ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

सोमवार, 25 नवंबर 2024

कैंसर में जागरूकता जरूरी….



आजकल एक पोस्ट बहुत वायरल हो रही है कि प्राकृतिक चिकित्सा से फोर्थ स्टेज का कैंसर ठीक हो गया। मैं ऐसे बहुत से लोगों को जानती हूँ जिन्होंने अपना एलोपैथी इलाज बीच में छोड़कर आयुर्वेदिक या नेचुरोपैथी अपनाया और नहीं बच सके। मेरी राय है कि कैंसर पेशेंट को पहले किसी अच्छे डॉक्टर से पूरा इलाज सर्जरी, कीमोथेरेपी, रेडिएशन वगैरह जो वो बताएं वह करवाना चाहिए, तब बाद में इसके बारे में सोचें। यहाँ मैं अपने उपन्यास का कुछ अंश प्रस्तुत कर रही हूँ-

"……हॉस्पिटल में बड़े - बड़े पोस्टर लगे थे ,जिनमें लिखा था कि कैंसर - पेशेन्ट कैंसर से ज्यादा कैंसर में विज़िटर्स के द्वारा दिए गए इन्फैक्शन से मरते हैं और इलाज छोड़ कर ऑल्टरनेट थैरेपी या झाड़- फूँक करवाने से मरते हैं ।तो कभी भी बीच में इलाज नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि हर दूसरा आदमी ऐसे में कोई न कोई अचूक नुस्ख़ा या वैद्य ,हकीम ,गंडा- ताबीज या तान्त्रिक की खबर लिए आपको मिलता है।

प्राय: हम किसी परिचित के कैंसर से पीड़ित होने की खबर मिलते ही उससे कभी भी, अचानक मिलने चले जाते हैं ,ये कदापि उचित नहीं है ।उनको मैसेज या कॉल कर कहना चाहिए -

" किसी भी मदद की जरूरत हो तो बताइएगा हम आपको असुविधा न हो इसलिए मिलने नहीं आ रहे हैं ! तन, मन, धन से तुम्हारे पीछे खड़े हैं दोस्त ,बस जब जरूरत हो तो हमें आवाज जरूर देना भूलना नहीं !”

यदि मिलने जा भी रहे हैं तो पूछ कर जाएं! चप्पल जूते बाहर उतार कर जाएं और यदि फ्लू ,वायरल या कोई बीमारी है तो भी न जाएं वर्ना लो इम्यूनिटी के कारण आप उसे इन्फैक्शन देकर मुसीबत में डाल देंगे ।

मैंने सुना है कि कभी भी कीमोथेरेपी के साथ या बाद में आयुर्वेदिक दवाएं भस्म आदि कदापि नही लेनी चाहिए वर्ना बहुत भयंकर परिणाम होते हैं ।डॉक्टर से सलाह किए बिना कोई भी दवाएं नहीं लेनी चाहिए….।”

                           — दर्द का चंदन

                                उषा किरण

मैं प्राकृतिक चिकित्सा की विरोधी नहीं हूँ, खुद भी डीटॉक्स के लिए बीच- बीच में जाती रहती हूँ, लेकिन कैंसर जैसी भीषण बीमारी के लिए इस पर निर्भर नहीं रहा जा सकता। मैंने भी पूरा इलाज करवाया फिर बाद में नेचुरोपेथी को और प्राणायाम को अपनाया।इलाज समाप्त होने के बाद पंचकर्म, योगा , प्राणायाम व प्राकृतिक चिकित्सा अवश्य ही लाभ देती है इसमें सन्देह नहीं लेकिन आप इसके भरोसे इलाज छोड़ने का रिस्क कदापि न लें।

टाटा मेमोरियल अस्पताल के पूर्व और वर्तमान के मिलाकर कुल 262 कैंसर विशेषज्ञों द्वारा हस्ताक्षरित बयान में कहा गया है कि-

