ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

रविवार, 12 जून 2022

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत…!


  कई बार हमारी ज़िंदगी में ऐसे पल आते हैं जब आगे घोर अँधेरा दिखाई देता है और कोई रास्ता नहीं सूझता। तब कुछ लोग गहरे डिप्रेशन में जाकर प्राय: गलत कदम उठा लेते हैl एक्टर सुशान्त सिंह राजपूत और न जाने ऐसे कितने लोग जिंदगी की जंग लड़ते - लड़ते हार गये और कूच कर गये  दुनियाँ से।

आजकल दिनेश कार्तिक की कहानी सोशल मीडिया पर बहुत चर्चित है कि कैसे उनके दोस्त व पत्नि ने उनको धोखा दिया और  उनके जिम के ट्रेनर शंकर बसु  व स्क्वैश खिलाड़ी दीपिका पल्लिकल ने उनको संभाला, सहारा देकर डिप्रेशन से बाहर निकाला और आगे चल कर दीपिका से उन्होंने शादी की। मैंने जब ये कहानी पढ़ी तो बहुत प्रभावित होकर गूगल पर सर्च करके ये कहानी पोस्ट की। कुछ जगह ये कहानी मनगढ़ंत बताई  जा रही है…अब क्या सच है क्या झूठ इस डिबेट में न पड़ते हुए मैंने अपनी पोस्ट से वो कहानी  हटा दी है वैसे भी गूगल पर सर्च करने से यह कहानी खूब मिल जाती है।

खैर इस पोस्ट को लिखने का मकसद सिर्फ़ यही था कि हम दूसरों के प्रति सजग व सम्वेदनशील बनें। हमारी सतर्कता व सम्वेदना किसी की जिंदगी बचा सकती है।मेरे रिश्ते में बहुत इन्टेलिजेंट होने पर भी एक बच्चे ने तीस साल पहले आत्महत्या कर ली थी क्योंकि वो मेडिकल एन्ट्रेन्स कई बार कोशिश करके भी क्लियर नहीं कर सका जबकि पहले से ही सब उसको डॉक्टर साहब कहने लगे थे। कोई ये समझ ही नहीं सका कि वो बेहद डिप्रेशन में था और जब तक पता चलता तब तक बहुत देर हो चुकी थी। ऐसे ही मेरी एक ब्रिलिएंट स्टुडेंट के फादर नहीं थे। माँ का एकमात्र सहारा व आशा थी वो। न जाने किस कारण डिप्रेशन की शिकार होकर ड्रग एडिक्ट हो गई।उसके असामान्य व्यवहार पर चर्चा तो खूब हुई परन्तु जब तक सब चेतते तब तक उसने जीवन का अन्त कर लिया और हम सबको अफसोस के हवाले कर गई।

उसके बाद मैं सावधान हो गई और अपने स्टूडेंट्स को बारीकी से ऑब्जर्व करने लगी। परिणामस्वरूप बहुत से स्टुडेंट्स ने अपनी पर्सनल प्रॉब्लम्स मुझसे कई बार शेयर कीं । मैं और तो कोई मदद नहीं कर सकती थी लेकिन बस उनको सुनती थी, जितना हो सकता हौसला देती थी और ये सिलसिला रिटायरमेण्ट के बाद भी जारी है । मेरे बच्चे मुझ पर भरोसा करके अपने मन को खोल देते …सब तो नहीं पर कई स्टूडेंट्स की मदद कर सकी। न जाने कितनी कहानियाँ हैं उन सबकी मेरे मन में ।आज भी किसी बच्चे या किसी को भी सुनने के लिए मेरे पास बहुत वक्त है और हृदय के द्वार खुले हैं।

