ताना बाना
मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले
तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं
और जब शब्दों से भी मन भटका
तो रेखाएं उभरीं और
रेखांकन में ढल गईं...
इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये
ताना- बाना
यहां मैं और मेरा समय
साथ-साथ बहते हैं
गुरुवार, 2 अक्टूबर 2025
ताना बाना : पुस्तक समीक्षा- ताना बाना
ताना बाना : पुस्तक समीक्षा- ताना बाना: मन की उधेड़बुन का खूबसूरत ‘ताना-बाना’ - ~लेखिका— गिरिजा कुलश्रेष्ठ~ जब कोई आँचल मैं चाँद सितारे भरकर अँधेरे को नकारने लगे , तूफानों को ल...
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