"एक पूर्व क्रिकेटर का अपनी पत्नी के स्तन कैंसर के इलाज का वर्णन करने वाला एक वीडियो सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से प्रसारित हो रहा है। वीडियो के कुछ हिस्सों में बताया गया है कि 'डेयरी उत्पाद और चीनी न खाकर कैंसर सेल्स को भूखा रखना', हल्दी और नीम का सेवन करने से उनके 'लाइलाज' कैंसर को ठीक करने में मदद मिली। इन बयानों के समर्थन में कोई उच्च गुणवत्ता वाला सबूत नहीं है, ”डॉक्टरों ने लिखा।

“हालांकि इनमें से कुछ उत्पादों पर शोध जारी है, लेकिन कैंसर-विरोधी एजेंटों के रूप में उनके उपयोग की सिफारिश करने के लिए वर्तमान में कोई प्रमाणिक ​​​​डेटा उपलब्ध नहीं है। 

डॉक्टर ने कहा कि हल्दी और नीम से उन्होंने कैंसर को मात नहीं दी बल्कि सर्जरी और कीमोथेरेपी करवाई, जिसके कारण वह इस रोग से मुक्त हुईं। उन्होंने कहा कि हम आमजन से अनुरोध करते हैं कि यदि किसी में कैंसर के कोई लक्षण हों तो चिकित्सक या कैंसर विशेषज्ञ से सलाह लें। पत्र में कहा गया है, "अगर कैंसर का जल्दी पता चल जाए तो इसका इलाज संभव है और कैंसर के सिद्ध उपचारों में सर्जरी, विकिरण चिकित्सा और कीमोथेरेपी शामिल हैं।"


मंगलवार, 19 नवंबर 2024

खुशकिस्मत औरतें

 



ख़ुशक़िस्मत हैं वे औरतें

जो जन्म देकर पाली गईं

अफीम चटा कर या गर्भ में ही

मार नहीं दी गईं,

ख़ुशक़िस्मत हैं वे

जो पढ़ाई गईं

माँ- बाप की मेहरबानी से,

ख़ुशक़िस्मत हैं वे 

जो ब्याही गईं

खूँटे की गैया सी,

ख़ुशक़िस्मत हैं वे 

जो माँ बनीं पति के बच्चों की,

ख़ुशक़िस्मत हैं वे 

जिन्हें घर- द्वार सौंपे गये

पति के नाम वाली तख्ती के,

ख़ुशक़िस्मत हैं वे

जो पर्स टाँग ऑफिस गईं

पति की मेहरबानी से..!


जमाना बदल गया है

बढ़ रही हैं औरतें 

कर रही हैं तरक्की

देख रही हैं बाहरी दुनिया

ले रही हैं साँस खुली हवा में 

खुली हवा...खुला आकाश...!

क्या वाकई ?

कौन सा आकाश ?

जहाँ पगलाए घूम रहे हैं

जहरीली हवा में 

दृष्टि से ही नोच खाने वाले

घात लगाए गिद्ध-कौए !


कन्धे पर झूलता वो पर्स

जिसमें भर के ढ़ेरों चिंताएं

ऊँची एड़ी पर

वो निकलती है घर से

बेटी के बुखार और

बेटे के खराब रिजल्ट की चिन्ता

पति की झुँझलाहट कि

नहीं दिखती कटरीना सी

मोटी होती जा रही हो...!

सास की शिकायतों 

और तानों का पुलिन्दा

फिर चल दी महारानी

बन-ठन के...!


ऑफिस में बॉस की हिदायत

टेंशन घर पर छोड़ कर आया करिए

चेहरे पे मुस्कान चिपकाइए मोहतरमा

शॉपिंग की लम्बी लिस्ट

जीरा खत्म,नमक खत्म, तेल भी

कामों की लिस्ट उससे भी लम्बी

लौट कर क्या पकेगा किचिन में 

घर भर के गन्दे कपड़ों का ढेर

कल टेस्ट है मुन्ना का...

सोच को ठेलती ट्रेन में पस्त सी 

ऊँघती रहती है !