मैं उनको समझाती कि किसी के भी सब दिन एक से नहीं होते। हिम्मत से मुक़ाबला करें तो एक दिन अँधेरे हार जाएंगे और सफलता का सूरज फिर से जीवन में उजाला लेकर आएगा। कई बार बच्चों को छोटी सी उम्र में पारिवारिक ,आर्थिक या करियर की समस्याओं व तनाव का सामना तोड़ देता है। मेरे स्टूडेंट्स क्योंकि हमेशा युवा- वर्ग ही रहे तो उनकी प्रायः समस्या प्यार की भी होती और प्यार है तो धोखा भी मिल सकता है…मैं समझाती कि इससे ज़िंदगी समाप्त तो नहीं होती…जिसने धोखा दिया हो, वो ये तो कतई डिजर्व नहीं करता कि उसकी खातिर तुम खुद को तबाह ही कर लो।

आप भी देखिए चारों  ओर…कोई मित्र, कोई  बन्धु- बान्धव, कोई पड़ोसी अकेला किसी कोने में सिसक रहा हो तो सम्वेदनशील बनिए …रुक जाइए…आपका वक्त कितना भी कीमती क्यों न हो पर किसी की जिंदगी से तो कीमती नहीं ही हो सकता…बढ़ कर हाथ थाम लीजिए और हौसले की डोर थमा दीजिए ।

सुशान्त सिंह राजपूत के जाने के बाद मैंने लिखा था-


#इससे_पहले


इससे पहले कि फिर से

तुम्हारा कोई अज़ीज़

तरसता हुआ दो बूँद नमी को

प्यासा दम तोड़ दे

संवेदनाओं की गर्मी को

काँपते हाथों से टटोलता

ठिठुर जाए और

हार जाए  जिंदगी की लड़ाई

कि हौसलों की तलवार

खा चुकी थी जंग...


इससे पहले कि कोई

अपने हाथों चुन ले

फिर से विराम

रोक दे अपनी अधूरी यात्रा

तेज आँधियों में

पता खो गया जिनका

कि काँपते थके कदमों को रोक

हार कर ...कूच कर जाएँ

तुम्हारी महफिलों से

समेट कर

अपने हिस्सों की रौनक़ें...


बढ़ कर थाम लो उनसे वे गठरियाँ

बोझ बन गईं जो

कान दो थके कदमों की

उन ख़ामोश आहटों  पर

तुम्हारी चौखट तक आकर ठिठकीं

और लौट गईं चुपचाप

सुन लो वे सिसकियाँ

जो घुट कर रह गईं गले में ही

सहला दो वे धड़कनें

जो सहम कर लय खो चुकीं सीने में

काँपते होठों पर ही बर्फ़ से जम गए जो

सुन लो वे अस्फुट से शब्द ...


मत रखो समेट कर बाँट लो

अपने बाहों की नर्मी

और आँचल की हमदर्द हवाओं को

रुई निकालो कानों से

सुन लो वे पुकारें

जो अनसुनी रह गईं

कॉल बैक कर लो

जो मिस हो गईं तुमसे...


वो जो चुप हैं

वो जो गुम हैं

पहचानों उनको

इससे पहले कि फिर कोई अज़ीज़

एक दर्दनाक खबर बन जाए

इससे पहले कि फिर कोई

सुशान्त अशान्त हो शान्त हो जाए

इससे पहले कि तुम रोकर कहो -

"मैं था न...”

दौड़ कर पूरी गर्मी और नर्मी से

गले लगा कर कह दो-

" मैं हूँ न दोस्त…मैं हूँ…!!”

              —उषा किरण 

सोमवार, 30 मई 2022

मेड फॉर ईच अदर

 

India Art Fair 2022, Delhi में देखी गई  कलाकार `सोमा दास ‘ की क्रम से लगी ये पाँच पेंटिंग्स  `Made For Each Other ’ मेरे दिल में बस गई है ….ध्यान से देखिए तो इस पेंटिंग में छिपी एक कविता भी नजर आती है मुझे —

………..


तुम चाहते हो न धरा सी

घूमती रहूँ तुम्हारे इर्द-गिर्द

पलकों की चिलमन में

काजल सा आँज लूँ

और खुशबू सा बसा लूँ

साँसों की लय में तुम्हें…!

जो तुम संवार दो न 

मेरा पल्लू

मेरी बिखरी अलकें

पैरों में लगा दो न आलता

पहना दो 

रुनुक- झुनुक पायल

बिठा दोगे तरतीब से 

साड़ी की चुन्नटें जब

नहीं चाहूँगी तब कुछ और 

मेरे मीत…!

