ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

सोमवार, 5 अगस्त 2019

सफरनामा— Tate Britain,London


लंदन की Tate Britain Gallery  जो 1897 से1932 तक National Gallery of British Art और 1932 सेआज तक जिसे  Tate Gallery या Tate Britain के नाम से जाना जाता है लंदन में Millbank में City of Westminster में स्थित है ।इसका निर्माण 1893 ई॰ से शुरु हुआ था और 1897 ई॰ में खोला गया।यहाँ पर लगभग 70,000 कलाकृतियों का संग्रह है विशेषकर J.M.W. Turner के चित्रों का |इसके अतिरिक्त , फ़ोटोग्राफ़्स,मूर्तिशिल्प,फ़िल्म,वीडियो,पत्रिका,स्कैच बुक्स,प्रिंट ,पांडुलिपियाँ इत्यादि का विशाल संग्रह संग्रहित हैं।गैलरी का अपना एक बड़ा इतिहास है जिसकी चर्चा फिर कभी ।
John Constable,William Blake,J.M.W.Turner,Sir John Everett Millais,George Stabbs, Thomas Gainsborough,John Martin,Augustus Egg,John Singer Sargent.Henry Moore जैसे प्रसिद्ध कलाकारों की कृतियों का परमानेन्ट कलेक्शन है ।
हमारा सौभाग्य रहा कि मेरे फ़ेवरिट कलाकार Van Guogh की एक प्रदर्शनी The EY Exhibition : Van Gough and Britain 27 मार्च से 11 अगस्त तक वहाँ आयोजित थी ।युवावस्था में तीन वर्षों 1873-1876 तक वे इंग्लैंड में रहे ।उन्हें ब्रिटिश संस्कृति से प्यार था ।उनकी उक्त प्रदर्शनी को दो भागों में बाँट सकते हैं पहले वे चित्र हैं जो Van Gough ने अपने लंदन के अनुभवों व प्रभावों के फलस्वरूप बनाए हैं और दूसरे भाग में वे चित्र प्रदर्शित हैं जिन्हें  ब्रिटिश कलाकारों ने Van Gough के चित्रों के प्रभाव स्वरूप बनाए ।Van Gaugh के सुप्रसिद्ध चित्र Shoes  ,Starry Night और Prisoners Excersising भी प्रदर्शित थे Starry Night पेंटिंग का निरन्तरता  का आध्यात्मिकता भरा संदेश मुझे हमेशा आंदोलित कर देता है और Shoes पेंटिंग देख हर बार ख़ुद को नसीहत देने पर मजबूर करता है कि एक जूते पर भी आप चित्र बना सकते हैं विषय की समस्या कभी महान कलाकारों के आड़े नहीं आती ।Van Gough जैसे महान समर्पित कलाकार का चित्र Shoes आपको बाँध लेता है और आपसे बात करता है कि `इस सनकी महान कलाकार का जूता हूँ साहब कोई ऐरे ग़ैरे का नहीं एक ऐसा समर्पित कलाकार जो भूखा रह सकता है ,पागल हो सकता है पर चित्र बनाए बिना नहीं रह सकता ...हाँ थक गया हूँ ,बूढ़ा ज़रूर हो गया हूँ पर अभी भी साथ हूँ ।उस महान साधक का साथी होने पर गर्व है मुझे जिसने मुझे भी अपने साथ अमर कर दिया ...’एक झुरझुरी सी मेरे पार उतर जाती है ।
इसके अतिरिक्त Frank Bowling  के चित्रों की प्रदर्शनी भी एक रूम में थी जो हमें ज़रा नहीं भाई ऐसा लगा जैसे किसी शैतान बच्चे को सज़ा के तौर पर कमरे में बंद कर दिया गया और उसने रंगों से सारी दीवारें पोत मारीं ख़ुनस निकालने के लिए।
हर मंगल,बुद्ध व बृहस्पतिवार को एक कला संबंधी वार्ता भी आयोजित होती है ।
सबसे बढ़िया बात है कि यदि आप कला प्रेमी हैं तो कितने ही दिन चित्रों को देखते यहाँ दिन बिता सकते हैं क्योंकि एन्ट्री फ़्री है और कैफे में बढ़िया चाय ,कॉफ़ी व स्नैक्स मिलते हैं साथ ही साफ़ सुथरे टॉयलेट्स हैं ।हर रूम में बैठने के लिए बैच या सोफ़े की व्यवस्था रहती है तथा ऑडियो गाइड भी उपलब्ध रहते हैं ।सोविनियर शॉप्स हैं जहाँ से आप मुझ जैसे मित्रों के लिए सुंदर गिफ़्ट ले सकते हैं कलर्स,ब्रश,रबड़,पेंसिल,शर्ट ,छाते,बैग,शर्ट,बुक्स ,कार्ड्स की रिंग वग़ैरह ।
बढ़िया बात ये है कि बेटा आदित्य व पति मुझसे भी ज़्यादा कला- प्रेमी  हो गए हैं ,वे रंग चुके हैं कला के रंग में तो सब मिल कर प्राय: कला संग्रहालयों का आनन्द लेते हैं मैं किसी दिन कहूँ भी कि थक गई हूँ आज तो भी टाँग ले जाते थे किसी न किसी कला-संग्रहालय में मुझे,एक नहीं सुनते 😂।
वहाँ की साफ़ सफ़ाई,अनुशासन,रख-रखाव ,गार्ड्स की चुस्ती-मुस्तैदी देखते ही बनती है ।लगता है हम किसी कला - मंदिर की परिक्रमा कर रहे हैं ।मुझे इन कला गलियारों में विचरते सदा ही लगता है जैसे बेटे ने तीर्थ यात्रा करवा दी मन असीम आनन्द व शाँति से भर उठता है !



















































