ख़ुशक़िस्मत औरतें

महिनों के आखिर में लौटती हैं 

रुपयों की गड्डी लेकर

उनकी सेलरी

पासबुक, चैकबुक

सब लॉक हो जाती हैं

पति की सुरक्षित अलमारियों में !


खुश हैं बेवकूफ औरतें

सही ही तो है

कमाने की अकल तो है

पर कहाँ है उनमें

खरचने की तमीज !


पति गढ़वा  तो देते हैं 

कभी कोई जेवर

ला तो देते हैं

बनारसी साड़ी

जन्मदिवस पर 

लाते तो हैं केक

गाते हैं ताली बजा कर

हैप्पी बर्थडे टू यू

मगन हैं औरतें

निहाल हैं 

भागोंवाली  हैं 

वे खुश हैं अपने भ्रम में ...!


सुन रही हैं दस-दस कानों से

ये अहसान क्या कम है कि

परमेश्वर के आँगन में खड़ी हैं

उनके चरणों में पड़ी हैं 

पाली जा रही हैं

नौकरी पर जा रही हैं 

पर्स टांग कर 

लिपिस्टिक लगा कर

वर्ना तो किसी गाँव में

ढेरों सिंदूर, चूड़ी पहन कर

फूँक रही होतीं चूल्हा

अपनी दादी, नानी 

या माँ की तरह...!


बदक़िस्मती से नहीं देख पातीं 

ख़ुशक़िस्मत औरतें कि...

सबको खिला कर

चूल्हा ठंडा कर

माँ या दादी की तरह

आँगन में अमरूद की 

सब्ज छाँव में बैठ

दो जून की इत्मिनान की रोटी भी

अब नहीं रही उसके हिस्से !


घड़ी की सुइयों संग 

पैरों में चक्कर बाँध 

सुबह से रात तक भागती

क्या वाकई आज भी

ख़ुशक़िस्मत हैं औरतें....??

                         उषा किरण -

फोटो: गूगल से साभार

गुरुवार, 14 नवंबर 2024

तेरी रज़ा

 

कुछ छूट गए 

कुछ रूठ गए

संग चलते-चलते बिछड़ गए


छूटे हाथ भले ही हों

दूरी से मन कब छूटा है 

कुछ तो है जो भीतर-भीतर

चुपके से, छन्न से टूटा है


साजिश ये रची  तुम्हारी है

सब जानती हूँ मनमानी है

सबसे साथ छुड़ा साँवरे

संग रखने की तैयारी है


हो तेरी ही अभिलाषा पूरी 

रूठे मनाने की कहाँ अब

जरा भी हिम्मत है बाकी 

सच कहूँ तो अब बस

गठरी बाँधने की तैयारी है

अब सफर ही कितना बाकी है


वे हों न हों अब साथ मेरे

न ही सही वे पास मेरे

हर दुआ में हृदय बसे 

वे मेरे दुलारे प्यारे सभी

वे न सुनें, वे ना दीखें

पर उन पर मेरी ममता के 

सब्ज़ साए तो तारी हैं…


थका ये तन औ मन भी है

तपती धरती औ अम्बर है

टूटे धागों को जोड़ने की 

हिम्मत न हौसला बाकी है


न मेरे किए कुछ होता है

न मेरे चाहे से होना है

न कुछ औक़ात हमारी है

ना कुछ सामर्थ्य ही बाकी है

जो हुआ सब उसकी मर्ज़ी 

जो होगा सब उसकी मर्ज़ी 

रे मन फिर क्यूँ  तड़पता है

मन ही मन में क्यूँ रोता है


संभालो अपनी माया तुम

ले लो वापिस सब छद्म-बन्ध

अब मुक्त करो है यही अरज

ना बाँधना फिर फेरों का बन्ध


हो तेरी इच्छा पूर्ण प्रभु

तेरी ही रज़ा अब मेरी रज़ा 

जो रूठ गए या बिछड़ गए

खुद से न करना दूर कभी

बस पकड़े रहना हाथ सदा

संग-साथ ही रहना उनके प्रभु…!!!


                        — उषा किरण 🍁

फोटो; गूगल से साभार 

दुआ की ताकत

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