो सकती है ऐसे कई केस इंडिया में भी हुए हैं जब किसी को कैंसर नहीं था और उसका ऑपरेशन और कीमोथेरेपी दे दी गई ।कितनी दुर्भाग्यपूर्ण बात है उस व्यक्ति के लिए जिसने बिना बातशारीरिक,मानसिक,आर्थिक पीड़ा झेली जिसे वो बीमारी है ही नहीं उसे वो इलाज की सारी मुसीबतें झेलनी पड़ीं किसी एक की गल्ती की वजह से । कीमोथेरेपी कोई साधारण इलाज नहीं है कीमोथेरेपी के साइड इफ़ेक्ट सालों साल के लिए शरीर पर दुष्प्रभाव छोड़ जाते हैं ।
मेरी एक फ्रैंड के हस्बैंड को डॉक्टर ने कैंसर बताया तो वो उनको बॉम्बे ऑपरेशन के लिए ले गईं पर ऑपरेशन से ठीक पहले दूसरी रिपोर्ट आ गई जो निगेटिव थी और वो इस त्रासदी को झेलने से बच गए ।
अत: कैंसर यदि डायग्नोस होता भी है तो मेरा सुझाव है कि अन्य किसी अच्छी पैथोलॉजी लैब से दुबारा अवश्य स्लाइड टैस्ट करवा लें तब इलाज शुरू करें ।जागरूक रहना अच्छा है और दूसरों की गल्तियों व अनुभवों से सीख लेना



मन का कोना—अन्तर्राष्ट्रीय चाय दिवस

               

चाय दिवस भी होता है ये आज पता चला...हमारे तो सारे ही दिवस चाय दिवस ही हैं ...अम्माँ बताती थीं जब वो छोटी थीं तो मामाजी कहीं से चाय की पत्ती लाए थे अंग्रेज मुफ़्त में बाँट रहे थे ...(कुछ लोगों का कहना था कि देश का सत्यानाश करने को 😅)...खैर तो मामाजी ने पूरे ताम- झाम से थ्री पॉट चाय बनाई ...घड़ी देख कर चाय सिंझाई गई...और सबको बड़ी नफासत से पिलाई जो दो कौड़ी की लगी । वो ही अम्माँ बाद में सुबह -सुबह लगभग केतली भर चाय मामा जी के साथ पी जातीं...मामी जी को तो हर घंटे चहास लगती सारे दिन कटोरी में चाय बनातीं ...न जाने क्यों ? दरअसल चाय किस क्वालिटी की है उससे ज़्यादा असर इस बात का होता है कि वो किसके साथ पी जा रही है ...किसी आत्मीय के साथ गुनगुनी बातों संग गर्म चाय के मिठास भरे सिप अन्दर तक तृप्ति व ऊष्मा का अहसास कराते हैं ।गाँव जाने पर चूल्हे पर औटती चाय मिलती काढ़ा टाइप अदरक और गुड़ वाली , धूँए की खुशबू वाली ...बटलोही भर चाय बना कर चूल्हे से अंगारे  निकाल उस पर रख दी जाती और जो आता उसमें से धधकती चाय गिलास या कुल्हड़ में दी जाती...एक दिन मैंने गुड़ की बना कर देखी ...जरा मजा नहीं आया कसैली सी लगी सारी फेंकनी पड़ी । शायद गाँव वाली उस चाय में वो टेस्ट कोई खास गुड़ का था या गाँव की मिट्टी की ख़ुशबू और अपनों के प्यार की मिठास  का ...।दुनिया जहान की एक से एक उम्दा ,तरह- तरह की चाय पीने पर भी कभी-कभी वो ही गाँव वाली चाय की हुड़क उठती है  तो कुल्हड़ मंगा कर उसमें चाय पीकर संतोष करना पड़ता है...गौरव अवस्थी की ये कविता जैसे मेरे ही मन की बात है ।

सोमवार, 9 मार्च 2020

स्वास्थय सबसे बड़ी नियामत— लाडले

आज हमारे  सिम्बा को चैक करने जब उसके डॉक्टर घर आए तो उन्होंने कहा कि आप लोगों और आपके सिम्बा का फोटो अखबार में छपवाने का मन करता है क्योंकि सिम्बा साढे सत्रह साल के लैब्रा हैं हमारे घर के सबसे बुजुर्गवार प्राणी  और इंसान के हिसाब से उनकी एज को देखा जाय तो वे इस समय सौ से ऊपर हैं क्योंकि कहते हैं कि कुत्तों की एक साल की आयु इंसानों की आठ साल के बराबर होती है  तो सोच सकते हैं कि कितना लाड़ प्यार व केयर की होगी जो उम्र की वजह से आई परेशानियों के बाद भी आज भी सेहत काफी हद तक ठीक है ।पर कभी भी बिस्तर पर या सोफे या गोदी में नहीं बैठने की ट्रेनिंग दी है ।उसका बिस्तर अलग रहता है  और हम हर बार उसे या उसकी चेन या बिस्तर छूकर हाथ साबुन से वॉश करते हैं ।
जो लोग अपने पैट्स डॉगी, पूसी को अपने बिस्तरों में सुला लेते हैं सोफे पर बैठाते हैं हमें बहुत उत्सुकता है ये जानने की कि वे हाइजीन कैसे मेन्टेन करते हैं ?
-क्या वे उनको जब घुमाने ले जाते हैं तो उनको शूज पहनाते हैं या हर बार साबुन, पानी, डेटॉल से साफ करते हैं ? क्योंकि सड़कों की गंदगी व मिट्टी वे अपने नाखून व पंजों में लाते  हैं जिसमें निरे वायरस व बैक्टीरिया भी साथ लाते हैं उसका क्या?🤔
-जब वे पॉटी करते हैं तो क्या आप उनको हर बार वॉश करते हैं या कैसे भी क्लीन करते हैं ? बिना क्लीन किए ही आप उसे गोद में उठा लेते हैं अपने बिस्तरों व सोफे में सुला लेते हैं तो उसके चलते सफाई का क्या ? क्या आप उनको अंडरवियर या डायपर लगाते हैं ?🤔
- कितनी भी सफाई करो टीक्स प्राय: हो जाती हैं तो वे भी आपके बिस्तरों व सोफों में आपके साथ विश्राम करती होंगी और प्राय: आपके इन लाडलों के बाल जो आते जाते रहते हैं कितना भी ब्रश करो वे भी रह जाते होंगे आपके बिस्तरों में 🤔
-प्रायः स्किन डिजीज हो जाती हैं बरसात में उस इन्फैक्शन से कैसे सुरक्षित रखते हैं खुद को 🤔
 -क्या आप रोज नहाते हैं सफाई का ध्यान रखते हैं तो इन बातों का क्यों नहीं ? कुछ लोगों को देखा मैंने कि वे अपने पैट्स को खूब लाड़ दुलार कर बिना हाथ धोए खाना बना या खा लेते हैं ऐसी जगह पर जब मुझे भी खाना पड़ा तो मैं बड़ी मुश्किल में आ गई 😖
- वे आपका और आपके बच्चों का मुँह व होंठ चाटते हैं और आप गद्गद् होते हैं । बच्चे खाते समय उनको छूते हैं या हाथ से उनको भी खिलाते हैं जिससे उनकी लार बच्चों के हाथ पर लगती है और इसी हाथ से वे खुद खा लेते हैं क्या ये सही है?🤔
- आप अपने ड्राइवर, मेड, स्वीपर के साफ नहाए धोए बच्चों को भी गोद में नहीं उठा सकते जो कम से कम इंसान तो हैं , नहाते धोते तो हैं तो फिर वे आपके ये तथाकथित लाड़लों ( जो हैं तो कुत्ते व बिल्ली ही) से भी गए बीते हैं क्या 🤔
         खैर ....मेरा सिर्फ़ इतना कहना है कि आप पैट्स जरूर पालें उनकी हर तरह की सेहत का ध्यान रखें खूब प्यार करें उन बेजुबानों को ,वे भी आपको बहुत प्यार करते हैं परन्तु बस कृपया साफ सफाई का अवश्य ध्यान रखिए ।गूगल करिए ,डॉक्टर से डिस्कस करिए कितनी तरह की बीमारियों को आप आमन्त्रित कर लेते हैं और यदि नहीं रख सकते इस बात का ध्यान तो मत पालिए क्योंकि आपकी व आपके बच्चों की सेहत बहुत कीमती है 😊

