ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

बुधवार, 26 फ़रवरी 2020

सफरनामा— महाकालेश्वर व श्री काल भैरव मंदिर, उज्जैन


बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकालेश्वर भगवान का यह मंदिर प्रमुख मंदिरों में से एक माना जाता है इसके दर्शन की बहुत अभिलाषा थी । मान्यता है कि बारह ज्योतिर्लिंगों में से सिर्फ़ यहाँ पर ही दक्षिण मुखी शिवलिंग हैं । इस मंदिर का उल्लेख महाभारत,पुराणों व कालिदास के ग्रंथों में भी मिलता है ।धर्मशास्त्रों के अनुसार दक्षिण दिशा के स्वामि यमराज हैं  अत: यहाँ महाकालेश्वर के दर्शन करने से अकाल मृत्यु तथा यमराज द्वारा दी जाने वाले कष्टों से मुक्ति मिलती है तथा दर्शन मात्र से ही मो़क्ष की प्राप्ति होती है ।
सात फरवरी को सुबह ही सुबह मौका देख कर इंदौर से उज्जैन जिसका एक नाम अवन्तिका भी था के लिए निकल कर डेढ़ घंटे में पहुँच गए ।सुबह चार बजे की भस्म आरती में चाह कर भी शामिल नहीं हो पाए ।पहले सुना था कि ताजी चिता की भस्म से आरती होती थी परन्तु गाँधी जी की इच्छानुसार अब कपिला गाय के गोबर से बने कंडे अमलतास ,बेर,पीपल,पलाश,बड़ की लकड़ियों से मन्त्रोच्चार सहित जला कर बनी भस्म से आरती होती है। बहुत भीड़ थी मोबाइल बाहर जमा कर फूल- माला व  प्रसाद लेकर लाइन में लग गए।करीब एक घंटे में हमारा नं० आया ।दूर से ही दर्शन हुए ।पंडित जी ने प्रसाद ,फूल लेकर दूर से ही चढ़ा दिए दर्शन कर ,हाथ जोड़ श्री काल भैरव मंदिर  के लिए निकल लिए।
काल भैरव मंदिर महाकालेश्वर मंदिर से पाँच कि०मी० की दूरी पर है।किंवदंती है कि यहाँ के राजा भगवान महाकाल ने ही काल भैरव को यहाँ पर शहर की रक्षा के लिए नियुक्त किया था। इसलिए काल भैरव को शहर का कोतवाल भी कहा जाता है ।
वहाँ ज्यादा भीड़ नहीं थी ।फूल-माला ,प्रसाद के साथ एक बोतल में मदिरा भी दी गई ।ये दुनिया का एक मात्र ऐसा मंदिर है जहाँ भैरव भगवान पर मदिरा का प्रसाद चढ़ाया जाता है ।पुजारी के द्वारा प्लेट में निकाल कर मुँह से लगाने पर मदिरा साफ गटकती हुई दिखाई देती है जो आज भी रहस्य है।कहते हैं कि काफी जाँच के बाद भी समझ नहीं आया कि ये मदिरा आखिर जाती कहाँ है । ये छै: हजार साल पुराना वाम मार्गी तांत्रिक मंदिर है  जहाँ बलि ,माँस, मदिरा चढ़ाया जाता था और मदिरा आज भी चढ़ाई जाती है।भैरव देवता तामस देवता माने जाते हैं और मान्यता है कि तामसिक पूजा से अनिष्ट ग्रहों की शाँति होती है।
इस मंदिर में भगवान कालभैरव की प्रतिमा सिंधिया पगड़ी पहने हुए दिखाई देती है। यह पगड़ी भगवान ग्वालियर के सिंधिया परिवार की ओर से आती है। यह प्रथा सैकड़ों सालों से चली आ रही है।
मंदिर के बाहर एक शराबी मंदिर से लौटने वालों से बची मदिरा गिड़गिड़ा कर माँग रहा था ...पर प्रसाद तो सबको चाहिए होता है न....तो किसी ने भी नहीं दी।
बहुत भूख लग रही थी और प्रोग्राम में लौटने की भी जल्दी थी अत: भूख लगने पर भी चाय नाश्ता न कर झटपट अमरूद लेकर गाड़ी में ही मसाले से खाते हुए इंदौर वापिस हो लिए । वाकई सच मानिए उज्जैन के अमरूदों का स्वाद लाजवाब था ।मैं सिर्फ़ अमरूद खाने के लिए ही इंदौर या उज्जैन दुबारा जा सकती हूँ ।

                                                                 महाकालेश्वर

श्री काल भैरव मंदिर





3 टिप्‍पणियां:

  1. As claimed by Stanford Medical, It's really the one and ONLY reason women in this country live 10 years more and weigh on average 42 pounds lighter than us.

    (And by the way, it is not about genetics or some secret-exercise and really, EVERYTHING related to "HOW" they are eating.)

    BTW, I said "HOW", not "WHAT"...

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