तुम बन कर तो देखो सूरज

एक नहीं सात जन्मों तक 

धरा सी घूमती रहूँगी मैं 

ताउम्र…तुम्हारे चहुँओर…!!

                 —उषा किरण 🌼🌸


(जब अभिव्यक्ति के दो माध्यम मिल कर कुछ कहते हैं तो भाव- सम्प्रेषण दुगुना हो जाता है…!)

रविवार, 29 मई 2022

वक्त का जवाब


शुभदा की जॉब लगते ही घर में हंगामा हो गया। जिठानियों के ताने शुरु हो गए-" नौकरी करने वाली औरतों के घर बर्बाद हो जाते हैं, बच्चे आवारा हो जाते हैं, पति हाथ से निकल जाते  हैं ….!”
 शुभदा सब सुनती और मुस्कुरा कर टाल जाती 

बाबूजी के सामने पेशी हुई- " अरे बहू , हमारी सात पुश्तों में किसी बहू ने नौकरी नहीं की,क्या कहेंगे सब कि बहू की कमाई खा रहे हैं, नाक कट जाएगी !” शुभदा ने किसी तरह उनको समझाया कि नहीं कटेगी नाक।

पाँच साल के लम्बे संघर्ष व कड़ी मेहनत के बाद आखिर वो आज  यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर के पद परआसीन थी। 

यूनिवर्सिटी लिए तैयार होकर ऊपर से सीढ़ियाँ उतरते अपना नाम सुन कर ठिठक गई।बड़ी जिठानी अपनी बेटी को स्कूल के लिए तैयार करते हुए समझा रही थीं- "अरी पढ़ने में मन लगाया कर …चाची की तरह काबिल बन कर नौकरी करना…वर्ना हमारी तरह मूढ़ बन कर सारी  ज़िंदगी चूल्हा ही फूँकेगी !”

शुभदा के होठों पर एक सुकून भरी मुस्कान  आ गई ।
                                              —उषा किरण

फोटो: गूगल से साभार 

शनिवार, 28 मई 2022

मौन



सुनो तुम-

एक ही तो ज़िंदगी है 

बार- बार

और कितनी बार 

उलट-पलट कर 

पढ़ती रहोगी उसे

तुम सोचती हो कि

बोल- बोल कर 

अपनी नाव से

शब्दों को उलीच 

बाहर फेंक दोगी

खाली कर दोगी मन

पर शब्दों का क्या है

हहरा कर 

आ जाते हैं वापिस

दुगने वेग से….

देखो जरा 

डगमगाने लगी है नौका

जिद छोड़ दो

यदि चाहती हो 

इनसे मुक्ति, तो

कहा मानो 

चुप होकर बैठो और

गहरे मौन में उतर जाओ अब…!

                               —उषाकिरण

मंगलवार, 24 मई 2022

नेकी

 


सुबह साफ- सफाई के बाद मैं धूप-दीप जला ही रहा था कि मेरे मेडिकल स्टोर के सामने एक कार आकर रुकी और एक बहुत सम्भ्रान्त महिला व एक युवक उतर कर आगे आए।

महिला कुछ देर तक ध्यान से चंदनहार चढ़े फ्रेम में जड़े फोटो को देखती रहीं l

"ये आपके वालिद…..?”

"जी …दो साल पहले ही हम सबको छोड़कर भगवान के घर…!”

"ओह….आप उनके बेटे हैं?” मैंने देखा उनकी आँखें नम हो गईंl

"जी…आप ?”

"बेटा क्या कहूँ, समझ लो कि आज हम माँ - बेटे  तुम्हारे सामने यदि ज़िंदा खड़े हैं तो इनकी ही बदौलत।”

"मतलब…?”        

 कुछ ठहर कर उन्होंने कहा-                

"पच्चीस साल पहले एक दिन मैंने  यहाँ आकर तुम्हारे पापा से बच्चा गिराने की दवा माँगी थी। उन्होंने कहा कि वो ऐसी कोई दवा नहीं दे सकते, तो मैंने रोते हुए कहा फिर तो रेल की पटरियों पर ही अब मेरी मुश्किलों का अन्त होगा। मैं जाने लगी तो वे मेरे पीछे-पीछे आए और हौसला दिया। जब मैंने उन्हें बताया कि मेरे शौहर ने दूसरी शादी कर ली है और मुझे तलाक देकर घर से निकाल दिया है। मैं पेट से हूँ…अब्बू सुनेंगे तो सदमें से मर ही जाएंगे…मैं कैसे जियूँगी, कैसे अपने बच्चे की परवरिश करूँगी ? तो उन्होंने मुझे समझाया कि एक रास्ता बन्द होने से दुनिया ख़त्म नहीं हो जाती। तुम्हारे हिस्से में अँधेरा लिखने से पहले भगवान ने एक रोशनी की किरण तुममें रोप दी है और तुम उसी को खत्म कर देना चाहती हो। उनके समझाने से मुझमें उम्मीद जगी और मैं अपने अब्बू के पास लौट गई। सिलाई कढ़ाई का शौक था तो टेलरिंग का कोर्स किया और अपना छोटा सा बुटीक खोल लिया, आज वो शहर का सबसे बड़ा बुटीक है।ये मेरा बेटा डॉक्टर बन गया है।आज पहली कमाई से तुम्हारे पापा के लिए बहुत इज़्ज़त ओर प्यार से गिफ्ट लाया था, पर…!”

उन्होंने आँखें बन्द कर दुआ पढ़ी और डिब्बे से निकाल कर घड़ी मुझे पहनाते हुए कहा- 

"मना मत करना बेटा , इस माँ की दुआ समझ कर रख लो। ये घड़ी तुमको हमेशा नेकी पर विश्वास दिलाती रहेगी ।इंसान तो एक दिन वक्त के परे चला जाता है, लेकिन उसके किए नेक काम ताकयामत जिंदा रहते हैं…सदा सुखी रहो…अल्लाह  निगेहबान रहें…!”

वे दुआएं देती चली गईं और मैं दूर तक उनकी गाड़ी को जाते देखता रहा।

                                      — उषा किरण

फोटो; गूगल से साभार

रविवार, 22 मई 2022

मेरे घर आना ज़िंदगी



दो तीन दिन पहले घर के बाहर किसी चिड़िया के कर्कश आवाज में चिंचियाने की आवाज सुन कर जाली दरवाजे से बाहर झाँका तो देखा एक चिड़िया ऊपर टंगे गमले में बैठी सब पर  गुसिया रही है । गीता झाडू लगाने गई थी तो उसे डाँट पिला रही थी। गीता ने कहा बड़ी बत्तमीज होती है ये चिड़िया अटैक भी कर देती है और देखो पौधों के बीच घोंसला बना रही है ये अंडे भी देगी तो घर से निकलने पर मुसीबत करेगी, इसका घोंसला उठा कर कहीं और रख दें ? हमने कहा खबरदार हाथ भी मत लगाना दूर हटो सब , पास मत जाना। 

हमें लगा कि बुलबुल है तो Rashmi Ravija से कन्फर्म किया उन्होंने भी कहा कि बुलबुल ही है और बहुत मीठा गाती है हमने कहा कि ये तो बहुत कर्कश आवाज में चीख रही है तो उन्होंने कहा कि अभी गुस्से में होगी। 

खैर तो अब उसने पौधों के बीच बड़ा सुघड़, सुन्दर घोंसला बना लिया है , जिसे किसी लम्बे डोरीनुमा तिनके से स्टैंड के साथ बाँध कर आँधी से बचाने का भी इंतजाम कर दिया है , तीन अंडे दे दिए हैं उसमें। अब डाँट- डपट तो नहीं कर रही । वो ड्यूटी हमने संभाल ली है तो माता निश्चिंत हैं और उसने पहले ही हड़का दिया कि दूर रहना सब, वर्ना मुँह नोच लूँगी। हम सेवा में तत्पर हैं सबको कह दिया है कि घूम कर पीछे से किचिन से आओ- जाओ सामने से नहीं । 

