हिमाचल प्रदेश ऋषि-मुनियों की तपस्थली रही है यहां बहुत प्राचीन मंदिर संथित हैं ...हमने पहली बार बगलामुखी मॉं का नाम सुना था ।इस मंदिर का नाम " श्री १००८ बगलामुखी बनखण्डी मंदिर है " यह मंदिर ज्वालाजी से बाइस किलोमीटर दूर कोटला कस्बा ,ग्राम बनखण्डी में स्थित प्रसिद्ध शक्तिपीठ मंदिर है ।कहते हैं कि इस मंदिर की स्थापना द्वापर युग में पांडवों द्वारा एक ही रात में की गई थी भगवान कृष्ण के कहने पर इसकी स्थापना कर सर्वप्रथम यहां विशेष पूजा भीम व युधिष्ठिर ने शक्ति प्राप्त करने एवं युद्ध पर विजय प्राप्त करने के लिए की थी इन देवी की उपासना एवं हवन करवाने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है एवं कष्ट व भय से मुक्ति तथा वाक्सिद्धि प्राप्त होती है ,कुछ धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि यहां सर्वप्रथम आराधना ब्रह्मा व विष्णु ने तत्पश्चात परशुराम ने की थी और कई शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी ।
हिन्दू पौराणिक कथाओं में दस महाविद्याओं की देवी में से एक मॉं बगलामुखी का आठवां स्थान माना गया है इन्हें माता पीताम्बरा भी कहा जाता है ...ये स्तम्भन की देवी हैं सारे ब्रह्मान्ड की शक्ति मिल कर भी इनका मुकाबला नहीं कर सकती ।कहते हैं कि समुन्द्र में छिपे राक्षस का वध करने हेतु मॉं ने बगुला का रूप धारण किया था इसी से बगलामुखी नाम पड़ा यहां मॉं का पीत वस्त्र, पीत आभूषण एवं पीले ही फूलों की माला से श्रंगार किया जाता है भक्त लोग भी पीले रंग के फूल ही अर्पित करते हैं । मां बगलामुखी के तीन ही प्रमुख ऐतिहासिक मंदिर माने जाते हैं जो क्रमश: दतिया,नलखेड़ा,(म०प्र०) तथा कांगड़ा(हि०प्र०) में स्थित है जिन्हें सिद्धपीठ कहा जाता है ।
'बगलामुखी जयंती’ पर यहां मेले का भी आयोजन किया जाता है जिसमें अन्य देशों के विभिन्न राज्यों से लोग आकर कष्टों के निवारणार्थ हवन,पूजा-पाठ करवाते हैं ।वर्षों से प्रतिवर्ष असंख्य श्रद्धालु अन्य अवसरों पर भी यहां दर्शन को आते रहे हैं ।
नगरकोट के महाराजा संसारचन्द कटोच भी प्राय: इस मंदिर में आकर आराधना करते थे ।देश के कई नेता यहां आकर अनुष्ठान- पूजा करवाते रहे हैं ।मंदिर के अंदर कई हवन कुंड हैं जिनमें हवन-अनुष्ठान चलते रहते हैं
इस मंदिर के परिसर में मॉं लक्ष्मी,कृष्ण, हनुमान,भैरव तथा सरस्वती मॉं की प्रतिमा भी स्थापित हैं आदमकद शिवलिंग भी हैं यहां पर ..इसके अतिरिक्त...नवरात्री में यहां भारी भीड़ रहती है बेलपत्रआंवला,नीम ,पीपल के वृक्ष परिसर में हैं ।
परिसर में बनी दुकान से प्रसाद लिया और एक दोने में बिक रहे पीले गेंदे के फूल लेकर पूजा कर बाहर आए बहुत तेज धूप और बेहद गर्मी थी ,मैंने मंदिर में बिक रही दो आइस्क्रीम खरीदीं और टीन के शेड के नीचे बैठ कर मजे से मैंने और कान्ता जी ने खाईं फिर बाहर निकल कर गाड़ी में बैठ वापसी के लिए रवाना हो गए ।हमने रास्ते से खूब सारे फल खरीदे कैम्प में हमें फल नहीं मिलते थे तो रास्ते में हम लीची,आलूबुखारा , आम खाते रहे और गपियाते रहे ।मैंने पवन से पूंछा कि ' तुम्हारे कांगड़ा में देवता नहीं पूजे जाते क्या ‘ तो उसने कहा`नहीं हमारे कांगड़ा में देवी की पूजा करते हैं और शिव जी तथा भैरों की पूजा करते हैं ।
दरअसल मेरे साथ एक फैमिली लगभग बीस साल से रहती है वो लोग पौड़ी गढवाल से हैं और एक मेड थी उत्तरांचल से ये लोग हर दम हजारों रुपये उधार मांग कर गांव जाते थे यह कह कर कि देवताओं को पूजा देनी है और फिर बकरे की बलि देकर उनका ओझा या पंडित कुछ पूजा करता था फिर सारे गांव की दावत होती थी ...उनकी बातों से पता चलता था कि उनके देवता मृत पूर्वज ही होते हैं जो प्रेत बन कर नाराज होने पर इनको सताते हैं और खुश होने पर मदद करते हैं ।मैं कई बार समझाती थी कि भगवान की पूजा करो ,हनुमान जी,शिवजी या देवी मॉं की ।इतनी मेहनत से कमाया पैसा क्यों बर्बाद करते हो कुछ साल बाद उनकी समझ में आया और अब वे भी भगवान को मानते हैं परन्तु उनके किस्से इतने डरावने और मजेदार होते थे कि एक पुस्तक तो लिखी जा सकती है ।
पवन ने हमसे कहा कि यदि आप चाहो तो शाम को चामुन्डा देवी के दर्शन कर सकती हैं आश्रम से पन्द्रह मिनट की दूरी पर है तो हमने कहा कि ठीक है पांच बजे आ जाना हम चलेंगे और करीब डेढ बजे हम वापिस आश्रम आ गए
क्रमश:
#कांगड़ाहिमाचलप्रदेशयात्रा-4
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