बुधवार, 31 जुलाई 2019

कविता— दोस्त



ऐ दोस्त
अबके जब आना न
तो ले आना हाथों में
थोड़ा सा बचपन
घर के पीछे बग़ीचे में खोद के
बो देंगे मिल कर
फिर निकल पड़ेंगे हम
हाथों में हाथ लिए
खट्टे मीठे गोले की
चुस्की की चुस्की लेते
करते बारिशों में छपाछप
मैं भाग कर ले आउंगी
समोसे गर्म और कुछ कुल्हड़
तुम बना लेना चाय तब तक
अदरक  इलायची वाली
अपनी फीकी पर मेरी
थोड़ी ज़्यादा मीठी
और तीखी सी चटनी
कच्ची आमी की
फिर तुम इन्द्रधनुष थोड़ा
सीधा कर देना और
रस्सी डाल उस पर मैं
बना दूंगी मस्त झूला
बढ़ाएँगे ऊँची पींगें
छू लेंगे भीगे आकाश को
साबुन के बुलबुले बनाएँ
तितली के पीछे भागें
जंगलों में फिर से भटक जाएँ
नदियों में नहाएँ
चलो न ऐ दोस्त
हम फिर से बच्चे बन जाएँ ...!!

चित्र ; Pinterest से साभार

रविवार, 28 जुलाई 2019

स्वास्थ्य सबसे बड़ी नियामत— स्वस्थ रहें जागरूक रहें









                               