चित्र: गूगल से साभार

बुधवार, 26 फ़रवरी 2020

सफरनामा— महाकालेश्वर व श्री काल भैरव मंदिर, उज्जैन


बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकालेश्वर भगवान का यह मंदिर प्रमुख मंदिरों में से एक माना जाता है इसके दर्शन की बहुत अभिलाषा थी । मान्यता है कि बारह ज्योतिर्लिंगों में से सिर्फ़ यहाँ पर ही दक्षिण मुखी शिवलिंग हैं । इस मंदिर का उल्लेख महाभारत,पुराणों व कालिदास के ग्रंथों में भी मिलता है ।धर्मशास्त्रों के अनुसार दक्षिण दिशा के स्वामि यमराज हैं  अत: यहाँ महाकालेश्वर के दर्शन करने से अकाल मृत्यु तथा यमराज द्वारा दी जाने वाले कष्टों से मुक्ति मिलती है तथा दर्शन मात्र से ही मो़क्ष की प्राप्ति होती है ।
सात फरवरी को सुबह ही सुबह मौका देख कर इंदौर से उज्जैन जिसका एक नाम अवन्तिका भी था के लिए निकल कर डेढ़ घंटे में पहुँच गए ।सुबह चार बजे की भस्म आरती में चाह कर भी शामिल नहीं हो पाए ।पहले सुना था कि ताजी चिता की भस्म से आरती होती थी परन्तु गाँधी जी की इच्छानुसार अब कपिला गाय के गोबर से बने कंडे अमलतास ,बेर,पीपल,पलाश,बड़ की लकड़ियों से मन्त्रोच्चार सहित जला कर बनी भस्म से आरती होती है। बहुत भीड़ थी मोबाइल बाहर जमा कर फूल- माला व  प्रसाद लेकर लाइन में लग गए।करीब एक घंटे में हमारा नं० आया ।दूर से ही दर्शन हुए ।पंडित जी ने प्रसाद ,फूल लेकर दूर से ही चढ़ा दिए दर्शन कर ,हाथ जोड़ श्री काल भैरव मंदिर  के लिए निकल लिए।
काल भैरव मंदिर महाकालेश्वर मंदिर से पाँच कि०मी० की दूरी पर है।किंवदंती है कि यहाँ के राजा भगवान महाकाल ने ही काल भैरव को यहाँ पर शहर की रक्षा के लिए नियुक्त किया था। इसलिए काल भैरव को शहर का कोतवाल भी कहा जाता है ।
वहाँ ज्यादा भीड़ नहीं थी ।फूल-माला ,प्रसाद के साथ एक बोतल में मदिरा भी दी गई ।ये दुनिया का एक मात्र ऐसा मंदिर है जहाँ भैरव भगवान पर मदिरा का प्रसाद चढ़ाया जाता है ।पुजारी के द्वारा प्लेट में निकाल कर मुँह से लगाने पर मदिरा साफ गटकती हुई दिखाई देती है जो आज भी रहस्य है।कहते हैं कि काफी जाँच के बाद भी समझ नहीं आया कि ये मदिरा आखिर जाती कहाँ है । ये छै: हजार साल पुराना वाम मार्गी तांत्रिक मंदिर है  जहाँ बलि ,माँस, मदिरा चढ़ाया जाता था और मदिरा आज भी चढ़ाई जाती है।भैरव देवता तामस देवता माने जाते हैं और मान्यता है कि तामसिक पूजा से अनिष्ट ग्रहों की शाँति होती है।
इस मंदिर में भगवान कालभैरव की प्रतिमा सिंधिया पगड़ी पहने हुए दिखाई देती है। यह पगड़ी भगवान ग्वालियर के सिंधिया परिवार की ओर से आती है। यह प्रथा सैकड़ों सालों से चली आ रही है।
मंदिर के बाहर एक शराबी मंदिर से लौटने वालों से बची मदिरा गिड़गिड़ा कर माँग रहा था ...पर प्रसाद तो सबको चाहिए होता है न....तो किसी ने भी नहीं दी।
बहुत भूख लग रही थी और प्रोग्राम में लौटने की भी जल्दी थी अत: भूख लगने पर भी चाय नाश्ता न कर झटपट अमरूद लेकर गाड़ी में ही मसाले से खाते हुए इंदौर वापिस हो लिए । वाकई सच मानिए उज्जैन के अमरूदों का स्वाद लाजवाब था ।मैं सिर्फ़ अमरूद खाने के लिए ही इंदौर या उज्जैन दुबारा जा सकती हूँ ।

                                                                 महाकालेश्वर

श्री काल भैरव मंदिर





कविता — " नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि.....!”



भूल जाना चाहती हूँ इस तारीख को
है ऐसी कोई रबड़ तो इस तारीख को ही
कैलेंडर से मिटा दो कोई
जो तुम्हारी पुण्य- तिथि के नाम से
दर्ज है अब हमारी यादों में !

सारा दिन
सीने से पेट तक
घू-घू करते चक्रवात
और एक दबी ,सुलगती सी चिंगारी
अग्निशिखा सी प्रश्न बन
सिर पटकती है
क्या जल्दी थी इतनी....!

