आते-आते मुझ तक
अचानक ठिठक गये
तुम बसन्त
छोड़ दिया हाथ मैंने
नहीं की मनुहार
एक बार भी
और विदा लेकर
बस दो मुट्ठी में बीज भर
आगे बढ़ गई मैं
सालों साल मुट्ठी ढीली कर
बेध्यानी में
बरस-दर-बरस
बारहा मीलों चलती रही
न जाने कितने मौसम
आए-गये
बहुत बाद पलट कर देखा
हैरान थी
अरे...तुम तो झूम रहे थे
मेरे ही पीछे-पीछे
ठिठक कर मैंने भी
भर लिया अँक में
मुस्कुरा कर स्वागत किया
आख़िरकार...
आ ही गये तुम बसन्त !!
— उषा किरण
बहुत सुन्दर वासन्ती अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका.
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