ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

सोमवार, 2 नवंबर 2020

जन्मदिन मुबारक....

 तुम्हारा जन्मदिन हमें मुबारक भैया.....यदि जन्म हो अगला तो हम बहनों के भाई तुम ही बनना🥰


सोए जाने कितनी गहरी नींद 

मन तो करता है बस कहीं से भी 

तुम्हें ढ़ूँढ़ के ले आऊँ

ऐसे भी सोता है कोई भला?

अम्माँ कहती थीं 

बचपन से ही सोतू थे तुम

एक बार सोते तो

भूख- प्यास का कुछ होश नहीं 

अब मैं क्या करूँ 

कहाँ ढूँढूँ

जाने कहाँ जाकर सोए तुम

तुम्हारी नगरी का कोई नाम ही नहीं

पता भी नहीं ....

भागते बादलों को थमा दी हैं 

कुछ किरणें सतरँगी 

शायद तुम तक 

पहुँच जाएं

दुआएँ हमारी...!!

🌸🌼🌸🌼🌸


😒


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