दिल को मुट्ठी में जैसे कोई भींच
निचोड़ता है ...
कि तुम्हारी फिसलती उंगलियों को थाम
किया वादा कहाँ निभा पाई ?
जानती हूँ तुम मेरी मजबूरी समझते होगे

तुम्हारे रोपे पौधे आज वृक्ष बन
आसमानों को छूते
झूम रहे हैं
आशीषों और दुआओं से
हर पल सींचती हूँ

रात घिर रही है
और मन के
अंधेरों में
हजारों उत्ताल तरंगों संग
डूबती-उतराती
अवश सी मैं बुदबुदा रही हूँ
"नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणी .....!”
                                      —उषा किरण

पुस्तक समीक्षा —बाना -बाना





रश्मि कुच्छल की प्रतिक्रिया ताना-बाना पर—
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इस सफरनामे का आवरण ही लेखिका यानी  डॉ . उषाकिरण दी का व्यक्तित्व है ,घनी कालिमा को चीरकर उभरता सुनहरा सूरज ।
रेखाओं की चितेरी जादू भरी उंगलियां कब इन रेखाओं को शब्द बना देती हैं और कब ये कवितायों की भावभूमि के उड़ते मेघ से कागज पर चित्र बनकर उतर आते हैं ,ये अद्भुत संयोजन और कारीगिरी इस किताब को विशेष बनाती है व दीदी को एक विशिष्ट गरिमामयी काव्यचित्र संकलन "ताना - बाना " की जननी ।
स्त्री मन की नजर से जीवन के हर रंग को छूती , विषाद, विसंगति और विडंबनाओं पर तंज करती , कभी निरुपाय तो कभी दृढ़ होकर राह बनाती हर कविता उनके नजरिये से मिलवाती है ।
आज कुछ कविताओं से रूबरू होते हुए एक कविता पर रुक गयी हूँ ।
आप सबके लिए ---🙏😊

ताना- बाना ( पुस्तक समीक्षा)





लेखिका— रन्जु भाटिया






ताना बाना ( काव्यसंग्रह )

सुन लो           

जब तक कोई

आवाज देता है

क्यूँ कि...

सदाएं  एक वक्त के बाद

खामोश हो जाती हैं

और ख़ामोशी ....

आवाज नहीं देती!!

   डॉ उषा किरण


कितनी सच्ची पंक्तियां है यह। हम वक़्त रहते अपने ही दुनिया मे रहते हैं बाद में पुकारने वाली आवाज़ों को सुनने की कसक रह जाती है । शब्दों का यह "ताना बाना" ,ज़िन्दगी को आगे चलाता रहता है । यही सुंदर सा शब्दों का" ताना बाना "जब मेरे हाथ मे आया तो घर आ कर सबसे पहले मैने इसमें बने रेखाचित्र देखे ,जो बहुत ही अपनी तरफ आकर्षित कर रहे थे , कुछ रचनाएं भी सरसरी तौर पर पढ़ी ,फिर दुबई जाने की तैयारी में इसको सहज कर रख दिया ।
     यह सुंदर सा "काव्यसंग्रह "मुझे "उषा किरण जी" से इस बार के पुस्तक मेले में भेंटस्वरूप मिली । उषा जी 'से भी मैं पहली बार वहीं मिली ,इस से पहले फेसबुक पर उनका लिखा पढ़ा था और उनके लेखन से बहुत प्रभावित भी थी । क्योंकि उनके लेखन में बहुत सहजता और अपनापन सा है जो सीधे दिल मे उतर जाता है ।
     पहले ही कविता "परिचय " में वह उस बच्ची की बात लिख रही हैं जो कहीं मेरे अंदर भी मचलती रहती है ,
नन्हे इंद्रधनुष रचती
नए ख्वाब बुनती
जाने कहाँ कहाँ ले जाती है
उषा जी ,के इस चित्रात्मक काव्य संग्रह में बेहद खूबसूरत ज़िन्दगी से जुड़ी रचनाएं हैं ।जो स्त्री मन की बात को अपने पूरे भावों के साथ कहती हैं । औरत का मन अपने ही संसार मे विचरण करता है ,जिसमे उसकी वो सभी  भावनाएं हैं जो दिन रात के चक्र में चलते हुए भी उसके शब्दों में बहती रहती है और यहां इन संग्रह में तो शब्दों के साथ रेखांकित चित्र भी है जो उसके साथ लिखी कविता को एक  सम्पूर्ण अर्थ दे देते हैं जिसमे पढ़ने वाला डूब जाता है।
डॉ उषा जी के इस संग्रह को पढ़ते हुए मैंने खुद ही इन तरह की भावनाओं में पाया , जिसमे कुछ रचनाएं प्रकृति से जुड़ी कर मानव ह्रदय की बात बखूबी लिख डाली है ,जैसे सब्र , कविता में
थका मांदा सूरज
दिन ढले
टुकड़े टुकड़े हो
लहरों में डूब गया जब
सब्र को पीते पीते
सागर के होंठ
और भी नीले हो गए