यूँ ही लंदन में एयर पोर्ट पर चलते-चलते न्यूज़ पेपर उठा लिया और एक न्यूज़ पढ़ कर आश्चर्य- चकित हो गई ।कभी  जैसी लाइलाज बीमारियों के लिए हम भारतीय सीधे पेशेन्ट को इंगलैंड या अमेरिका ले जाने की बात करने लगते थे जैसे  वहाँ सारे डॉक्टर्स धन्वन्तरि ही हैं और हमारे सब बेवक़ूफ़ ।पर इंसान से गल्ती या लापरवाही कहाँ नहीं हो सकती ? अब तो विदेशों में भी ख़ूब ऐसे केस सुनने में आते हैं और हमारे भी डॉक्टर चिकित्सा के क्षेत्र में किसी से पीछे नहीं हैं ।28 वर्षीय Ms Sarah Boyle जब बेटे को फ़ीड करवा रही थीं तो उन्होंने नोटिस किया कि वो राइट ब्रैस्ट से नहीं पीता था डॉक्टर को शक हुआ कि शायद ट्यूमर की वजह से टेस्ट चेंज हो गया है उसने टैस्ट करवाया तो पता चला कि उसे असाध्य triple negative breast cancer है ।
Royal Stoke University Hospital in Stoke-on-Trent, England में डबल मस्टकटमी और रिकन्स्ट्रक्टिव सर्जरी और सारी कीमोथेरेपी के बाद सात महीने के इलाज के उपरान्त डॉक्टर कहते हैं कि उसे कैंसर नहीं है Sarah ख़ुशी से रो पड़ीं और डॉक्टर्स ने बताया कि सच तो ये है कि उनको कभी कैंसर था ही नहीं ।कीमो की वजह से समाप्त हो गए बाल व आई ब्रो हालाँकि दुबारा आ गए हैं पर शीशे में देखती हैं तो ख़ुद को बदला हुआ सा महसूस करती हैं और आज भी सर्जरी व कीमो के साइड इफ़ेक्ट झेल रही हैं हालाँकि हॉस्पीटल ने अपनी गल्ती मानी है कि बायप्सी की ग़लत रिपोर्ट देने की वजह से ऐसा हुआ और अब वे एक्स्ट्रा प्रिकॉशन्स लेते हैं ये इंसानी गल्ती है और वे डॉक्टर हरसंभव Sarah की मदद के लिए तैयार रहते हैं ।परन्तु जो क्षति Sarah की हो चुकी है उसका क्या ?उसकी पूर्ति कभी नहीं हो सकती । डॉक्टर्स को ये शक था कि शायद अब वो दुबारा माँ नहीं बन पाएगी कीमों की वजह से उनकी प्रजनन क्षमता पर असर पड़ेगा लेकिन अब वो एक और सात माह के बेटे की माँ हैं।
           इस न्यूज़ को प्रकाश में लाने का मेरा एक ही मक़सद है कि इंसानी गल्ती या लापरवाही कहीं पर किसी से भी हो सकती है ऐसे कई केस इंडिया में भी हुए हैं जब किसी को कैंसर नहीं था और उसका ऑपरेशन और कीमोथेरेपी दे दी गई ।कितनी दुर्भाग्यपूर्ण बात है उस व्यक्ति के लिए जिसने बिना बातशारीरिक,मानसिक,आर्थिक पीड़ा झेली जिसे वो बीमारी है ही नहीं उसे वो इलाज की सारी मुसीबतें झेलनी पड़ीं किसी एक की गल्ती की वजह से । कीमोथेरेपी कोई साधारण इलाज नहीं है कीमोथेरेपी के साइड इफ़ेक्ट सालों साल के लिए शरीर पर दुष्प्रभाव छोड़ जाते हैं ।

मेरी एक फ्रैंड के हस्बैंड को डॉक्टर ने कैंसर बताया तो वो उनको बॉम्बे ऑपरेशन के लिए ले गईं पर ऑपरेशन से ठीक पहले दूसरी रिपोर्ट आ गई जो निगेटिव थी और वो इस त्रासदी को झेलने से बच गए ।

अत: कैंसर यदि डायग्नोस होता भी है तो मेरा सुझाव है कि अन्य किसी अच्छी पैथोलॉजी लैब से दुबारा अवश्य स्लाइड टैस्ट करवा लें तब इलाज शुरू करें ।जागरूक रहना अच्छा है और दूसरों की गल्तियों व अनुभवों से सीख लेना समझदारी।





शुक्रवार, 31 मई 2019

कविता— गाँधारी



जब वे
किसी अस्मिता को रौंद
जिस्म से खेल
विजय-मद के दर्प से चूर
लौटते हैं घरों को ही
तब चीख़ने लगते हैं अख़बार
दरिंदगी दिखाता काँपने लगता है
टी वी स्क्रीन
दहल जाते हैं अहसास
सहम कर नन्हीं चिरैयों को
ऑंचल में छुपा लेती हैं माँएं...
और रक्तरंजित उन हाथों पर
तुम बाँधती हो राखी
पकवानों से सजाती हो थाली
रखती हो व्रत उनकी दीर्घायु के लिए
भरती हो माँग
तर्क करती हो
पर्दे डालती हो
कैसे कर पाती हो ये सब ?
कैसे सुनाई नहीं देतीं
उस दुर्दान्त चेहरे के पीछे झाँकती
किसी अबला की
फटी आँखें,चीखें और गुहार ?
किसी माँ का आर्तनाद
बेबस बाप की बदहवासी ?
बोलो,क्यों नहीं दी पहली सजा तब
जब दहलीज के भीतर
बहन या भाभी की बेइज़्ज़ती की
या जब छीन कर झपटा मनचाहा ?
तुम्हारे इसी मुग्ध अन्धत्व ने
सौ पुत्रों को खोया है
उठो गाँधारी !
अपनी अाँखो से
अब तो पट्टी खोलो...!!

खुशकिस्मत औरतें

  ख़ुशक़िस्मत हैं वे औरतें जो जन्म देकर पाली गईं अफीम चटा कर या गर्भ में ही मार नहीं दी गईं, ख़ुशक़िस्मत हैं वे जो पढ़ाई गईं माँ- बाप की मेह...