ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

मंगलवार, 25 अप्रैल 2023

साँझ

 


उतर रही है साँझ 

क्षितिज से

गालों पे 

फिर तिरे  दामन पे

पाँव रख 

हौले से 

बिखर गई गुलशन में

रक्स-ए-बहाराँ बन के….

                 - उषा किरण 🌸🍃🌱

ॐ श्रीकृष्णः शरणं मम

 सबसे गहरे घाव दिए उन सजाओं ने— जो बिन अपराध, बेधड़क हमारे नाम दर्ज कर दी गईं। किए अपराधों की सज़ाएँ सह भी लीं, रो भी लीं… पर जो बेकसूर भुगत...