ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

मंगलवार, 25 अप्रैल 2023

साँझ

 


उतर रही है साँझ 

क्षितिज से

गालों पे 

फिर तिरे  दामन पे

पाँव रख 

हौले से 

बिखर गई गुलशन में

रक्स-ए-बहाराँ बन के….

                 - उषा किरण 🌸🍃🌱

14 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ।

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  2. एक खुशनुमा तस्वीर खिंच गई आँखों के सामने. आपने पेंट भी की है क्या ?

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  3. वाह!!!
    अत्यंत मनमोहक तस्वीर एवं सृजन ।

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  4. वाह ! बहुत सुन्दर उषा जी ! वाकई गुलशन में बहार आ गयी !

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