ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

गुरुवार, 9 अप्रैल 2020

कविता —ना कहना





तुम ये कहना
तुम वो कहना
इसे भी कहना
उसे भी कहना
इस बात पे कहना
उस बात पे कहना
यहाँ भी कहना
वहाँ भी कहना
जो दिखे
उसे कहना
ना दिखे
उसे भी कहना
सब कुछ कहना
परन्तु...
सही को सही
और
गलत को गलत
बस ये कभी न कहना !!!!!
                     डॉ० उषा किरण
                     ( रेखांकन ; उषा किरण)

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