ताना बाना
मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले
तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं
और जब शब्दों से भी मन भटका
तो रेखाएं उभरीं और
रेखांकन में ढल गईं...
इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये
ताना- बाना
यहां मैं और मेरा समय
साथ-साथ बहते हैं
गुरुवार, 9 अप्रैल 2020
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
ॐ श्रीकृष्णः शरणं मम
सबसे गहरे घाव दिए उन सजाओं ने— जो बिन अपराध, बेधड़क हमारे नाम दर्ज कर दी गईं। किए अपराधों की सज़ाएँ सह भी लीं, रो भी लीं… पर जो बेकसूर भुगत...

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें