उतर रही है साँझ
क्षितिज से
गालों पे
फिर तिरे दामन पे
पाँव रख
हौले से
बिखर गई गुलशन में
रक्स-ए-बहाराँ बन के….
- उषा किरण 🌸🍃🌱
मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले
तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं
और जब शब्दों से भी मन भटका
तो रेखाएं उभरीं और
रेखांकन में ढल गईं...
इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये
ताना- बाना
यहां मैं और मेरा समय
साथ-साथ बहते हैं
उतर रही है साँझ
फिर तिरे दामन पे
पाँव रख
हौले से
बिखर गई गुलशन में
रक्स-ए-बहाराँ बन के….
- उषा किरण 🌸🍃🌱
ख़ुशक़िस्मत हैं वे औरतें जो जन्म देकर पाली गईं अफीम चटा कर या गर्भ में ही मार नहीं दी गईं, ख़ुशक़िस्मत हैं वे जो पढ़ाई गईं माँ- बाप की मेह...
हार्दिक आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार 🙏
हटाएंएक खुशनुमा तस्वीर खिंच गई आँखों के सामने. आपने पेंट भी की है क्या ?
जवाब देंहटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंअत्यंत मनमोहक तस्वीर एवं सृजन ।
बहुत शुक्रिया आपका😊
हटाएंवाह ! बहुत सुन्दर उषा जी ! वाकई गुलशन में बहार आ गयी !
जवाब देंहटाएंसाधना जी, हृदय से आभार😊
हटाएंक्या बात है, बेहद उम्दा।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार
हटाएंहार्दिक आभार 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंमनमोहक तस्वीर
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार
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