सुना था कि नर बुलबुल ऐसे में मादा बुलबुल के खाने की व्यवस्था करता है पर जरा नहीं झाँकता वो नालायक ।हम ही जाली के दरवाजे के पीछे से हर घंटे ताका-झाँकी  करते रहते हैं । पापा बुलबुल तो बस एक दिन दिखा था सामने तार पर बैठा हीरोपन्ती करता , फिर नजर नहीं आया। हुँह…ये मर्द भी🙄…बेचारी बीच- बीच में उड़ कर दाना- पानी खाने जाती है। तभी हम लोग पौधों में जल्दी से पानी दे देते हैं ।हमने दियों में सामने ही बाजरा और पानी रखा, ख़रबूज़े का टुकड़ा व ब्रैड भी…पर देखती तक नहीं उस तरफ़…जाने क्या वहम है कि हमने जाने क्या मिला दिया होगा…हमारी नेकनियती पर ही विश्वास नहीं…घर में जच्चा के होने जैसी फीलिंग है ..😂खैर आतुर प्रतीक्षा है बच्चों के आने की 🥰

              —उषा  किरण 


शनिवार, 21 मई 2022

चाय- दिवस


 चाय दिवस भी होता है ये आज पता चला।

हमारे तो सारे ही दिवस चाय दिवस ही हैं।

अम्माँ बताती थीं जब वो छोटी थीं तो मामाजी कहीं से चाय की पत्ती लाए थे अंग्रेज मुफ़्त में बाँट रहे थे (कुछ लोगों का कहना था कि देश का सत्यानाश करने को अंग्रेज ये लत हिन्दुस्तानियों को लगाना चाहते थे ) ...खैर तो मामाजी ने पूरे ताम- झाम से थ्री पॉट चाय बनाई ...घड़ी देख कर चाय सिंझाई गई...और  बड़ी नफासत से सबको पिलाई जो तब दो कौड़ी की लगी । 

वो ही अम्माँ बाद में सुबह -सुबह लगभग केतली भर चाय मामा जी के साथ पी जातीं।

मामी जी को तो हर घंटे चहास लगती सारे दिन कटोरी में चाय बनातीं ...न जाने क्यों ? 

दरअसल चाय किस क्वालिटी की है उससे ज़्यादा असर इस बात का होता है कि वो किसके साथ पी जा रही है ...किसी आत्मीय के साथ गुनगुनी बातों संग गर्म चाय के मिठास भरे सिप अन्दर तक तृप्ति व ऊष्मा का अहसास कराते हैं ।

गाँव जाने पर चूल्हे पर औटती चाय मिलती काढ़ा टाइप। अदरक और गुड़ वाली , धूँए की खुशबू वाली ...बटलोही भर चाय बना कर चूल्हे से अंगारे  निकाल उस पर रख दी जाती और जो आता उसमें से धधकती चाय गिलास या कुल्हड़ में दी जाती। एक दिन मैंने भी अपने घर गुड़ की बना कर देखी ...जरा मजा नहीं आया कसैली सी लगी सारी फेंकनी पड़ी । शायद गाँव वाली उस चाय में वो टेस्ट कोई खास गुड़ का था या गाँव की मिट्टी की ख़ुशबू और अपनों के प्यार की मिठास  का ।

दुनिया जहान की एक से एक उम्दा ,तरह- तरह की चाय पीने पर भी कभी-कभी वो ही गाँव वाली चाय की हुड़क उठती है  तो कुल्हड़ मंगा कर उसमें चाय पीकर संतोष करना पड़ता है।गौरव अवस्थी की ये कविता जैसे मेरे ही मन की बात कहती है…अन्तर्राष्ट्रीय चाय दिवस की सबको हार्दिक बधाई ।

                   — उषा किरण 


 

जरा सोचिए

     अरे यार,मेरी मेड छुट्टी बहुत करती है क्या बताएं , कामचोर है मक्कार है हर समय उधार मांगती रहती है कामवालों के नखरे बहुत हैं  पूरी हीरोइन...