पढ़ते ही एक अजब से एहसास से दिल भर जाता है। ऐसी ही उनकी नमक का सागर ,बड़ा सा चाँद, एक टुकड़ा आसमान, अहम ,आदि बहुत पसंद आई । इन रचनाओं में जो साथ मे रेखाचित्र बने हुए है वह इन कविताओं को और भी अर्थपूर्ण बना देते हैं।
   किसी भी माँ का सम्पूर्ण संसार उनकी बेटियां बेटे होते हैं , इस संग्रह में उनकी बेटियों पर लिखी रचनाएं मुझे अपने दिल के बहुत करीब लगी
बेटियां होती है कितनी प्यारी
कुछ कच्ची
कुछ पक्की
कुछ तीखी
कुछ मीठी
वाकई बेटियां ऐसी ही तो होती है ,एक और उनकी कविता मुनाफा तो सीधे दिल मे उतर गई ,जहां बेटी को ब्याहने के बाद मुनाफे में एक माँ बेटा पा लेती है। जो रचनाएं आपके भी जीवन को दर्शाएं वह वैसे ही अपनी सी लगती है । लिखने वाला मन और पढ़ने वाला मन  कभी कभी शायद एक ही हालात में होते हैं । कल और आज शीर्षक से इस संग्रह की एक और रचना मेरे होंठो पर बरबस मुस्कान ले आयी जिसमे हर बेटी छुटपन में माँ की तरह खुद को संवारती सजाती है ,कभी माँ के सैंडिल में ,कभी उसकी साड़ी में , और इस रचना की आखिरी पँक्तियाँ तो कमाल की लगी सच्ची बिल्कुल
आज तुम्हारी सैंडिल
मेरी सैंडिल से बड़ी है
और .....
तुम्हारे इंद्रधनुष भी
मेरे इंद्रधनुष से
बहुत बड़े हैं !
इस तरह कभी बेटी रही माँ जब खुद माँ बनती है तो मन के किसी कोने में छिपी आँचल में मुहं दबा धीमे धीमे हंसती है  ( माँ कविता )
बहुत सहजता से उनके लिखे इस संग्रह में रोज़मर्रा की होने वाली बातें , शरीरिक दर्द जैसे रूट कैनाल में बरसों से पाले दर्दों से मुक्ति का रास्ता सिखला देती है ।
इस संग्रह की हर रचना पढ़ने पर कई नए अर्थ देती है । मुझे तो हर रचना जैसे अपने मन की बात कहती हुई लगी । पढ़ते हुए कभी मुस्कराई ,कभी आंखे नम हुई । सभी रचनाओं को यहां लिखना सम्भव नहीं पर जिस तरह एक चावल के दाने से हम उनको देख लेते है वैसे ही उनकी यह कुछ चयनित पँक्तियाँ बताने के लिए बहुत है कि यह संग्रह कितना अदभुत है और इसको पढ़े बिना नहीं रहा जा सकता है ।
"ताना बाना "डॉ उषा जी का यह संग्रह  इसलिए भी संजोने लायक है ,क्योंकि इसमें  बने रेखाचित्रों से भी पढ़ने वाले को बहुत जुड़ाव महसूस होगा  ।
  डॉ उषा जी से मिलना भी बहुत सुखद अनुभव रहा । जितनी वो खुद सरल और प्यारी है उनका लिखा यह संग्रह भी उतना ही बेहतरीन है । अभी एक ग्रुप में जुड़ कर उनकी आवाज़ में गाने सुने ,वह गाती भी बहुत सुंदर  हैं । ऐसी प्रतिभाशाली ,बहुमुखी प्रतिभा व्यक्तित्व के लिखे इस संग्रह को जरूर पढ़ें ।
धन्यवाद उषा जी इस शानदार काव्यसंग्रह के लिए और आपको बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं

ताना बाना
डॉ उषा किरण
शिवना प्रकाशन
मूल्य 450 rs

जरा सोचिए

     अरे यार,मेरी मेड छुट्टी बहुत करती है क्या बताएं , कामचोर है मक्कार है हर समय उधार मांगती रहती है कामवालों के नखरे बहुत हैं  पूरी हीरोइन...